न्याय प्रणाली को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक अग्रणी कदम उठाते हुए, पंजाब सरकार भारत का पहला ऐसा राज्य बनने जा रही है जो किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत सांकेतिक भाषा दुभाषियों, अनुवादकों और विशेष शिक्षकों को औपचारिक रूप से सूचीबद्ध (इंपैनल) करेगी। यह पहल केवल किशोर न्याय मामलों तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसे बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012 के अंतर्गत आने वाले मामलों तक भी विस्तारित किया जाएगा।
पंजाब की सामाजिक सुरक्षा मंत्री बलजीत कौर ने यह घोषणा की। इस निर्णय का उद्देश्य संचार संबंधी कमियों को दूर करना और वाणी या श्रवण बाधित बच्चों के लिए न्याय और अधिकारों तक पहुँच को मज़बूत करना है।
पंजाब सरकार द्वारा इंपैनल किए गए ये पेशेवर अदालती कार्यवाही के दौरान सहायता प्रदान करेंगे, जिससे संचार संबंधी दिव्यांगता वाले बच्चे अपनी कानूनी लड़ाई में प्रभावी रूप से भाग ले सकें। यह पहल विशेषकर संवेदनशील किशोर मामलों में न्यायसंगत, पारदर्शी और निष्पक्ष परिणाम सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह इंपैनलमेंट संचार में विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को न्याय के और करीब लाएगा, ताकि वे भाषा संबंधी अवरोधों के कारण पीछे न छूटें।
सरकार इन प्रशिक्षित पेशेवरों को पंजाब के सभी जिलों में तैनात करने की योजना बना रही है। इन्हें किशोर न्याय अधिनियम और POCSO अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार वेतन और मानदेय दिया जाएगा, जिससे समय पर और निरंतर सहायता उपलब्ध हो सके।
पंजाब पहले से ही श्रवण-बाधित समुदाय की शासन तक पहुंच को आसान बनाने के प्रयास कर रहा है। राज्य ने पंजाब विधानसभा की महत्वपूर्ण कार्यवाहियों का प्रसारण सांकेतिक भाषा में शुरू किया है, जो सार्वजनिक संस्थानों में समावेशी संचार का एक उदाहरण है।
यह पहल सिर्फ किशोर न्याय तक सीमित नहीं, बल्कि भारत के व्यापक मानवाधिकार एजेंडे के लिए भी महत्वपूर्ण है। सांकेतिक भाषा विशेषज्ञों को न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाकर, पंजाब एक समावेशी कानूनी तंत्र का निर्माण कर रहा है, जहां सुनने और बोलने में असमर्थ बच्चे भी न्याय की प्रक्रिया में पूर्ण रूप से भाग ले सकें।
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