ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल हुए PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6–7 जुलाई 2025 को ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन में ब्रिक्स देशों के नेताओं ने वैश्विक सुधारों, शांति और सुरक्षा, बहुपक्षीय सहयोग, तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की बढ़ती भूमिका जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। यह शिखर सम्मेलन इसलिए भी खास रहा क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य ग्लोबल साउथ को मजबूत आवाज देना और विश्व व्यवस्था को अधिक संतुलित और न्यायपूर्ण बनाना था।

वैश्विक शासन और सुरक्षा पर विशेष ध्यान

“वैश्विक शासन सुधार और शांति व सुरक्षा” पर आयोजित सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे वैश्विक संस्थानों में सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि ये संस्थाएं 20वीं सदी में बनी थीं, लेकिन आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए इनका आधुनिकीकरण जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी ने शिखर सम्मेलन घोषणा पत्र में UN सुधारों को लेकर मिले मजबूत समर्थन के लिए अन्य नेताओं का धन्यवाद भी किया।

शांति और सुरक्षा के विषय पर बोलते हुए पीएम मोदी ने बढ़ते आतंकवाद पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह सिर्फ भारत पर नहीं, बल्कि पूरी मानवता पर हमला था। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और आतंकियों को शरण या समर्थन देने वालों को दंडित करने की अपील की।

प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स देशों द्वारा हमले की निंदा किए जाने की सराहना की और ज़ोर देकर कहा कि आतंकवाद के मामले में “शून्य सहिष्णुता” (Zero Tolerance) अपनाई जानी चाहिए और कोई दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए।

वैश्विक संघर्षों के बीच संवाद का आह्वान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में पश्चिम एशिया और यूरोप में जारी संघर्षों को गंभीर चिंता का विषय बताया। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से यह मानता रहा है कि विवादों का समाधान संवाद और कूटनीति के माध्यम से ही होना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत किसी भी शांति प्रयास में योगदान देने के लिए तैयार है।

यह भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका को एक स्थायी और विश्वसनीय शांति समर्थक के रूप में दर्शाता है।

बहुपक्षवाद को मजबूत करना और एआई को बढ़ावा देना

“बहुपक्षीय, आर्थिक-वित्तीय मामलों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)” पर आयोजित दूसरे सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ब्रिक्स को वैश्विक परिवर्तन और अनिश्चितताओं से निपटने के लिए एकजुट रहना होगा। उन्होंने ब्रिक्स को और अधिक प्रभावशाली और मजबूत बनाने के लिए चार प्रमुख सुझाव प्रस्तुत किए:

  1. ब्रिक्स न्यू डेवलपमेंट बैंक को ऐसे प्रोजेक्ट्स को फंड देना चाहिए जो देशों की वास्तविक जरूरतों पर आधारित हों और दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करें।

  2. ब्रिक्स को विज्ञान और अनुसंधान का साझा भंडार (Science and Research Repository) बनाना चाहिए, जो ग्लोबल साउथ के देशों को तकनीकी और वैज्ञानिक सहयोग दे सके।

  3. समूह को महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं (Critical Mineral Supply Chains) को सुरक्षित करना चाहिए ताकि जोखिम कम हो सकें।

  4. ब्रिक्स को उत्तरदायी एआई (Responsible AI) के लिए काम करना चाहिए, जहां नवाचार और शासन के बीच संतुलन बना रहे।

रियो डि जेनेरियो घोषणा पत्र पारित

शिखर सम्मेलन के अंत में सभी सदस्य देशों ने “रियो डि जेनेरियो घोषणा पत्र” को अपनाया, जिसमें वैश्विक सुधारों, शांति, प्रौद्योगिकी और वित्तीय विकास से जुड़े साझा लक्ष्यों को शामिल किया गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने ब्राज़ील के राष्ट्रपति को सद्भावनापूर्ण स्वागत और सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए धन्यवाद भी दिया।

ब्रिक्स ने रियो शिखर सम्मेलन में पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की

ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में 6–7 जुलाई 2025 को आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने एकजुट होकर “रियो घोषणा पत्र” को अपनाया। इस दौरान ब्रिक्स देशों ने पहलगाम आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की और आतंकवाद के प्रति भारत के “शून्य सहिष्णुता” (Zero Tolerance) के आह्वान का समर्थन किया। शिखर सम्मेलन में वैश्विक सुधारों की तात्कालिक आवश्यकता पर भी चर्चा की गई। यह सम्मेलन सुरक्षा, वैश्विक न्याय और समावेशिता जैसे मुद्दों पर ब्रिक्स देशों की बढ़ती एकता को दर्शाता है।

