भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंक ऋण वृद्धि में मंदी को देखते हुए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) को दिए जाने वाले बैंक ऋणों पर जोखिम भार (Risk Weights) बढ़ाने के 2023 के अपने निर्णय को वापस लेने का फैसला किया है। यह बदलाव 1 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगा, जिससे बैंकों के लिए पूंजी मुक्त होगी, NBFCs को ऋण प्रवाह में सुधार मिलेगा और सूक्ष्म ऋणों (Microloans) पर जोखिम भार को लेकर स्पष्टता आएगी।
मुख्य बिंदु
NBFC ऋणों पर जोखिम भार
- RBI ने नवंबर 2023 में बैंक ऋणों पर 25 प्रतिशत अंक का जोखिम भार बढ़ाया था, जिसे अब वापस ले लिया गया है।
- अब जोखिम भार NBFC की बाहरी क्रेडिट रेटिंग के अनुसार तय होगा।
- इस फैसले से बैंक की पूंजी मुक्त होगी और NBFCs को ऋण प्रवाह में सुधार मिलेगा।
नवंबर 2023 के फैसले का प्रभाव
- जोखिम भार बढ़ने के कारण NBFCs को दिए गए बैंक ऋणों की वृद्धि दर दिसंबर 2023 में 15% थी, जो दिसंबर 2024 में घटकर 6.7% रह गई।
- कुल बैंक ऋण वृद्धि भी 20% से घटकर 11.2% हो गई।
- NBFCs को पूंजी बाजार (Capital Markets) और बाहरी वाणिज्यिक उधारी (External Commercial Borrowings – ECBs) जैसी वैकल्पिक वित्तीय स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ा, जो डॉलर हेजिंग लागत बढ़ने के कारण महंगे हो गए।
सूक्ष्म ऋणों के लिए संशोधित जोखिम भार
- RBI ने स्पष्ट किया है कि बैंकों द्वारा दिए गए सूक्ष्म ऋणों (Microloans) पर अलग-अलग जोखिम भार होंगे:
- 75% जोखिम भार: नियामकीय खुदरा (Regulatory Retail) या व्यावसायिक ऋणों (Business Loans) पर।
- 100% जोखिम भार: उपभोक्ता ऋण (Consumer Credit), यानी केवल व्यक्तिगत उपभोग के लिए लिए गए ऋणों पर।
- पहले दोनों श्रेणियों पर 125% का जोखिम भार था, जिससे बैंकों में भ्रम की स्थिति बनी हुई थी।
RBI के निर्णय का संभावित प्रभाव
- बैंकों के लिए: जोखिम भार कम होने से बैंकों को कम पूंजी अलग रखनी होगी, जिससे उनकी ऋण देने की क्षमता बढ़ेगी।
- NBFCs के लिए: बैंकों से ऋण लेना आसान होगा, जिससे महंगे वित्तीय स्रोतों पर निर्भरता कम होगी।
- लघु वित्त बैंक और माइक्रोफाइनेंस ऋणदाताओं के लिए: संशोधित जोखिम भार से स्पष्टता मिलेगी और ऋण जोखिम का न्यायसंगत आकलन संभव होगा।