हर वर्ष 13 अप्रैल को सियाचिन दिवस मनाया जाता है, जो सियाचिन ग्लेशियर में तैनात भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और अटूट संकल्प को सम्मान देने का एक अवसर है। यह स्थान दुनिया का सबसे ऊँचा और कठिन युद्धक्षेत्र माना जाता है। यह दिन वर्ष 1984 में शुरू किए गए ऑपरेशन मेघदूत की स्मृति में मनाया जाता है, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा रणनीतिक स्थलों पर कब्ज़ा करने के प्रयास को विफल करते हुए सियाचिन ग्लेशियर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण स्थापित किया था। इस ऐतिहासिक अभियान में भारतीय सेना और वायुसेना (IAF) के बीच शानदार तालमेल देखने को मिला। वर्ष 2025 में इस अभियान की 41वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। सियाचिन के वीर योद्धाओं का बलिदान और शौर्य आज भी करोड़ों भारतीयों को प्रेरणा देता है और राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रबल करता है।
सियाचिन दिवस 2025 की प्रमुख बातें
सियाचिन दिवस क्या है?
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हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है।
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ऑपरेशन मेघदूत (1984) की शुरुआत की स्मृति में मनाया जाता है।
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सियाचिन ग्लेशियर में तैनात सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
इस दिन का महत्व
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भारतीय सेना ने बिलाफोंड ला और सिया ला जैसे प्रमुख दर्रों पर कब्ज़ा किया।
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सियाचिन ग्लेशियर पर भारत के रणनीतिक नियंत्रण को दर्शाता है।
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अत्यंत कठिन परिस्थितियों में सेवा दे रहे सैनिकों की दृढ़ता को उजागर करता है।
ऑपरेशन मेघदूत की पृष्ठभूमि
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पाकिस्तान की नक्शों में घुसपैठ को जवाब देने के लिए शुरू किया गया।
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खुफिया जानकारी से पाकिस्तान की योजना का पता चला।
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भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 को पूर्व-निर्धारित आक्रमण किया।
ऑपरेशन के प्रमुख नेता
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लेफ्टिनेंट जनरल एम.एल. चिब्बर
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लेफ्टिनेंट जनरल पी.एन. हूण
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मेजर जनरल शिव शर्मा
भारतीय वायुसेना (IAF) की भूमिका
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IAF ने 1978 से ही ग्लेशियर में अभियान शुरू कर दिया था।
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चेतक हेलिकॉप्टर सबसे पहले अक्टूबर 1978 में ग्लेशियर पर उतरा।
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सैनिकों, रसद और उपकरणों को पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई।
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प्रयोग किए गए विमान: An-12, An-32, IL-76, Mi-8, Mi-17, चेतक, चीता
सियाचिन का भू-राजनीतिक महत्व
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20,000 फीट की ऊँचाई पर कराकोरम श्रृंखला में स्थित।
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नियंत्रण में:
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शकसगाम घाटी (उत्तर में)
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गिलगित बाल्टिस्तान से लेह तक के मार्ग (पश्चिम में)
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प्राचीन कराकोरम दर्रा (पूर्व में)
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सीमाएँ: गिलगित बाल्टिस्तान, शकसगाम और लद्दाख
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मेघदूत की रणनीतिक उपलब्धियाँ
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भारत ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त किया।
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NJ9842 के आगे पाकिस्तान की घुसपैठ को रोका।
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भारत की फ्रोजन फ्रंटियर पर स्थायी उपस्थिति बनी।
निरंतर चौकसी
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भारतीय सेना आज भी अत्यंत कठोर परिस्थितियों में सियाचिन की रक्षा कर रही है।
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सैनिक शून्य से नीचे तापमान, हिमस्खलन के खतरे और एकाकी जीवन का सामना करते हैं।
सियाचिन के वीरों को नमन – जो बर्फ से ढके दुर्गम मोर्चे पर भी राष्ट्र की सुरक्षा में अडिग खड़े हैं।
श्रेणी | विवरण |
क्यों चर्चा में? | सियाचिन दिवस: दुनिया के सबसे ऊँचे युद्धक्षेत्र के वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि |
घटना | सियाचिन दिवस |
तिथि | 13 अप्रैल |
सैन्य अभियान का वर्ष | 1984 |
ऑपरेशन का नाम | ऑपरेशन मेघदूत |
उद्देश्य | पाकिस्तान द्वारा सिया ला और बिलाफोंड ला पर कब्ज़ा करने से पहले कार्रवाई करना |
प्रमुख सैन्य नेता | ले. जनरल मनोहर लाल चिब्बर, ले. जनरल पी. एन. हूण, मेजर जनरल शिव शर्मा |
सुरक्षित स्थान | सिया ला दर्रा, बिलाफोंड ला दर्रा |
भारतीय वायुसेना का योगदान | सैनिकों और रसद की एयरलिफ्टिंग; प्रमुख विमान: चेतक, चीता, An-32, Mi-17 |
रणनीतिक महत्व | शकसगाम घाटी, गिलगित-बाल्टिस्तान से पहुँच मार्ग, कराकोरम दर्रे पर नियंत्रण |
कविता में चित्रण | “Quartered in snow…” – भारतीय सैनिकों की भावना और समर्पण को दर्शाता है |
भौगोलिक ऊँचाई | कराकोरम रेंज में लगभग 20,000 फीट |