भारत सरकार द्वारा 2014 में पवित्र नदी गंगा को साफ करने लेकर चलाया जाने वाला प्रोजक्ट ‘नमामि गंगे’ का दुनिया में डंका बज रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने नमामि गंगे परियोजना को 10 अभूतपूर्व प्रयासों में शामिल किया है जिन्होंने प्राकृतिक दुनिया को बहाल करने को लेकर अहम भूमिका निभाई। वहीं इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (COP15) के दौरान एक रिपोर्ट जारी की गई।
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नमामि गंगे परियोजना को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिलने के बाद गंगा नदी के संरक्षण और उसकी जैव विविधता को बचाने के लिए समर्थित प्रमोशन, कंसल्टेंसी और डोनेशन प्राप्त हो सकेगा। वहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, प्रदूषण में वृद्धि, औद्योगिकीकरण और सिंचाई ने हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक 2,525 किलोमीटर तक फैले गंगा क्षेत्र का काफी नुकसान किया है।
यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन के अनुसार प्रकृति के साथ हमारे संबंधों में बदलाव, जलवायु संकट, प्रकृति और जैवविविधता के क्षरण, प्रदूषण और कचरे के तिहरे संकट से निपटने के लिए अहम है। संयुक्त राष्ट्र ने एक बयान में कहा कि गंगा नदी पुनर्जीवन परियोजना में गंगा के मैदानी हिस्सों की सेहत बहाल करना प्रदूषण कम करने, वन्य क्षेत्र का पुन: निर्माण करने तथा इसके विशाल तलहटी वाले इलाकों के आसपास रह रहे 52 करोड़ लोगों को व्यापक फायदे पहुंचाने के लिए अहम है।
बयान के अनुसार, सरकार के नेतृत्व वाली नमामि गंगे पहल गंगा और उसकी सहायक नदियों का कायाकल्प, संरक्षण कर रही है, गंगा बेसिन के कुछ हिस्सों में वनीकरण कर रही है और टिकाऊ खेती को बढ़ावा दे रही है। इस परियोजना का उद्देश्य प्रमुख वन्यजीव प्रजातियों को पुनर्जीवित करना है, जिनमें नदी डॉल्फिन, कछुए, ऊदबिलाव और हिलसा शाद मछली शामिल हैं।