सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली–राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के वाहन मालिकों को अस्थायी राहत देते हुए पुराने वाहनों पर लगे प्रतिबंध के तात्कालिक प्रवर्तन पर रोक लगा दी है। यह राहत निम्न श्रेणी के वाहनों के लिए लागू होगी:
10 साल से पुराने डीज़ल वाहन
15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन
यह आदेश तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक अदालत दिल्ली सरकार द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं कर लेती, जिसमें मौजूदा प्रतिबंध की समीक्षा की मांग की गई है।
पृष्ठभूमि: प्रतिबंध क्यों लगाया गया था
2015 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने दिल्ली–NCR में पुराने वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध (ब्लैंकेट बैन) लगाया, ताकि गंभीर वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
ब्लैंकेट बैन का मतलब है—एक ऐसा नियम जो बिना किसी अपवाद के सभी पर लागू हो। इस मामले में, सभी 10 साल से पुराने डीज़ल वाहन और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन, उनकी वास्तविक प्रदूषण उत्सर्जन या स्थिति की परवाह किए बिना, प्रतिबंधित कर दिए गए।
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार रखते हुए इसे कानूनी रूप से लागू करने योग्य बना दिया।
दिल्ली सरकार का रुख
दिल्ली सरकार का तर्क है कि यह उम्र-आधारित प्रतिबंध अब पुराना और अनुचित है, और जिम्मेदार वाहन मालिकों के लिए व्यावहारिक कठिनाइयां पैदा कर रहा है। उनका मानना है कि:
प्रदूषण स्तर का आकलन वैज्ञानिक तरीके से, वास्तविक उत्सर्जन के आधार पर होना चाहिए, केवल वाहन की उम्र से नहीं।
तकनीकी प्रगति, जैसे:
BS-VI उत्सर्जन मानक
व्यापक PUC (प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र) कवरेज
उत्सर्जन मानकों की कड़ी निगरानी
उम्र-आधारित पूर्ण प्रतिबंध को अनावश्यक बनाती है।
वर्तमान नीति को बदलकर एक ग्रेडेड, तकनीकी-आधारित नीति लानी चाहिए, जिसमें ध्यान दिया जाए:
वास्तविक उत्सर्जन स्तर
वाहन की माइलेज और स्थिति
नियमित फिटनेस टेस्ट
सीएनजी या इलेक्ट्रिक कन्वर्ज़न जैसी रेट्रोफिटिंग विकल्पों पर
दिल्ली सरकार की अदालत से मांग
केंद्र या वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को इस प्रतिबंध की प्रासंगिकता पर वैज्ञानिक अध्ययन कराने का निर्देश।
ऐसी संतुलित नीति बनाना, जो पर्यावरण की रक्षा करे और नागरिकों के अधिकारों का सम्मान भी।
सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का महत्व
फिलहाल, कानूनी उम्र सीमा से अधिक पुराने वाहनों के मालिकों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई (जैसे जुर्माना, वाहन ज़ब्ती) नहीं होगी।
यह मामला पर्यावरण कानून में नीति निर्माण के लिए व्यापक प्रभाव डाल सकता है, और यह दिखाता है कि कानूनी ढांचे को तकनीकी प्रगति और सामाजिक वास्तविकताओं के अनुसार कैसे बदला जा सकता है।
परीक्षा दृष्टि से महत्व
यह मामला जीवंत उदाहरण है:
पर्यावरणीय शासन बनाम व्यक्तिगत अधिकार
पुरानी नीतियों में संशोधन या पुनर्मूल्यांकन में न्यायिक समीक्षा की भूमिका
भारत में प्रमाण-आधारित नीति निर्माण की आवश्यकता
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