वित्त मंत्रालय ने भरोसा जताया कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और मानसून की कमी के जोखिमों के बावजूद दे्श चालू वित्त वर्ष में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर लेगा। इसका प्रमुख कारण कंपनियों की लाभप्रदता, निजी पूंजी निर्माण और बैंक ऋण वृद्धि का बेहतर होना है। वित्त मंत्रालय की अगस्त महीने की मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि अप्रैल-जून तिमाही में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर के पीछे मजबूत घरेलू मांग, खपत और निवेश मुख्य वजह थी। जीएसटी संग्रह, बिजली खपत, माल ढुलाई आदि जैसे विभिन्न उच्च-आवृत्ति संकेतकों में भी वृद्धि दर्ज की गई।
मासिक समीक्षा में वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी, अगस्त में मानसून की कमी का खरीफ एवं रबी फसलों पर असर जैसे कुछ जोखिमों का भी उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक इन जोखिमों का आकलन करने की जरूरत है। हालांकि सितंबर में हुई बारिश ने अगस्त में बारिश की कमी की काफी हद तक भरपाई की है।
रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट आने से अब घरेलू शेयर बाजार में भी गिरावट का जोखिम बना हुआ है। इन जोखिमों की भरपाई कंपनी लाभप्रदता, निजी क्षेत्र के पूंजी निर्माण, बैंक ऋण वृद्धि और निर्माण क्षेत्र में गतिविधियां कर रही हैं। वित्त मंत्रालय की मासिक समीक्षा कहती है, ”कुल मिलाकर हम इन जोखिमों के साथ वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने के अनुमान को लेकर सहज बने हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, घरेलू निवेश की ताकत पूंजीगत व्यय पर सरकार के निरंतर जोर देने का नतीजा है। केंद्र सरकार के उपायों ने राज्यों को भी अपने पूंजीगत व्यय को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है।
रिपोर्ट कहती है कि बाहरी मांग ने घरेलू वृद्धि प्रोत्साहन को पूरक बनाने का काम किया है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि में शुद्ध निर्यात का योगदान बढ़ गया क्योंकि सेवाओं के निर्यात ने अच्छा प्रदर्शन किया। जुलाई एवं अगस्त के उच्च आवृत्ति संकेतकों से दूसरी तिमाही में भी वृद्धि दर की रफ्तार बने रहने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति में कमी आई और मुख्य मुद्रास्फीति एवं खाद्य मुद्रास्फीति दोनों ही जुलाई की तुलना में कम हुई है।
इसमें कहा गया है कि सरकार के स्तर पर उठाए गए कई कदमों ने प्रमुख मुद्रास्फीति को 40 महीने के निचले स्तर पर लाने में मदद की। हालांकि वैश्विक स्तर पर कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई है। वित्त मंत्रालय की मासिक समीक्षा रिपोर्ट कहती है कि कुछ फसलों का बफर स्टॉक बनाने, उत्पादक केंद्रों से खरीद और सब्सिडी दर पर वितरण जैसे सरकारी कदमों से अगस्त में उपभोक्ता खाद्य मुद्रास्फीति घटकर 9.9 प्रतिशत हो गई।
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