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मशहूर ‘जलवायु विशेषज्ञ’ सलीमुल हक़ का निधन

मशहूर 'जलवायु विशेषज्ञ' सलीमुल हक़ का निधन |_3.1

पूरी दुनिया में मशहूर जलवायु अनुकूलन विज्ञान विशेषज्ञ और विकासशील दुनिया का प्रतिनिधित्व करने वाली एक बड़ी आवाज सलीमुल हक का बांग्लादेश की राजधानी ढाका में निधन हो गया। वे 71 साल के थे। हक के परिवार में पत्नी, एक बेटा और बेटी है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के जलवायु व स्वास्थ्य वैज्ञानिक क्रिस्टी एबी ने कहा कि सलीमुल हक ने हमेशा गरीब और वंचितों पर ध्यान केंद्रित किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जलवायु परिवर्तन का असर लोगों, उनकी जिंदगियों, उनके स्वास्थ्य और आजीविका पर पड़ता है।

 

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

सलीमुल हक का जन्म 2 अक्टूबर, 1952 को कराची, पाकिस्तान में हुआ था। वह अपने माता-पिता की राजनयिक पोस्टिंग के कारण यूरोप, एशिया और अफ्रीका में पले-बढ़े और 1970 के दशक में इंपीरियल कॉलेज लंदन में अध्ययन करने के लिए ब्रिटेन चले गए, जहां उन्होंने 1978 में वनस्पति विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

 

सलीमुल हक: एक नजर में

सलीमुल हक ने ढाका में अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन एवं विकास केंद्र स्थापित करने में मदद की। वह लंदन में अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण व विकास संस्थान में वरिष्ठ सहायक और कार्यक्रम संस्थापक भी रहे और उन्होंने इंग्लैंड तथा बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों में पढ़ाया भी है। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने हक के प्रयासों के लिए 2022 में उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर’ से सम्मानित किया था। हक ने सैकड़ों वैज्ञानिक और लोकप्रिय लेख प्रकाशित किए। विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में 2022 में उन्हें दुनिया के शीर्ष 10 वैज्ञानिकों की सूची में शामिल किया गया।

सलीमुल हक को एक बांग्लादेशी-ब्रिटिश साइंसटिस्ट और इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट (आईसीसीसीएडी) के निदेशक और सीओपी 28 सलाहकार कमिटी के एक अहम मेंबर थे। वह इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की तीसरी, चौथी और पांचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट के प्रमुख लेखक थे। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) में सबसे कम विकसित देशों (Least Developed Countries) समूह को सलाह भी दी थी।

 

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जगदीश चंद्र बोस ने केस्कोग्राफ नाम के एक यंत्र का आविष्कार किया. यह आस-पास की विभिन्न तरंगों को माप सकता था. बाद में उन्होंने प्रयोग के जरिए साबित किया था कि पेड़-पैधों में जीवन होता है.