Janjatiya Gaurav Divas 2025: भारत में प्रतिवर्ष 15 नवंबर को “जनजातीय गौरव दिवस” (Janjatiya Gaurav Divas) मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य विशेषकर भगवान बिरसा मुंडा जैसे महान जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को सम्मान देना है। वर्ष 2025 का आयोजन “जनजातीय गौरव वर्ष” का हिस्सा है, जो बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जा रहा है। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद और सामंती शोषण के विरुद्ध एक शक्तिशाली जनजातीय आंदोलन का नेतृत्व किया था।
बिरसा मुंडा (1875–1900) झारखंड के मुंडा समुदाय से थे। वे एक महान जनजातीय नेता, सामाजिक सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें “धरती आबा” (धरती के पिता) के रूप में सम्मानित किया जाता है।
उनका जन्म चोटानागपुर के उलिहातू गाँव में हुआ था। जर्मन मिशनरी स्कूल में पढ़ाई के दौरान उन्होंने महसूस किया कि—
मिशनरियों का धार्मिक प्रभाव,
ब्रिटिश वन कानूनों के कारण जनजातियों की भूमि छिनना,
जमींदारी व्यवस्था का शोषण
इन सभी ने उनमें प्रतिरोध की भावना को जागृत किया।
उन्होंने बिरसाइट पंथ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जनजातीय पहचान को पुनर्जीवित करना और सामाजिक सुधार लाना था। वे इसके माध्यम से—
शराबबंदी,
टोनाटनका (काला जादू) का विरोध,
नैतिकता व सम्मान बढ़ाने
जैसे सुधारों की वकालत करते थे।
बिरसा मुंडा ने उलगुलान, एक बड़े जनजातीय विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसका उद्देश्य था—
वन अधिकारों को पुनः प्राप्त करना,
ब्रिटिश शासन को चुनौती देना,
जनजातीय स्वशासन की स्थापना।
इस आंदोलन के दौरान उन्होंने ब्रिटिश प्रतिष्ठानों पर हमले किए और आर्थिक एवं सांस्कृतिक शोषण के विरुद्ध जनप्रतिरोध का प्रतीक बने। उन्हें 1895 में गिरफ्तार किया गया, बाद में छोड़ा गया, और दोबारा 1899 के विद्रोह के दौरान पकड़ा गया। 1900 में रांची जेल में मात्र 25 वर्ष की आयु में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गई।
बिरसा मुंडा आज भी जनजातीय गर्व और आत्मसम्मान के प्रतीक हैं। उनकी स्मृति में—
बिरसा मुंडा एयरपोर्ट (रांची),
बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी,
भगवान बिरसा मुंडा जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय (2021 में उद्घाटित)
स्थापित किए गए हैं। वे आज भी जनजातीय अधिकार आंदोलनों को प्रेरित करते हैं।
भारत सरकार ने 2024–25 को जनजातीय गौरव वर्ष घोषित किया है। 1–15 नवंबर के बीच देशभर में—
सांस्कृतिक उत्सव और जनजातीय भाषा कार्यशालाएँ,
जनजातीय आंदोलनों पर फोटो प्रदर्शनी,
जनजातीय नायकों पर सिम्पोसियम,
विद्यालयीय प्रतियोगिताएँ और सामुदायिक कार्यक्रम
आयोजित किए गए। गुजरात, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, मेघालय और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने सक्रिय रूप से इन आयोजनों में भाग लिया।
देशभर में 11 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित किए जा रहे हैं, जिनमें—
रांची (झारखंड) – बिरसा मुंडा संग्रहालय
रायपुर (छत्तीसगढ़) – वीर नारायण सिंह संग्रहालय
जबलपुर व छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) – राजा शंकर शाह व बादल भोई संग्रहालय
अन्य राज्यों में: केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, गोवा, गुजरात
ये संग्रहालय हल्बा विद्रोह, सरगुजा आंदोलन, परलकॉट विद्रोह और भूमकल क्रांति जैसे प्रमुख जनजातीय आंदोलनों का दस्तावेजीकरण करते हैं।
जनजातीय ज्ञान और विरासत को बढ़ावा देने के लिए कई नई डिजिटल परियोजनाएँ शुरू की गई हैं—
आदि संस्कृति: जनजातीय कला और इतिहास के लिए शिक्षण मंच
आदि वाणी: जनजातीय भाषाओं का अनुवाद करने वाला AI आधारित उपकरण
ट्राइबल डिजिटल रिपॉजिटरी: जनजातीय शोध और परंपराओं का केन्द्रीय डेटाबेस
ओरल लिटरेचर प्रोजेक्ट: लोककथाओं, उपचार पद्धतियों व पारंपरिक कृषि ज्ञान का संरक्षण
मनाया जाता है: 15 नवंबर को प्रतिवर्ष
मुख्य व्यक्तित्व: बिरसा मुंडा (1875–1900)
उपाधि: “धरती आबा”
नेतृत्व किया: उलगुलान आंदोलन (1899–1900)
मृत्यु: रांची जेल, 1900
जनजातीय संग्रहालय: 11 स्थानों पर
सरकारी पहलें: आदि संस्कृति, आदि वाणी, ट्राइबल रिपॉजिटरी
वर्ष घोषित: 2024–25 – जनजातीय गौरव वर्ष
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