भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) की अध्यक्षता में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने रेपो दर को लगातार 10वीं बार 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा, जबकि एक ‘समायोज्य रुख’ ज़रूरी बनाए रखा। रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी बना रहेगा। केंद्रीय बैंक ने पिछली बार 22 मई, 2020 को नीतिगत दर को एक ऑफ-पॉलिसी चक्र में संशोधित किया था ताकि ब्याज दर को ऐतिहासिक निम्न स्तर पर घटाकर मांग को पूरा किया जा सके।
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भारतीय रिजर्व बैंक ने 8-10 फरवरी, 2022 के बीच 2021-22 के लिए छठी और आखिरी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक आयोजित की। एमपीसी की अगली बैठक 6-8 अप्रैल, 2022 के दौरान निर्धारित है।
सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) दर और बैंक दरें अपरिवर्तित रहती हैं:
आरबीआई की मौद्रिक नीति की मुख्य विशेषताएं और प्रमुख निर्णय:
मौद्रिक नीति समिति की संरचना इस प्रकार है:
मौद्रिक नीति के कुछ महत्वपूर्ण उपकरण:
आरबीआई की मौद्रिक नीति में कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष साधन हैं जिनका उपयोग मौद्रिक नीति को लागू करने के लिए किया जाता है। मौद्रिक नीति के कुछ महत्वपूर्ण उपकरण इस प्रकार हैं:
रेपो दर: यह (फिक्स्ड) ब्याज दर है, जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत सरकार और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों की संपार्श्विक के खिलाफ रातोंरात तरलता उधार ले सकते हैं.
रिवर्स रेपो दर: यह (फिक्स्ड) ब्याज दर है, जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक एलएएफ के तहत पात्र सरकारी प्रतिभूतियों की संपार्श्विकता के खिलाफ रातोंरात बैंकों से तरलता को अवशोषित कर सकता है.
चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ): एलएएफ की रातोंरात और साथ ही इसके अंतर्गत सावधि रिपो नीलामियां हैं. रेपो शब्द इंटर-बैंक टर्म मनी मार्केट के विकास में मदद करता है. यह बाजार ऋण और जमा के मूल्य निर्धारण के लिए मानक निर्धारित करता है. यह मौद्रिक नीति के प्रसारण को बेहतर बनाने में मदद करता है. विकसित बाजार की स्थितियों के अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक परिवर्तनीय ब्याज दर रिवर्स रेपो नीलामी भी करता है.
सीमांत स्थायी सुविधा (MSF): MSF एक प्रावधान है जो अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक से रातोंरात अतिरिक्त धनराशि उधार लेने में सक्षम बनाता है. बैंक अपने वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) पोर्टफोलियो में ब्याज की दंड दर तक सीमित करके ऐसा कर सकते हैं. इससे बैंकों को उनके द्वारा सामना किए गए अप्रत्याशित तरलता झटके को बनाए रखने में मदद मिलती है.
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