भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 02 दिसंबर 2025 को कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI), एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) और आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) ने डोमेस्टिक सिस्टमैटिक इंपॉर्टेंट बैंक यानी डी-एसआईबी (D-SIB) का दर्जा बरकरार रखा है। ये वे बैंक हैं जिनका देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरा असर है। अगर ये बैंक कभी मुश्किल में पड़े तो पूरे देश की बैंकिंग व्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। इसलिए इन बैंकों को सरकार और RBI थोड़ा सख्त नियमों के तहत रखती है।
इन बैंकों को “Too Big to Fail” यानी इतने बड़े कि विफल नहीं होने दिए जा सकते के रूप में माना जाता है, क्योंकि ये बैंक भारतीय वित्तीय प्रणाली के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
ऐसे बैंक जिनका—
आकार (Size)
सीमा-पार कामकाज (Cross-border presence)
संचालन की जटिलता (Complexity)
परस्पर जुड़ाव (Interconnectedness)
विकल्पों की कमी (Lack of substitutability)
— आर्थिक प्रणाली पर गहरा प्रभाव डालता है, उन्हें प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंक कहा जाता है।
इन बैंकों के असफल होने से देश की वित्तीय स्थिरता, सेवाओं की उपलब्धता और आर्थिक गतिविधियों पर बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए इन्हें नुकसान झेलने की क्षमता बढ़ाने के लिए अतिरिक्त पूंजी (capital) रखनी पड़ती है।
D-SIB ढाँचे के अंतर्गत बैंकों को उनकी प्रणालीगत महत्त्व (Systemic Importance Score) के आधार पर ‘बकेट’ में रखा जाता है। प्रत्येक बकेट के अनुसार अतिरिक्त CET1 पूंजी सुनिश्चित करनी होती है।
| बकेट | बैंक | अतिरिक्त CET1 आवश्यकता |
|---|---|---|
| 5 | कोई नहीं | 1% |
| 4 | SBI | 0.80% |
| 3 | कोई नहीं | 0.60% |
| 2 | HDFC Bank | 0.40% |
| 1 | ICICI Bank | 0.20% |
इसमें SBI को सबसे अधिक अतिरिक्त पूंजी रखनी होगी, उसके बाद HDFC बैंक और ICICI बैंक आते हैं।
D-SIB ढाँचा पहली बार 22 जुलाई 2014 को जारी किया गया था।
इसका संशोधन 28 दिसंबर 2023 को किया गया।
RBI हर वर्ष बैंक डेटा के आधार पर D-SIB सूची जारी करता है।
2025 की सूची 31 मार्च 2025 तक के डेटा पर आधारित है।
पहली बार D-SIB के रूप में शामिल:
2015–16: SBI और ICICI बैंक
2017: HDFC बैंक
2025 में भी सभी बैंक अपने पहले वाले बकेट में ही बने हुए हैं।
यदि कोई विदेशी बैंक, अपने देश के नियामक के अनुसार Global Systemically Important Bank (G-SIB) घोषित होता है, तो भारत में भी उसे अतिरिक्त CET1 पूंजी रखनी होती है।
पूंजी अधिभार का निर्धारण इन आधारों पर होता है:
उसके मूल देश द्वारा तय अतिरिक्त CET1
उसके भारतीय Risk-Weighted Assets (RWAs) का अनुपात
इससे अंतरराष्ट्रीय नियामक मानकों में सामंजस्य बना रहता है।
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