ब्रिक्स ने पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की

ब्रिक्स देशों ने 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को मानवता के खिलाफ अपराध बताया और इसकी कड़ी निंदा की। सदस्य राष्ट्रों ने आतंकवाद के प्रति भारत की “शून्य सहिष्णुता” (Zero Tolerance) की नीति का स्पष्ट समर्थन किया।

रियो घोषणा पत्र में कहा गया कि सीमापार आतंकवाद, आतंकी फंडिंग और आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाहों का वैश्विक स्तर पर विरोध होना चाहिए और इसमें कोई दोहरा मापदंड नहीं अपनाया जाना चाहिए। साथ ही, ब्रिक्स ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्येक देश की यह प्रमुख जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र के भीतर आतंकवाद को रोके, और यह कार्य अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत किया जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन में बोलते हुए सभी नेताओं का समर्थन के लिए धन्यवाद किया और आतंकवाद के खिलाफ कड़े वैश्विक कदमों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि ग्लोबल साउथ, जिसमें भारत भी शामिल है, अक्सर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपनाए गए दोहरे मापदंडों का सबसे बड़ा शिकार रहा है।

वैश्विक सुधारों के लिए पीएम मोदी की मजबूत पहल

17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (6–7 जुलाई 2025, रियो डी जेनेरियो, ब्राज़ील) के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में असमान वैश्विक व्यवस्था पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आज भी दुनिया के कई देश, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ (अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका) के राष्ट्र, महत्वपूर्ण वैश्विक निर्णयों से बाहर रखे जाते हैं।

मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), विश्व व्यापार संगठन (WTO) और वैश्विक वित्तीय संस्थाओं में तत्काल सुधार की मांग की। उन्होंने इन संस्थाओं की तुलना AI के युग में टाइपराइटर से की और कहा कि जब तक वोटिंग अधिकारों, नेतृत्व भूमिकाओं और शासन ढांचे में बदलाव नहीं होंगे, ये संस्थाएँ पुरानी और अप्रभावी बनी रहेंगी।

प्रधानमंत्री ने ज़ोर दिया कि आज भी विश्व की दो-तिहाई आबादी को, विशेषकर अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में, वैश्विक संस्थानों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। यह केवल न्याय का मुद्दा नहीं है, बल्कि इन संस्थाओं को अधिक प्रभावी और विश्वसनीय बनाने का प्रश्न भी है।

इस शिखर सम्मेलन में नए सदस्यों का स्वागत, और स्वास्थ्य, जलवायु और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में नई पहलें शुरू की गईं। ब्रिक्स नेताओं ने एक समावेशी, न्यायपूर्ण और टिकाऊ विश्व व्यवस्था बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई और वैश्विक सुधारों पर एकजुट रुख अपनाया।

न्यायपूर्ण विश्व के लिए एकजुट हुआ ब्रिक्स

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2025 में नेताओं ने “रियो डी जेनेरियो घोषणा पत्र” को अपनाया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र (UN) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी वैश्विक संस्थाओं में बदलाव की मांग की गई। नेताओं ने कहा कि इन संस्थाओं को अधिक न्यायपूर्ण, लोकतांत्रिक और आज की दुनिया के अनुरूप होना चाहिए।

नेताओं ने निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई:

  • राजनीति और सुरक्षा

  • अर्थव्यवस्था और व्यापार

  • संस्कृति और जन-से-जन संबंध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि ग्लोबल साउथ (एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश) को वैश्विक निर्णयों में बड़ी भागीदारी मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि पुरानी संस्थाओं को आधुनिक चुनौतियों के अनुसार अपडेट करना अब समय की मांग है।

नए सदस्य और बड़ी पहलें

इस वर्ष का शिखर सम्मेलन खास रहा क्योंकि इंडोनेशिया आधिकारिक रूप से ब्रिक्स का पूर्ण सदस्य बन गया। साथ ही बेलारूस, नाइजीरिया, क्यूबा और वियतनाम सहित 11 नए देश ब्रिक्स साझेदार के रूप में शामिल हुए। यह विस्तार ब्रिक्स के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और समर्थन को दर्शाता है।

ब्रिक्स नेताओं ने तीन नई पहलें भी घोषित कीं:

  1. ब्रिक्स जलवायु वित्त ढांचा (BRICS Climate Finance Framework)
    – पर्यावरण अनुकूल विकास के लिए देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।

  2. वैश्विक एआई शासकीय वक्तव्य (Global AI Governance Statement)
    – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सुरक्षित और न्यायपूर्ण उपयोग के लिए दिशा-निर्देश।

