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विदेश मंत्रालय और एनएसआईएल ने नेपाली मुनाल उपग्रह के प्रक्षेपण हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए

विदेश मंत्रालय और एनएसआईएल ने नेपाली मुनाल उपग्रह के प्रक्षेपण हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए |_3.1

विदेश मंत्रालय और इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) ने नेपाल निर्मित मुनाल उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए सहायता देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। एक आधिकारिक बयान में यह जानकारी दी गयी।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि मुनाल नेपाल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अकादमी (एनएएसटी) के तत्वावधान में विकसित एक स्वदेशी उपग्रह है। नेपाली अंतरिक्ष स्टार्टअप अन्तरिक्षीय प्रतिष्ठान नेपाल (एपीएन) ने इस उपग्रह के डिजाइन और निर्माण में नेपाली विद्यार्थियों की सहायता की है।

उपग्रह का उद्देश्य

विदेश मंत्रालय ने बयान में बताया कि उपग्रह का उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर वनस्पति घनत्व के आंकड़े जुटाना है। विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (उत्तर) अनुराग श्रीवास्तव और एनएसआईएल के निदेशक अरुणाचलम ए ने इस ज्ञापन समझौते पर हस्ताक्षर किए।

बयान के मुताबिक, इस उपग्रह को जल्द ही एनएसआईएल के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान से प्रक्षेपित किए जाने की उम्मीद है।

उपग्रह और उसके प्रक्षेपण का विवरण

अंतरिक्ष स्टार्टअप अन्तरिक्षीय प्रतिष्ठान नेपाल (APN) की मदद से डिजाइन और निर्मित मुनाल उपग्रह को आने वाले महीनों में NSIL के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) से प्रक्षेपित किए जाने की उम्मीद है। यह जनवरी में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की नेपाल यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित प्रक्षेपण सेवा समझौते के बाद हुआ है।

प्रतिभागी और प्रभाव

एमओयू हस्ताक्षर समारोह में एनएएसटी सचिव रवींद्र प्रसाद ढकाल, नेपाल दूतावास के प्रभारी सुरेंद्र थापा और एपीएन के संस्थापक आभास मास्की जैसे प्रमुख व्यक्ति शामिल थे। यह सहयोग नेपाल-भारत संबंधों को मजबूत करने को रेखांकित करता है, जो अंतरिक्ष अनुसंधान तक विस्तारित है। थापा के अनुसार, यह साझेदारी दोनों देशों के बीच गहरे होते संबंधों का प्रतीक है, जबकि ढकाल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उपग्रह नेपाल में अंतरिक्ष अनुसंधान में क्या मूल्य लाएगा।

भविष्य की संभावनाएँ

मुनल उपग्रह में एआई-समर्थित इमेजरी फ़ंक्शन हैं और इससे नेपाल की अंतरिक्ष अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। यह भागीदारी नेपाल और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच संभावित भविष्य के सहयोग को दर्शाती है, जो छोटे उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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