राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) की 62वीं कार्यकारी समिति (EC) की बैठक में गंगा नदी बेसिन के पुनर्जीवन और सतत प्रबंधन को लेकर कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। राजीव कुमार मित्तल की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली से जुड़ी पहलों को अपनाने पर जोर दिया गया, जिनमें वेटलैंड संरक्षण (आर्द्रभूमि) और गंदे पानी के पुनः उपयोग जैसे उपाय शामिल हैं। यह निर्णय नमामि गंगे मिशन के प्रमुख उद्देश्यों के अनुरूप है और एक स्वच्छ और टिकाऊ गंगा पारिस्थितिकी तंत्र की दिशा में अहम कदम है, जिससे पर्यावरण और जल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार होगा।
समाचार में क्यों?
- यह मंजूरी ऐसे समय में आई है जब नमामि गंगे कार्यक्रम को वैश्विक स्तर पर नदी बेसिन पुनर्जीवन के प्रभावी प्रयासों के रूप में सराहा जा रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र के दशक (UN Decade) ने इस कार्यक्रम को दुनिया की “शीर्ष 10 पारिस्थितिकी बहाली प्रमुख पहलों” (Top TEN World Restoration Flagship Initiatives) में शामिल किया है।
- यह मान्यता यह दर्शाती है कि इस प्रकार की परियोजनाएँ पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्स्थापित करने और जल गुणवत्ता सुधारने में कितना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
उद्देश्य और लक्ष्य
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NMCG का उद्देश्य एक स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ गंगा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
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जैव विविधता संरक्षण (biodiversity conservation) को शामिल करना और पूरे गंगा बेसिन में प्रभावी जल प्रबंधन को बढ़ावा देना।
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आर्द्रभूमि बहाली (wetland restoration) और अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग (wastewater reuse) जैसी समाधान-आधारित रणनीतियाँ अपनाना, ताकि पर्यावरण प्रदूषण में कमी लाई जा सके।
स्वीकृत प्रमुख परियोजनाएं
आर्द्रभूमि संरक्षण परियोजनाएं
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बिहार के भोजपुर जिले में स्थित नाथमलपुर भगद वेटलैंड के सतत प्रबंधन के लिए ₹3.51 करोड़ की मंजूरी दी गई है।
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यह नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत स्वीकृत पांचवां वेटलैंड प्रोजेक्ट है, जो उत्तर प्रदेश और झारखंड में पहले से चल रही परियोजनाओं के पूरक के रूप में कार्य करेगा।
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मुख्य गतिविधियाँ:
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वेटलैंड की स्पष्ट सीमांकन (delineation)
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प्रजातियों का संरक्षण (species conservation)
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जोखिम मूल्यांकन (risk evaluation)
इनसे दीर्घकालिक पारिस्थितिकी स्वास्थ्य सुनिश्चित होगा।
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गंदे पानी के पुनः उपयोग की पहल
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उत्तर प्रदेश के आगरा और प्रयागराज में जल पुनः उपयोग के लिए सिटी प्लान तैयार करने और प्रशिक्षण आयोजित करने हेतु ₹34.50 लाख की परियोजना को मंजूरी मिली।
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यह परियोजना “उपचारित जल के सुरक्षित पुनः उपयोग के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा” (SRTW) के अनुरूप कार्य करेगी और सतत जल उपयोग को बढ़ावा देगी।
पृष्ठभूमि और महत्व
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नमामि गंगे कार्यक्रम, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख योजना है, जिसने अब तक गंगा की जल गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र में उल्लेखनीय सुधार किए हैं — जिसमें नदी तटों का विकास, अपशिष्ट जल उपचार, और संरक्षण प्रयास शामिल हैं।
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संयुक्त राष्ट्र पारिस्थितिकी तंत्र बहाली दशक (UN Decade of Ecosystem Restoration) ने इस कार्यक्रम को विश्व के प्रमुख नदी बेसिन पुनर्जीवन प्रयासों में शामिल किया है, जिससे भारत सरकार को अपने पर्यावरणीय प्रयासों को और बढ़ावा देने की प्रेरणा मिली है।
नदी बेसिन और पारिस्थितिकी पर प्रभाव
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ये परियोजनाएँ गंगा और इसकी सहायक नदियों के पारिस्थितिकी स्वास्थ्य में सीधे सुधार लाएँगी, जिससे विविध प्रजातियों को समर्थन मिलेगा और महत्वपूर्ण वेटलैंड बहाल होंगे।
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जल पुनः उपयोग रणनीतियों के समावेश से जल संकट को प्रबंधित करने और नदी प्रदूषण में कमी लाने में मदद मिलेगी।
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दीर्घकालिक सफलता के लिए सामुदायिक भागीदारी, क्षमता निर्माण, और निगरानी तंत्र पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा।
सारांश/स्थैतिक जानकारी | विवरण |
समाचार में क्यों? | “गंगा पुनर्जीवन के लिए प्रमुख परियोजनाओं को NMCG की 62वीं कार्यकारी समिति बैठक में स्वीकृति” |
कार्यक्रम का नाम | नमामि गंगे कार्यक्रम |
मुख्य उद्देश्य | गंगा बेसिन में नदी और पारिस्थितिकी तंत्र का सतत पुनर्जीवन |
स्वीकृत प्रमुख परियोजनाएं | आर्द्रभूमि (वेटलैंड) संरक्षण, गंदे पानी का पुनः उपयोग, क्षमता निर्माण |
आवंटित वित्तपोषण | ₹3.51 करोड़ वेटलैंड परियोजनाओं के लिए; ₹34.50 लाख जल पुनः उपयोग योजनाओं के लिए |
प्रमुख परियोजना | नाथमलपुर भगद वेटलैंड (बिहार), आगरा व प्रयागराज जल पुनः उपयोग योजना |
मान्यता | संयुक्त राष्ट्र दशक द्वारा “शीर्ष 10 वैश्विक पुनर्स्थापना प्रमुख पहल” में शामिल |