  3. सामाजिक रूप से निर्धारित रोगों को समाप्त करने की साझेदारी
    – गरीबी और असमानता से जुड़े स्वास्थ्य संकटों से लड़ने के लिए साझा प्रयास।

विकासशील देशों के लिए मजबूत वैश्विक आवाज

ब्रिक्स नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), विश्व बैंक (World Bank) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इन संस्थाओं को विकासशील देशों की जरूरतों और आकांक्षाओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करना चाहिए। नेताओं ने निम्नलिखित बातों की मांग की:

  • न्यायपूर्ण मतदान अधिकार (Fairer Voting Rights)

  • महिलाओं और विभिन्न क्षेत्रों को नेतृत्व में समान भागीदारी

  • शक्तिशाली देशों द्वारा लगाए जाने वाले अनुचित प्रतिबंधों का अंत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की ओर से समावेशी बहुपक्षीयता (Inclusive Multilateralism) का समर्थन किया, जिसमें हर देश — बड़ा हो या छोटा — वैश्विक निर्णयों में अपनी भूमिका निभा सके

शांति, सुरक्षा और डिजिटल भरोसा

ब्रिक्स नेताओं ने वैश्विक शांति और सुरक्षा पर भी चर्चा की।

  • उन्होंने कहा कि संघर्षों का समाधान संवाद से होना चाहिए, हिंसा से नहीं

  • नेताओं ने आतंकवाद, आम नागरिक ढांचे की बर्बादी, और हानिकारक व्यापारिक कार्रवाइयों की कड़ी निंदा की।

डिजिटल दुनिया के संदर्भ में ब्रिक्स ने सहमति व्यक्त की कि:

  • साइबर सुरक्षा के लिए वैश्विक नियम तैयार किए जाएं

  • ऑनलाइन अपराधों को रोका जाए

  • इंटरनेट को खुला, सुरक्षित और स्थिर बनाए रखा जाए

भारत ने स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय बायोबैंक लॉन्च किया

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने 6 जुलाई 2025 को नई दिल्ली स्थित CSIR-IGIB (इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी) में राष्ट्रीय बायोबैंक का उद्घाटन किया। यह नई सुविधा भारत भर के लोगों से स्वास्थ्य और आनुवंशिक (जेनेटिक) डेटा एकत्र करने में मदद करेगी। इसका उद्देश्य बीमारियों की समय रहते पहचान करना और भविष्य में प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत उपचार योजना (पर्सनलाइज़्ड ट्रीटमेंट) को संभव बनाना है।

भारत का पहला राष्ट्रीय बायोबैंक लॉन्च

“फीनोम इंडिया” परियोजना के तहत शुरू किया गया यह राष्ट्रीय बायोबैंक पूरे भारत से 10,000 लोगों का स्वास्थ्य, आनुवंशिक (जैविक), और जीवनशैली से जुड़ा डेटा संग्रह करेगा। यह बायोबैंक यूके बायोबैंक से प्रेरित है, लेकिन इसे विशेष रूप से भारत की विविध जनसंख्या को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया है। एकत्रित डेटा कैंसर, डायबिटीज़, हृदय रोगों और दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों जैसी समस्याओं को समझने में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की मदद करेगा।

कार्यक्रम के दौरान डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जल्द ही ऐसा समय आएगा जब व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल — यानी इलाज व्यक्ति की जीवनशैली और जेनेटिक प्रोफ़ाइल के आधार पर — वास्तविकता बन जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत का अपना डेटा देश के लिए बेहतर, तेज़ और अधिक प्रभावशाली इलाज विकसित करने में मददगार साबित होगा। यह कार्यक्रम नई दिल्ली स्थित CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) में आयोजित किया गया।

भारत की विशिष्ट स्वास्थ्य जरूरतों को समझने में मदद

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारतीयों को कुछ विशेष प्रकार की स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि सेंट्रल ओबेसिटी (पेट के आसपास मोटापा), जो अक्सर बाहर से दिखाई नहीं देता लेकिन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय बायोबैंक ऐसे छिपे हुए स्वास्थ्य जोखिमों की पहचान करने और भारतीय शरीर की बनावट के अनुसार उपयुक्त समाधान तैयार करने में मदद करेगा।
इसके साथ ही उन्होंने वैज्ञानिकों, सरकारी विभागों और उद्योगों के बीच मजबूत साझेदारी की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि शोध को व्यावहारिक उत्पादों और उपचारों में बदला जा सके।

