केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी वित्तीय वर्ष के लिए 01 फ़रवरी 2025 को केंद्रीय बजट प्रस्तुत करेंगी, जिसमें भारत की वित्तीय रणनीति और प्राथमिकताओं को रेखांकित किया जाएगा। वर्तमान में, केंद्रीय बजट एक व्यापक दस्तावेज़ है जो देश के व्यय और राजस्व संग्रह का पूरा विवरण प्रस्तुत करता है। हालांकि, यह हमेशा ऐसा नहीं था। 2017 से पहले, रेलवे बजट केंद्रीय बजट से अलग प्रस्तुत किया जाता था, जो औपनिवेशिक काल से चली आ रही एक परंपरा थी। 2017 में, तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली और रेलवे मंत्री सुरेश प्रभु ने रेलवे बजट को केंद्रीय बजट में मिला दिया, जिससे भारत की बजटीय प्रक्रिया में ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ।
1924 में, एक्वर्थ समिति (Acworth Committee) की सिफारिशों के आधार पर रेलवे बजट को केंद्रीय बजट से अलग किया गया था। इसका उद्देश्य भारतीय रेलवे को वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करना और इसे एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा संपत्ति के रूप में विकसित करना था। 92 वर्षों तक, रेलवे बजट केंद्रीय बजट से कुछ दिन पहले प्रस्तुत किया जाता था और इसे एक अलग वित्तीय इकाई के रूप में चलाया जाता था।
2016 में, नीति आयोग की एक समिति जिसका नेतृत्व अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय कर रहे थे, ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसके अलावा, बिबेक देबरॉय और किशोर देसाई द्वारा लिखित एक पेपर “Dispensing with the Railway Budget” में यह सुझाव दिया गया कि रेलवे बजट को अलग रखने की परंपरा अब अपनी उपयोगिता खो चुकी है और इससे अनावश्यक जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं। इन सिफारिशों के आधार पर, 2017 में रेलवे बजट को केंद्रीय बजट में विलय कर दिया गया और अरुण जेटली ने पहला संयुक्त बजट प्रस्तुत किया।
रेलवे बजट का केंद्रीय बजट में विलय भारत की वित्तीय नीति में एक महत्वपूर्ण सुधार था, जिसने रेलवे को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान की और एकीकृत परिवहन योजना को बढ़ावा दिया। इससे रेलवे को बुनियादी ढांचे में निवेश करने, वित्तीय बोझ कम करने और संसाधनों के बेहतर उपयोग की स्वतंत्रता मिली। यह निर्णय भारत की दीर्घकालिक आर्थिक विकास रणनीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
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