केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF) ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची III के तहत नीलकुरिंजी (स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना) को संरक्षित पौधों की सूची में शामिल किया है। आदेश के अनुसार, इस पौधे को उखाड़ने या नष्ट करने वालों पर तीन साल की कैद के साथ 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। नीलकुरिंजी की खेती और इस पर हक़ जताने की अनुमति नहीं है। नीलकुरिंजी का खिलना पर्यटकों के लिए एक मुख्य आकर्षण है, जो उन स्थानों पर आते हैं जहां यह खिलता है। हालाँकि, इससे पौधे का विनाश भी हुआ है, जो इस फूल के क्षेत्रों के लिए एक बड़ा खतरा है।
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केरल के नीलगिरी पहाड़ियों में हर 12 साल के बाद नीलकुरिंजी के फूल खिलते हैं। यह फूल दुनिया के कुछ असाधारण फूलों में से एक हैं। पर्यटकों को इन फूलों की खूबसूरती को देखने के लिए 12 साल का इंतजार करना पड़ता है। बता दें कि केरल स्थित मुन्नार को नीलकुरिंजी फूलों का सबसे बड़ा घर माना जाता है। करीब 3000 हेक्टेयर में घुमवादार पहाड़ियों वाला मुन्नार दक्षिण भारत के सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है। नीलकुरिंजी के फूल मुन्नार की सुंदरता को और बढ़ा देते हैं। केरल के लोग इस फूल को कुरिंजी कहते हैं। ये स्ट्रोबिलेंथस की एक किस्म है। दुनिया में नीलकुरिंजी की लगभग 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। साल 2006 में केरल के जंगलों का 32 वर्ग किलोमीटर इलाका इस फूल के संरक्षण के लिए सुरक्षित रखा गया था। इसे कुरिंजीमाला सैंक्चुअरी का नाम दिया गया। यह आमतौर पर 1,300-2,400 मीटर की ऊँचाई पर उगता है।
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भूपेंद्र यादव
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