CRISPR और अन्य उन्नत शोध क्षेत्रों में भारत की प्रगति

डॉ. सिंह ने CRISPR आधारित जीनोम संपादन (Genome Editing) के क्षेत्र में भारत में हो रहे कार्यों की सराहना की, खासकर सिकल सेल एनीमिया और लिवर फाइब्रोसिस जैसी बीमारियों के इलाज में। उन्होंने कहा कि भारत अब विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ने वाला देश नहीं रहा, बल्कि अब क्वांटम टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), और जीनोमिक मेडिसिन जैसे क्षेत्रों में नेतृत्व कर रहा है।
बायोबैंक से प्राप्त डेटा इन क्षेत्रों में भविष्य के अनुसंधानों को भी समर्थन देगा।

वैज्ञानिकों की प्रतिक्रियाएँ

  • डॉ. एन. कलैसेल्वी, महानिदेशक, CSIR ने बायोबैंक को एक “शिशु कदम” (baby step) कहा, लेकिन ऐसा जो आगे चलकर वैश्विक स्वास्थ्य अनुसंधान में नेतृत्व कर सकता है। उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों से गहन और विस्तृत स्वास्थ्य डेटा एकत्र करने के महत्व को रेखांकित किया।

  • डॉ. सौविक मैती, निदेशक, CSIR-IGIB, ने संस्थान की जीनोमिक अनुसंधान यात्रा साझा की और बताया कि उन्होंने महिला स्वास्थ्य, COVID-19, दुर्लभ रोगों, और यहां तक कि स्पेस बायोलॉजी (अंतरिक्ष जीवविज्ञान) पर भी काम किया है।

इंडियन बैंक और पीएनबी ने बचत खातों में न्यूनतम बैलेंस न रखने पर लगने वाला जुर्माना हटाया

इंडियन बैंक और पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने बचत खातों में न्यूनतम बैलेंस न रखने पर लगने वाले जुर्माने को समाप्त कर दिया है। यह बदलाव जुलाई 2025 से प्रभावी हुआ है, जिसमें इंडियन बैंक ने 7 जुलाई से और पीएनबी ने 1 जुलाई से यह नियम लागू किया है। इस कदम का उद्देश्य बैंकिंग को देशभर के लोगों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और कम आय वर्ग के लिए अधिक सरल और सुलभ बनाना है।

खाताधारकों के लिए बड़ी राहत

7 जुलाई 2025 से इंडियन बैंक बचत खातों में न्यूनतम बैलेंस न रखने पर कोई जुर्माना नहीं वसूलेगा। इसी तरह, पीएनबी ने 1 जुलाई से ऐसे सभी शुल्क समाप्त कर दिए हैं। यह कदम छात्रों, वरिष्ठ नागरिकों, छोटे दुकानदारों और ग्रामीण परिवारों सहित कई तरह के ग्राहकों को लाभ पहुंचाएगा।

बैंकों का मानना है कि इन शुल्कों को हटाने से अधिक लोग बैंक खाते खोलने और उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। यह वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने की एक बड़ी पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना है।

उधारकर्ताओं के लिए सस्ती ब्याज दरें

न्यूनतम बैलेंस जुर्माना हटाने के साथ ही इंडियन बैंक ने अपने कर्ज पर ब्याज दरों में भी मामूली कटौती की है। 3 जुलाई 2025 से बैंक ने एक साल की एमसीएलआर (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट) को 5 बेसिस प्वाइंट घटाकर 9% कर दिया है। इसका लाभ नए ऋण लेने वाले ग्राहकों को मिलेगा, जिससे उन्हें ब्याज में थोड़ी बचत हो सकेगी।

कमजोर वर्गों को सहारा

पीएनबी ने कहा है कि न्यूनतम बैलेंस शुल्क हटाने से महिलाओं, किसानों और निम्न आय वर्ग के लोगों को विशेष राहत मिलेगी। इन वर्गों के लिए न्यूनतम बैलेंस बनाए रखना अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है, और अब यह राहत उनके आर्थिक बोझ को कम करेगी।

पीएनबी के एमडी और सीईओ अशोक चंद्रा ने कहा,“हम मानते हैं कि इन शुल्कों को हटाने से ग्राहकों पर वित्तीय दबाव घटेगा और वे औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में अधिक भागीदारी करेंगे।”

यह पहल समावेशी बैंकिंग को बढ़ावा देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम मानी जा रही है, जिसका स्वागत देशभर में लाखों ग्राहक करेंगे।

विश्व जूनोसिस दिवस 2025: इतिहास, थीम और महत्व

दुनियाभर में हर साल 6 जुलाई को ‘विश्व जूनोसेस डे’ मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों के प्रति जागरुकता पैदा करना है। इन बीमारियों को जूनोटिक रोग कहा जाता है। इसमें रेबीज, टीबी, स्वाइन फ्लू, और डेंगू जैसे रोग शामिल हैं। विश्व जूनोसिस दिवस हमें यह समझने में मदद करता है कि मानव और पशु स्वास्थ्य आपस में जुड़े हैं, और इन रोगों से बचाव के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं।

जूनोटिक रोग क्या हैं?

