भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी महिलाओं के योगदान के बिना अधूरी है। उन्होंने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन चलाए, जागरूकता फैलाई, और ज़रूरत पड़ने पर हथियार भी उठाए। प्रेरणादायक भाषणों से लेकर अदम्य साहस के कारनामों तक, महिलाओं ने राष्ट्र को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई और यह साबित किया कि आज़ादी की लड़ाई सभी की ज़िम्मेदारी थी।
शुरुआत में महिलाओं की भागीदारी अधिकतर प्रतीकात्मक थी—नेताओं को उनसे आंदोलन का समर्थन तो चाहिए था, लेकिन नेतृत्व नहीं सौंपा जाता था। पर धीरे-धीरे यह स्थिति बदलने लगी, जब विभिन्न क्षेत्रों, धर्मों और सामाजिक पृष्ठभूमि की महिलाएं स्वतंत्रता के लिए एकजुट हुईं।
कुछ प्रमुख महिला नेता:
सरोजिनी नायडू – भारत कोकिला के नाम से प्रसिद्ध, उन्होंने नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलनों में मजबूत नेतृत्व किया।
विजयलक्ष्मी पंडित – भारत का प्रतिनिधित्व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किया और महिलाओं को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय – महिलाओं को आंदोलनों में शामिल होने और सामाजिक सुधारों के लिए प्रेरित किया।
मृदुला साराभाई – अपने निडर और सक्रिय आंदोलनकारी स्वभाव के लिए जानी जाती थीं।
यहां तक कि विदेशी महिलाएं जैसे एनी बेसेन्ट और मार्गरेट कज़िन्स भी इस आंदोलन से जुड़ीं, जिन्होंने आयरलैंड में ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने अनुभव का उपयोग भारत के समर्थन में किया।
महात्मा गांधी के नेतृत्व ने महिलाओं की भागीदारी को नई दिशा दी। उनका अहिंसा का सिद्धांत (अहिंसा) उन गुणों से मेल खाता था जिनके लिए महिलाएं पहले से जानी जाती थीं—धैर्य, साहस और सहनशीलता।
गांधीजी ने महिलाओं को सत्याग्रह (अहिंसक विरोध) अभियानों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया।
महिलाओं में गिरफ्तारी, जन-प्रदर्शन और पुलिस की हिंसा का सामना करने का साहस आया।
इस आंदोलन ने मध्यम वर्ग की महिलाओं को उच्च वर्ग और ग्रामीण महिलाओं के साथ मिलकर लड़ने का अवसर दिया।
असहयोग आंदोलन (1920)
ब्रिटिश वस्तुओं, स्कूलों और संस्थाओं का बहिष्कार।
विरोध मार्च और रैलियों में भागीदारी।
कई महिलाओं ने पहली बार जेल की सज़ा काटी।
नमक सत्याग्रह (1930)
सरोजिनी नायडू और कमला नेहरू ने गांधीजी के साथ मार्च निकाले।
नमक डिपो का घेराव और ब्रिटिश नमक एकाधिकार तोड़ना।
शुरुआत में गांधीजी महिलाओं को शामिल करने में झिझकते थे, लेकिन सरोजिनी नायडू ने उन्हें मनाया।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन, जन सभाएं और भूमिगत गतिविधियां आयोजित कीं।
आंदोलन का संदेश फैलाने के लिए कांग्रेस रेडियो चलाया।
पुरुष नेताओं के जेल जाने के बाद भी संघर्ष जारी रखा।
देश के हर कोने से महिलाएं आज़ादी के आंदोलन में जुड़ीं:
ए.वी. कुट्टिमालुआम्मा और एनी मास्करीन – केरल
दुर्गाबाई देशमुख – मद्रास प्रेसीडेंसी
रामेश्वरी नेहरू – उत्तर प्रदेश
इन नेताओं ने स्थानीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन, हड़तालें और जागरूकता अभियान चलाए, जिससे आंदोलन गांव-गांव तक पहुंचा।
महिलाओं की भागीदारी ने भारतीय समाज पर गहरा असर डाला:
एकता में विविधता – रानी लक्ष्मीबाई और बेगम हज़रत महल जैसी नेता अलग-अलग क्षेत्रों और धर्मों से थीं, लेकिन उद्देश्य एक था।
सामाजिक बंधन तोड़ना – महिलाएं घरेलू भूमिकाओं से निकलकर नेतृत्व तक पहुंचीं।
सशक्तिकरण – आंदोलनों में भाग लेने से महिलाओं में राजनीति, शासन और शिक्षा में आगे बढ़ने का आत्मविश्वास आया।
भारत माता का प्रतीक – महिलाएं राष्ट्र की जीवंत छवि बन गईं, जिसने एकता और देशभक्ति को प्रेरित किया।
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