राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने किसानों के अधिकारों पर चार दिवसीय वैश्विक संगोष्ठी का शुभारंभ पूसा, नई दिल्ली में किया। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने समारोह की अध्यक्षता की। इस अवसर पर विभिन्न श्रेणियों में 26 पादप जीनोम संरक्षक पुरस्कार किसानों व संगठनों को प्रदान किए गए। इस मौके पर राष्ट्रपति ने प्लांट अथारिटी भवन का उद्घाटन किया व पौधा किस्मों के पंजीकरण के लिए आनलाइन पोर्टल लांच किया। राष्ट्रपति ने यहां प्रदर्शनी का शुभारंभ कर मंत्रियों के साथ अवलोकन भी किया।
कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री श्री कैलाश चौधरी, सचिव श्री मनोज अहूजा, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक, पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवीएफआरए) के अध्यक्ष डॉ. त्रिलोचन महापात्र, आईटीपीजीआरएफए के सचिव डॉ. केंट ननडोजी, एफएओ के भारत के प्रतिनिधि श्री टाकायुकी, आईसीएआर के पूर्व डीजी डा. आर.एस. परोधा, राजनयिक, संधि के अनुबंध देशोँ के प्रतिनिधि, किसान, वैज्ञानिक, कृषि से जुड़े संगठनों के पदाधिकारी भी उपस्थित रहे। आयोजन में पीपीवीएफआरए, आईसीएआर, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान तथा राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो सहभागी है।
खाद्य एवं कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतरराष्ट्रीय संधि (आईटीपीजीआरएफए), खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ), रोम एवं केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा आयोजित वैश्विक संगोष्ठी के अवसर पर अपने संबोधन में मुर्मु ने कहा कि भारत की समृद्ध कृषि-जैव विविधता वैश्विक समुदाय के लिए एक खजाना रही है। हमारे किसानों ने कड़ी मेहनत व उद्यमपूर्वक पौधों की स्थानीय किस्मों का संरक्षण किया है, जंगली पौधों को पालतू बनाया है एवं पारंपरिक किस्मों का पोषण किया है, जिन्होंने विभिन्न फसल प्रजनन कार्यक्रमों के लिए आधार प्रदान किया है।
जैव विविधता के मामले में भारत की अद्वितीय स्थिति पर प्रकाश डालते हुए, राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि दुनिया के केवल 2.4 प्रतिशत भूमि क्षेत्र पर कब्जा करने के बावजूद, देश सभी दर्ज पौधों और जानवरों की 7-8 प्रतिशत प्रजातियों का घर है। उन्होंने पौधों और प्रजातियों की व्यापक रेंज वाले देशों में से एक के रूप में भारत की स्थिति की सराहना की। राष्ट्रपति मुर्मू के विचार में, कृषि-जैव विविधता की यह संपदा एक वैश्विक संपत्ति रही है।
राष्ट्रपति ने स्थानीय पौधों की किस्मों के संरक्षण, जंगली पौधों को वश में करने और पारंपरिक किस्मों के पोषण में भारतीय किसानों के अथक प्रयासों की सराहना की। इन योगदानों ने फसल प्रजनन कार्यक्रमों की नींव के रूप में काम किया है, जिससे मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए भोजन और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हुई है।
कृषि और प्रौद्योगिकी में प्रगति की ओर अपना ध्यान आकर्षित करते हुए, राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि 1950-51 के बाद से, भारत में खाद्यान्न उत्पादन, बागवानी, मत्स्य पालन, दूध और अंडा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इन प्रगतियों का देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा पर ठोस प्रभाव पड़ा है। उन्होंने इन सफलताओं का श्रेय सरकार द्वारा समर्थित कृषि-जैव विविधता संरक्षकों, मेहनती किसानों, समर्पित वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के सहयोगात्मक प्रयासों को दिया।
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