जूनोटिक रोग (Zoonotic Diseases) वे बीमारियाँ होती हैं जो जानवरों से मनुष्यों में फैलती हैं। इनके कारण बैक्टीरिया, वायरस, फंगी या परजीवी हो सकते हैं।
प्रमुख उदाहरण:

  • रेबीज़

  • कोविड-19

  • एवियन फ्लू (बर्ड फ्लू)

  • इबोला

  • सालमोनेला संक्रमण

संक्रमण के तरीके:

  • जानवरों को छूने से

  • संक्रमित कीड़ों के काटने से

  • असुरक्षित या अधपका मांस/दूध खाने से

WHO के अनुसार, 75% से अधिक नई मानव बीमारियाँ जानवरों से आती हैं।

शब्दों की समझ:

  • “Zoonosis” = रोग का नाम (जैसे रेबीज़)

  • “Zoonotic” = उस प्रकार की बीमारी का वर्णन (जैसे जूनोटिक वायरस)

इतिहास और उद्देश्य

6 जुलाई 1885 को महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर (Louis Pasteur) ने पहली बार इंसान को रेबीज़ का सफल टीका दिया था। विश्व जूनोसिस दिवस उसी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में हर साल मनाया जाता है।

उद्देश्य:

  • जूनोटिक रोगों के प्रति लोगों को जागरूक करना

  • मानव, पशु और पर्यावरण स्वास्थ्य के बीच संबंध को समझाना

  • One Health दृष्टिकोण को बढ़ावा देना

यह दिवस WHO, FAO, OIE और अन्य वैश्विक संस्थाओं द्वारा समर्थित होता है।

भारत में उठाए गए कदम

भारत सरकार द्वारा जूनोटिक रोगों से निपटने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं:

  1. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP)

    • ब्रूसेलोसिस और खुरपका-मुंहपका रोग रोकने के लिए

  2. मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयाँ (MVUs)

    • ग्रामीण इलाकों में समय पर पशु उपचार और रोगों की पहचान

  3. राष्ट्रीय वन हेल्थ कार्यक्रम (National One Health Programme)

    • इंसान और पशु स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच समन्वय

  4. पशु जन्म नियंत्रण नियम 2023 (Animal Birth Control Rules)

    • आवारा जानवरों की नसबंदी और टीकाकरण (विशेषकर रेबीज़)

  5. टीकाकरण अभियान

    • पालतू और पालतू जानवरों के लिए नियमित टीकाकरण को बढ़ावा देना

आज की दुनिया में इसका महत्व

COVID-19 जैसी महामारियों के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण आपस में गहराई से जुड़े हैं।
विश्व जूनोसिस दिवस:

  • जन जागरूकता बढ़ाता है

  • स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रेरित करता है

  • OpenWHO जैसे प्लेटफॉर्म पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देता है

One Health दृष्टिकोण को आज वैश्विक स्वास्थ्य रणनीति के रूप में अपनाया जा रहा है, ताकि भविष्य में जूनोटिक रोगों को रोका जा सके।

पुरी बनेगा ओडिशा का छठा नगर निगम

ओडिशा के प्रसिद्ध तीर्थ और पर्यटन नगर पुरी को अब नगर निगम (Municipal Corporation) का दर्जा दिया जाएगा। यह घोषणा मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने 5 जुलाई 2025 को बहुदा यात्रा से पहले की। इस फैसले का उद्देश्य उस शहर की आधारभूत सुविधाओं को बेहतर बनाना है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।

पुरी बना ओडिशा का छठा नगर निगम

पुरी अब भुवनेश्वर, कटक, संबलपुर, बेरहामपुर और राउरकेला के बाद ओडिशा का छठा नगर निगम बनेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि नगर निगम का दर्जा मिलने से पुरी में सड़कें, सफाई, जल आपूर्ति, जल निकासी और अन्य नगर सेवाओं में सुधार होगा। इसके अंतर्गत पुरी शहर के आसपास के 7–8 ग्राम पंचायतों को भी शामिल किया जाएगा, जो पुरी सदर और ब्रह्मगिरी ब्लॉकों में आते हैं।

उन्नयन का कारण

मुख्यमंत्री माझी ने बताया कि पुरी की बढ़ती जनसंख्या और साल भर आने वाले भक्तों व पर्यटकों की संख्या को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। वर्तमान नगरपालिका इतने बड़े स्तर की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पा रही है, खासकर रथ यात्रा और बहुदा यात्रा जैसे भव्य आयोजनों के दौरान, जब लाखों लोग इकट्ठा होते हैं। नगर निगम बनने की प्रक्रिया 6 जुलाई 2025 से शुरू की जाएगी।

