भारत लंबे समय से कलात्मक अभिव्यक्ति का एक जीवंत केन्द्र रहा है, जिसका देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विविधता को दर्शाते हुए लोक कला का समृद्ध इतिहास है। प्राचीन चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिरों और जटिल भित्तिचित्रों से लेकर भव्य सार्वजनिक मूर्तियों और जीवंत स्ट्रीट आर्ट तक, भारत के परिदृश्य हमेशा कलात्मक चमत्कारों से सुशोभित रहे हैं। ऐतिहासिक रूप से, कला दैनिक जीवन, धार्मिक कार्यों और सामाजिक रीति-रिवाजों के साथ गहराई से जुड़ी हुई है, जो नृत्य, संगीत, रंगमंच और दृश्य कला जैसे विभिन्न तरीकों से प्रकट होती है।
प्रोजेक्ट पीएआरआई (भारत की सार्वजनिक कला), भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की एक पहल है, जिसे ललित कला अकादमी और राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य आधुनिक विषयों और तकनीकों को शामिल करते हुए हजारों साल की कलात्मक विरासत (लोक कला/लोक संस्कृति) से प्रेरणा लेने वाली लोक कला को सामने लाना है। ये अभिव्यक्तियाँ भारतीय समाज में कला के अंतर्निहित मूल्य को रेखांकित करती हैं, जो रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए राष्ट्र की स्थायी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
प्रोजेक्ट पीएआरआई के तहत पहला कार्य दिल्ली में हो रहा है। यह आयोजन विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र के साथ मेल खाता है, जो 21-31 जुलाई 2024 के बीच नई दिल्ली, भारत में आयोजित किया जाना है।
सार्वजनिक स्थानों पर कला का प्रतिनिधित्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के माध्यम से कला की पहुंच बढ़ाना शहरी परिदृश्यों को सुलभ दीर्घाओं में बदल देता है, जहाँ कला पारंपरिक स्थानों जैसे संग्रहालयों और दीर्घाओं की सीमाओं को पार कर जाती है। सड़कों, पार्कों और पारगमन केन्द्रों से कला को जोड़कर, ये पहल सुनिश्चित करती हैं कि कलात्मक अनुभव सभी के लिए उपलब्ध हों। यह समावेशी दृष्टिकोण एक साझा सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देता है और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ाता है, नागरिकों को अपने दैनिक जीवन में कला से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता है।
परियोजना पीएआरआई का उद्देश्य संवाद, प्रतिबिंब और प्रेरणा को प्रोत्साहित करना है, जो देश के गतिशील सांस्कृतिक ताने-बाने में योगदान देता है।
इस परियोजना के तहत तैयार की जा रही विभिन्न वॉल पेंटिंग, भित्ति चित्र, मूर्तियां और महत्वपूर्ण कार्यों को करने के लिए देश भर के 150 से अधिक दृश्य कलाकार एक साथ आए हैं। रचनात्मक कैनवास में फड़ चित्रकला (राजस्थान), थंगका पेंटिंग (सिक्किम/लद्दाख), मिनीयेचर पेंटिंग(हिमाचल प्रदेश), गोंड आर्ट (मध्य प्रदेश), तंजौर पेंटिंग (तमिलनाडु), कलमकारी (आंध्र प्रदेश), अल्पना कला (पश्चिम बंगाल), चेरियल चित्रकला (तेलंगाना), पिछवाई पेंटिंग (राजस्थान), लांजिया सौरा (ओडिशा), पट्टचित्र (पश्चिम बंगाल), बानी थानी पेंटिंग (राजस्थान), वरली (महाराष्ट्र), पिथौरा आर्ट (गुजरात), ऐपण (उत्तराखंड), केरल भित्ति चित्र (केरल), अल्पना कला (त्रिपुरा) आदि शैलियों से प्रेरित और/या चित्रित कलाकृतियां शामिल हैं।
प्रस्तावित 46वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक के अनुरूप कुछ कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ विश्व धरोहर स्थलों जैसे बीमबेटका और भारत में 7 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों से प्रेरणा लेती हैं, जिन्हें प्रस्तावित कलाकृतियों में विशेष स्थान दिया गया है।
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