भारत परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए 26 अरब डॉलर का निजी निवेश चाहता है। निवेशकों में रिलायंस, टाटा, अडानी, वेदांता शामिल हैं। निजी कंपनियाँ संयंत्र निर्माण का वित्तपोषण करती हैं एवं एनपीसीआईएल परिचालन अधिकार को बनाए रखता है।
भारत सरकार अपने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में 26 अरब डॉलर के निजी निवेश को आमंत्रित करने के लिए तैयार है। इस पहल का लक्ष्य 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित बिजली उत्पादन को 50% तक बढ़ाने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप गैर-कार्बन उत्सर्जक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना है।
प्रमुख खिलाड़ी और निवेश विवरण
- रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा पावर, अदानी पावर और वेदांता लिमिटेड सहित निजी कंपनियों से लगभग 440 बिलियन रुपये (5.30 बिलियन डॉलर) के निवेश के लिए संपर्क किया जा रहा है।
- निवेश में परमाणु संयंत्र के बुनियादी ढांचे, भूमि अधिग्रहण, जल संसाधन और रिएक्टर परिसरों के बाहर निर्माण गतिविधियां शामिल होंगी।
परिचालन ढांचा
- न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) ईंधन प्रबंधन सहित परमाणु स्टेशनों के निर्माण, संचालन और प्रबंधन के अधिकार बरकरार रखेगा।
- निजी कंपनियों को बिजली संयंत्रों से बिजली की बिक्री के माध्यम से राजस्व अर्जित करने का अनुमान है, जबकि एनपीसीआईएल शुल्क के लिए परियोजनाओं का संचालन करेगा।
विनियामक और कानूनी संदर्भ
- इस पहल के लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 में संशोधन की आवश्यकता नहीं है, लेकिन परमाणु ऊर्जा विभाग से अंतिम अनुमोदन की प्रतीक्षा है।
- हालाँकि भारतीय कानून निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने से प्रतिबंधित करता है, लेकिन उन्हें रिएक्टर क्षेत्रों के बाहर घटकों, उपकरणों की आपूर्ति और निर्माण कार्य करने की अनुमति है।
चुनौतियाँ और प्रगति
- परमाणु ईंधन खरीद के मुद्दों के कारण भारत को परमाणु ऊर्जा क्षमता वृद्धि लक्ष्यों को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- पुनर्संसाधित परमाणु ईंधन आपूर्ति के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों के साथ समझौतों ने इनमें से कुछ चुनौतियों का समाधान किया है।
- सख्त परमाणु मुआवजा कानूनों और बातचीत में कठिनाइयों ने विदेशी बिजली संयंत्र बिल्डरों के साथ चर्चा को प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप क्षमता वृद्धि लक्ष्य टल गए हैं।