पुरी के लिए नई परियोजनाएं

नगर निगम की घोषणा के साथ मुख्यमंत्री ने श्री जगन्नाथ संग्रहालय, पुस्तकालय और शोध केंद्र की भी योजना का ऐलान किया।

  • संग्रहालय में भगवान जगन्नाथ से जुड़ी इतिहास, परंपराएं और संस्कृति को कला और मूर्तियों के माध्यम से दर्शाया जाएगा।

  • पुस्तकालय में भगवान जगन्नाथ और ओड़िया संस्कृति से जुड़ी पुस्तकों का संग्रह होगा।

  • शोध केंद्र में इन्हीं विषयों पर अनुसंधान को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

  • इसके अलावा, 300 सीटों वाला ऑडिटोरियम भी बनेगा, जहां भगवान जगन्नाथ की कथाओं पर आधारित लाइट एंड साउंड शो दिखाया जाएगा।

सरकार की 2036 तक की दृष्टि

ओडिशा सरकार का लक्ष्य 2036 तक पुरी को एक प्रमुख आध्यात्मिक और पर्यटन शहर के रूप में विकसित करना है। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक स्वच्छ, हरित और आधुनिक पुरी का निर्माण, एक बेहतर ओडिशा की दिशा में बड़ा कदम होगा। यह घोषणा रथ यात्रा के दौरान की गई और यह सरकार की व्यापक योजना का हिस्सा है, जिसका मकसद पुरी को स्थानीय निवासियों और आगंतुकों दोनों के लिए बेहतर बनाना है।

बैंक धोखाधड़ी जोखिम प्रणाली लागू करें: RBI

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 30 जून 2025 को सभी बैंकों को एक नया सिस्टम अपनाने का निर्देश दिया, जिसका नाम है फाइनेंशियल फ्रॉड रिस्क इंडिकेटर (FRI)। यह उपकरण दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा विकसित किया गया है और इसका उद्देश्य ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी को रोकना है। यह टूल संदिग्ध मोबाइल नंबरों की रीयल-टाइम पहचान में मदद करता है, जिससे बैंकों को अपने ग्राहकों की सुरक्षा करने में आसानी होती है।

क्या है फाइनेंशियल फ्रॉड रिस्क इंडिकेटर (FRI)?

FRI एक डिजिटल उपकरण है जो यह जांचता है कि कोई मोबाइल नंबर धोखाधड़ी में लिप्त है या नहीं। यह नंबरों को मध्यम, उच्च या बहुत उच्च जोखिम की श्रेणियों में वर्गीकृत करता है। इसकी जानकारी कई स्रोतों से आती है जैसे:

  • साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल

  • चक्षु प्लेटफॉर्म

  • बैंकों और एजेंसियों से प्राप्त शिकायतें

बैंक FRI का कैसे इस्तेमाल करेंगे?

RBI ने सभी प्रकार के बैंकों—शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंक, स्मॉल फाइनेंस बैंक, पेमेंट बैंक, और को-ऑपरेटिव बैंक—को अपने सिस्टम को FRI से जोड़ने का निर्देश दिया है। यदि कोई मोबाइल नंबर जोखिम भरा पाया जाता है, तो बैंक:

  • लेनदेन रोक सकते हैं

  • ग्राहक को चेतावनी भेज सकते हैं

  • अन्य सुरक्षा उपाय लागू कर सकते हैं

कुछ बैंक जैसे HDFC बैंक, ICICI बैंक, और डिजिटल ऐप जैसे PhonePe और Paytm पहले से ही इस सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं और उन्हें अच्छे परिणाम मिल रहे हैं।

API के जरिए रीयल-टाइम सुरक्षा

DoT की डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) धोखाधड़ी के लिए डिस्कनेक्ट किए गए मोबाइल नंबरों की सूची (Mobile Number Revocation List – MNRL) तैयार करती है। बैंक API (Application Programming Interface) के माध्यम से इस सिस्टम से जुड़ सकते हैं, जिससे उन्हें रीयल-टाइम में डेटा मिलता है और वे तेजी से निर्णय ले सकते हैं।

डिजिटल बैंकिंग को सुरक्षित बनाने की दिशा में बड़ा कदम

संचार मंत्रालय ने इसे देशव्यापी सामूहिक प्रयास बताया है जो ऑनलाइन धोखाधड़ी से निपटने के लिए शुरू किया गया है। जैसे-जैसे और बैंक FRI को अपनाएंगे, यह भारत की बैंकिंग प्रणाली में एक मानक सुरक्षा उपकरण बन जाएगा। इससे ग्राहकों की धनराशि सुरक्षित रहेगी और डिजिटल बैंकिंग में भरोसा बढ़ेगा।

