पूर्वी नगालैंड का एक हिस्सा आदिवासी जीवन के उस पुराने दौर से बाहर निकल चुका है। आज यहां के ग्रामीण फलों के बागों के जरिये जमकर कमाई कर रहे हैं। इसका श्रेय जाता है 40 साल के सेथरिचम संगतम को। संगतम अमेरिका में अपने ‘करियर’ को छोड़कर गांव लौटे और उन्होंने ग्रामीणों को इसके लिए प्रेरित किया। संगतम को 40 साल से कम आयु के व्यक्ति द्वारा ग्रामीण विकास में योगदान के लिए पहले रोहिणी नैय्यर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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पूर्वी नगालैंड के निवासी संगतम ने पुरस्कार प्राप्त करने के बाद कहा कि मैं एक ऐसे समुदाय से आता हूं जहां हमारे पूर्वज पहाड़ की चोटी पर रहा करते थे। वे उसे नायक मानते थे जो दुश्मन का सिर काटकर लाता था। हर चलते फिरते जीव जंतुओं को मार देते थे। कई बार वे भोजन के लिए जीवजंतुओं को मारते थे, तो कई बार सिर्फ खेल-खेल में या मनोरंजन के लिए।संगतम ने कहा कि हालांकि, अब परिस्थितियां बदल गई हैं। हमने बाहर जाना शुरू कर दिया है और अब हम जीवन को अलग तरह से देखते हैं।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने संगतम को यह पुरस्कार दिया। पुरस्कार के रूप में 10 लाख रुपये नकद, एक प्रशस्ति पत्र और एक ट्रॉफी प्रदान की गई है। संगतम, पूर्वी नगालैंड में 1,200 सीमांत किसानों और उनके परिवारों के साथ काम करते हैं। उन्होंने ग्रामीण आजीविका सुरक्षा, पर्यावरण स्थिरता और बदलाव के लिए शिक्षा के लिए ‘बेटर लाइफ फाउंडेशन’ की शुरुआत की।
उनकी कई उपलब्धियों में से एक क्षेत्र के किसानों को स्थायी कृषि की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना है। विजेता का चयन अशोक खोसला (डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के संस्थापक), राजेश टंडन (पीआरआईए के संस्थापक) और रेनाना झाबवाला (सेवा की राष्ट्रीय संयोजक) की ज्यूरी ने किया। संगतम बेंगलूर के भारतीय राष्ट्रीय विधि स्कूल गए थे। इसे बीच में छोड़कर वह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के ग्लोबल यूथ एडवाइजरी पैनल के सदस्य के रूप में न्यूयॉर्क चले गए।
रोहिणी नैय्यर ने करीब दो दशक तक पूर्ववर्ती योजना आयोग में काम किया था। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की मनरेगा योजना का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। आयोग में शामिल होने से पहले, उन्होंने उत्तर प्रदेश में गरीबी और भूमिहीनता तथा ग्रामीण बिहार में गरीबी और असमानता पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के लिए शोध किया।
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