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जयशंकर ने वियतनाम में रबींद्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का अनावरण किया

जयशंकर ने वियतनाम में रबींद्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का अनावरण किया |_3.1

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने वियतनाम के बाक निन्ह में रबींद्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का अनावरण किया। इस दौरान जयशंकर ने कहा कि मुझे यह जानकर खुशी हुई कि रबींद्रनाथ टैगोर की कृतियों को वियतनाम में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है, पूरे देश में पढ़ा और सराहा जाता है। यहां तक कि वियतनामी पाठ्यपुस्तकों में भी शामिल किया गया है। यह जानकर वाकई खुशी हुई कि टैगोर की गीतांजलि का वियतनामी में अनुवाद किया गया है। भारत और वियतनाम के बीच बौद्ध धर्म की विरासत में निहित एक गहरा ऐतिहासिक संबंध है।

विदेश मंत्री ने टैगोर की आवक्ष प्रतिमा का अनावरण करते हुए कहा कि भारत और वियतनाम के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंध लगभग 2,000 साल पुराने हैं, जो बौद्ध धर्म की विरासत से जुड़े हैं। आज एक असाधारण भारतीय व्यक्तित्व गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के सम्मान में एक और उल्लेखनीय स्मारक की स्थापना की गई है। टैगोर एक प्रसिद्ध चित्रकार, शिक्षक, मानवतावादी, संगीतकार और एक बहुत ही गहन विचारक थे।

 

गीतांजलि का वियतनामी में अनुवाद

विदेश मंत्री ने कहा कि यह जानकर वाकई खुशी हुई कि टैगोर की गीतांजलि का वियतनामी में अनुवाद किया गया और इसे 2001 में प्रकाशित किया गया। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि टैगोर ने 1929 में हो ची मिन्ह सिटी की तीन दिवसीय यात्रा की थी, जिसका वियतनाम पर एक स्थायी बौद्धिक और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा।

 

गीतांजलि टैगोर की सबसे प्रसिद्ध कृति

कविता संग्रह गीतांजलि टैगोर की सबसे प्रसिद्ध कृति है, जो 1910 में भारत में प्रकाशित हुई थी। टैगोर को इसके अंग्रेजी अनुवाद ‘सॉन्ग ऑफरिंग्स’ के लिए साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और वह 1913 में यह सम्मान पाने वाले पहले गैर-यूरोपीय बने थे। जयशंकर ने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि वियतनाम ने 1982 में टैगोर के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। जयशंकर रविवार को वियतनाम पहुंचे। वियतनाम से वह सिंगापुर जाएंगे।

 

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FAQs

रवींद्रनाथ टैगोर क्यों प्रसिद्ध है?

कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। विश्वविख्यात महाकाव्य गीतांजलि की रचना के लिये उन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाले वे अकेले भारतीय हैं। गुरुदेव बहुआयामी प्रतिभा वाली शख़्सियत थे।