SBI ने विश्व अर्थव्यवस्था में 44 बिलियन डॉलर जोड़ने में मदद की

एसबीआई रिसर्च की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2024–25 (FY25) में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 297 अरब डॉलर का योगदान दिया, जो कि वैश्विक GDP वृद्धि का 6.7% है। इसमें से अकेले भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने 44 अरब डॉलर यानी 1.1% वैश्विक वृद्धि में हिस्सेदारी निभाई। यह रिपोर्ट न केवल भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत को दर्शाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि एसबीआई जैसी संस्थाएं भारत और वैश्विक दोनों स्तरों पर आर्थिक विकास को गति देने में अहम भूमिका निभा रही हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की बढ़ती भूमिका

FY25 में दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था में $4,118 अरब की वृद्धि हुई, जिसमें भारत की हिस्सेदारी $297 अरब रही। यह दर्शाता है कि भारत अब वैश्विक आर्थिक विकास में एक प्रमुख भागीदार बन चुका है, और कुल वैश्विक वृद्धि का लगभग 7% हिस्सा भारत ने जोड़ा है।

एसबीआई का बड़ा योगदान

एसबीआई ने अपने विशाल एसेट बेस के जरिए FY25 में 44 अरब डॉलर का योगदान दिया, जो वैश्विक GDP वृद्धि का 1.1% है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की GDP वृद्धि में अकेले एसबीआई का योगदान 16% रहा, जो इसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक स्तंभ सिद्ध करता है।

वित्तीय सेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि

एसबीआई ने भारत के वित्तीय सेवा क्षेत्र के सकल मूल्य वर्धन (GVA) में भी 8.7% का योगदान दिया। FY25 में एसबीआई का GVA ₹1,38,533 करोड़ रहा, जो FY24 के ₹1,32,157 करोड़ से बढ़कर आया — यानी सिर्फ एक साल में 5% वृद्धि

भारत की आर्थिक ताकत का उभार

यह रिपोर्ट भारत की मजबूत होती अर्थव्यवस्था की ओर संकेत करती है। भारत अब केवल विकासशील राष्ट्र नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक विकास का प्रमुख इंजन बन रहा है। एसबीआई की यह उपलब्धि भारतीय संस्थानों की क्षमता और योगदान को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने में मदद करती है।

मशरिक बना GIFT सिटी में प्रवेश करने वाला पहला यूएई बैंक

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के प्रमुख बैंक मशरिक (Mashreq) को गुजरात स्थित गिफ्ट सिटी (GIFT City) में शाखा खोलने के लिए इन-प्रिंसिपल अप्रूवल मिल गया है। यह भारत के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) में प्रवेश करने वाला पहला यूएई-आधारित बैंक बन गया है। यह कदम भारत-UAE के बीच वित्तीय सहयोग को मज़बूत करने और अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग गतिविधियों को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

गिफ्ट सिटी में अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग यूनिट

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (आईएफएससीए) ने मशरेक बैंक को गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी) में अपना परिचालन शुरू करने के लिए प्रारंभिक मंजूरी दे दी है। बैंक के अनुसार, वह 2025 के अंत तक पूरी तरह से संचालन शुरू कर देगा। UAE के सेंट्रल बैंक और भारत की संबंधित संस्थाओं से भी सभी आवश्यक अनुमतियाँ मिल चुकी हैं।

बैंक की सेवाएँ और उद्देश्य

गिफ्ट सिटी शाखा का उद्देश्य वैश्विक और सीमा-पार व्यापार से जुड़े ग्राहकों की सेवा करना है। यह शाखा विदेशी मुद्रा में ऋण, व्यापार वित्त, जोखिम प्रबंधन उपकरण जैसी सेवाएं प्रदान करेगी। गिफ्ट सिटी की भौगोलिक स्थिति और समय क्षेत्र का लाभ उठाकर बैंक भारत और खाड़ी देशों के ग्राहकों को तेज़ और सुविधाजनक सेवाएं दे सकेगा। साथ ही, टैक्स में कुछ छूट भी मिलने की उम्मीद है जिससे सेवाएं सस्ती हो सकेंगी।

भारत-UAE वित्तीय संबंध होंगे और मजबूत

मशरिक की मौजूदगी से भारत और यूएई के बीच आर्थिक सहयोग और अधिक गहरा होगा। यह बैंक भारतीय कंपनियों को वैश्विक साझेदारों तक पहुँचने में मदद कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे दोनों देशों के बीच निवेश, व्यापार और पूंजी प्रवाह बढ़ेगा।

