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पाकिस्तान में 48 साल के चरम पर पहुंची महंगाई

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आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान में मंहगाई 48 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। पाकिस्तान के सांख्यिकी ब्यूरो के मुताबिक, 1 जनवरी 2023 से 1 फरवरी 2023 को मुद्रास्फीति की दर 27.55 फीसदी दर्ज की गई है, जो मई 1975 के बाद से सबसे अधिक है। पाकिस्तान में मंहगाई का ये आंकड़ा तब आया है जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की ओर से बेलआउट पेकेज की योजना पर बातचीत हो रही है।

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पाकिस्तान को विदेशी आयात

 

भुगतान संतुलन के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को विदेशी आयात के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कराची बंदरगाह पर हजारों कार्गो जहाज भुगतान संतुलन के कारण अटके हुए थे, जिससे संकट और बढ़ गया। रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लामाबाद के पास स्टेट बैंक में केवल लगभग 3.7 बिलियन डॉलर बचे हैं, जो केवल तीन सप्ताह के आयात को कवर कर सकते हैं। स्टेट बैंक अभी बुनियादी वस्तुओं के लिए साख पत्र देने में असमर्थ है, बैंक केवल खाने और दवाओं का खर्च कवर करने की स्थिति में है।

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बेल आउट पैकेज

 

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानंमत्री इमरान खान, जिन्हें पिछले साल अविश्वास प्रस्ताव के बाद हटा दिया गया था, उन्होंने 2019 में आईएमएफ से बेल आउट पैकेज (bailout package) पर बातचीत में कामयाब रहे थे, लेकिन उनके सत्ता से हटने के बाद वो डील ठप हो गई। मौजूदा हालात में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस बातचीत को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं।

 

रुपये की कीमत में रिकॉर्ड गिरावट

 

पाकिस्तान में रुपये की कीमत में रिकॉर्ड गिरावट हुई है, जिसके कारण देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ेतरी हुई है। बिखरती अर्थव्यवस्था के बीच शहबाज शरीफ सरकार के पास सभी वर्किंग प्रोजेक्ट को बंद करने, कपड़ा कारखानों को बंद करने और घरेलू निवेशों के बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। इस कारण पाकिस्तान का मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा परेशान है, मजदूर वर्ग रोजाना काम करके किसी तरह अपनी जिंदगी बरस करते हैं।

 

पाकिस्तान में मुद्रास्फीति के राजनीतिक प्रभाव:

 

23 जनवरी को, केंद्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद करने के लिए नीतिगत दर को 100 आधार अंकों से बढ़ाकर 17 प्रतिशत कर दिया – 1998 के बाद से उच्चतम। वित्तीय संकट और अपर्याप्त आपूर्ति के बीच उच्च मुद्रास्फीति दुःस्वप्न बन गई है। यह पीएमएल-एन के नेतृत्व वाली 13-दलीय गठबंधन सरकार की राजनीतिक पूंजी को कम कर रहा है। महंगे बैंक वित्तपोषण के कारण यह न केवल आम लोगों बल्कि उद्योगों और व्यवसायों को भी प्रभावित कर रहा है।

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