गिफ्ट सिटी क्यों बन रही है वैश्विक आकर्षण

गिफ्ट सिटी अपनी आधुनिक सुविधाओं, प्रतिस्पर्धी कर नीति, और अनुकूल नियामक ढांचे के कारण वैश्विक बैंकों के लिए एक आकर्षक हब बनती जा रही है। मशरिक बैंक की एंट्री इस विश्वास को और बढ़ावा देती है कि भारत का वित्तीय ढांचा वैश्विक मानकों पर खरा उतरता है और आने वाले समय में और विदेशी बैंक यहां निवेश कर सकते हैं।

EU ने 2040 के लिए नया जलवायु लक्ष्य तय किया

यूरोपीय संघ (EU) ने 2 जुलाई 2025 को अपने लंबे समय से प्रतीक्षित जलवायु योजना की घोषणा की, जिसके तहत 2040 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 1990 के स्तर की तुलना में 90% तक घटाने का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की ईयू की व्यापक प्रतिबद्धता का हिस्सा है। हालांकि, सभी सदस्य देशों का समर्थन सुनिश्चित करने के लिए इस योजना में कुछ लचीलापन जोड़ा गया है, जिससे विभिन्न देशों में बहस छिड़ गई है।

नया जलवायु लक्ष्य और उसका उद्देश्य

यूरोपीय आयोग ने पुष्टि की है कि 2040 के लिए जलवायु लक्ष्य पहले की तरह ही रहेगा—उत्सर्जन में 90% की कटौती। यह लक्ष्य 2050 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की ईयू की मुख्य योजना की दिशा में एक अहम कदम है, जिसका मतलब है कि यूरोप जितने ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करेगा, उतनी ही या उससे अधिक मात्रा में उन्हें वातावरण से हटाएगा। यह योजना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय यूरोप जलवायु परिवर्तन के कारण हीटवेव जैसी गंभीर स्थितियों का सामना कर रहा है, और वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में ऐसी घटनाएं और भी अधिक सामान्य और खतरनाक होंगी।

योजना में लचीलापन बढ़ने से चिंताएँ

कुछ सदस्य देशों का समर्थन पाने के लिए, जो 90% उत्सर्जन कटौती लक्ष्य को लेकर आशंकित हैं, यूरोपीय संघ की इस योजना में 2036 से कार्बन क्रेडिट के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। इसके तहत देश अपनी कुल उत्सर्जन कटौती का 3% तक हिस्सा यूरोप के बाहर जलवायु-सहायक परियोजनाओं—जैसे वृक्षारोपण या नवीकरणीय ऊर्जा—को फंड करके पूरा कर सकते हैं।

हालांकि, इस प्रस्ताव को लेकर जलवायु कार्यकर्ता नाराज़ हैं। WWF यूरोप और विशेषज्ञ नील मकारॉफ जैसे आलोचकों का कहना है कि यह एक “छुपा हुआ रास्ता” (loophole) बनाता है और यूरोप के भीतर उत्सर्जन घटाने पर से ध्यान हटाता है। उनका मानना है कि इससे यूरोप में हरित निवेश में कमी आ सकती है।

चुनौतियाँ और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

चेक गणराज्य जैसे कुछ देश मानते हैं कि 90% उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य बहुत कठिन है। वहीं, इटली और हंगरी जैसे देश भारी उद्योगों में प्रदूषण कम करने की लागत को लेकर चिंतित हैं—खासकर ऐसे समय में जब यूरोप को चीन और अमेरिका से आर्थिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

इसके बावजूद, ईयू के जलवायु प्रमुख वॉपके हूकस्त्रा ने कहा कि यह योजना “महत्वाकांक्षी” है लेकिन व्यावहारिकता और लचीलापन भी दिखाती है। यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लायन ने कहा कि यह कदम दिखाता है कि यूरोप जलवायु परिवर्तन से लड़ने को लेकर गंभीर है।

अब यह योजना जुलाई के मध्य में यूरोपीय पर्यावरण मंत्रियों द्वारा चर्चा के लिए रखी जाएगी, और 18 सितंबर को वोटिंग होगी। इसके लिए केंद्र-डाएं झुकाव वाले यूरोपीय पीपुल्स पार्टी (EPP) जैसे सांसदों का समर्थन आवश्यक होगा। ईयू उम्मीद कर रहा है कि यह योजना नवंबर में ब्राज़ील में होने वाले COP30 जलवायु सम्मेलन से पहले पारित हो जाएगी।

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