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सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला मिशन आदित्य-एल1 जून-जुलाई तक लॉन्च किया जाएगा: इसरो अध्यक्ष

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भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (आईआईए) ने इसरो को ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (वीईएलसी) सौंप दिया, जिसे सूर्य के अध्ययन के लिए देश के प्रथम विशेष वैज्ञानिक अभियान ‘आदित्य एल1’ के जरिये अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। आदित्य एल1 के जरिये भेजा जाने वाला यह सबसे बड़ा उपकरण है। आदित्य एल1 मिशन जून या जुलाई में प्रस्तावित है। वीईएलसी को औपचारिक रूप से इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ को आईआईए के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अनुसंधान व प्रौद्योगिकी केंद्र (सीआरईएसटी) परिसर में सौंप दिया गया।

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आईआईए ने कहा कि इसने वीईएलसी की जांच सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। इसने एक बयान में कहा कि इसरो वीईएलसी की आगे की जांच करेगा और इसे आदित्य एल1 अंतरिक्ष यान के साथ जोड़ा जाएगा। वीईएलसी टीम को बधाई देते हुए सोमनाथ ने कहा कि आदित्य एल-1 को जून या जुलाई में प्रक्षेपित किए जाने की उम्मीद है। आदित्य एल1 सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के ‘लैगरेंगियन प्वाइंट1’ के पास स्थित एक कक्षा से सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का प्रथम अंतरिक्ष मिशन है।

क्या है ये मिशन?

आदित्य-एल1 मिशन पूरी तरह से सूरज को केंद्रित करके बनाया गया है। इस मिशन के तहत इसरो आदित्य-एल1 को ऑर्बिट एल-1 में लॉन्च करेगी। दरअसल, ये वही ऑर्बिटल है जो सूरज और पृथ्वी के बीच का पहला लाग्रंगियन पॉइन्ट है। लाग्रंगियन पॉइन्ट अंतरिक्ष में एक ऐसी स्थिति होती है, जो पृथ्वी से भेजी गई चीज को वहां रोके रखती है। इस जगह पर गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव और कक्षा की गति संतुलित रहती है।

 

आदित्य-एल1 के बारे में

आदित्य-एल1 एक ऐसा स्पेक्राफ्ट है जिसमें सात पेलोड हैं। इसमें प्राइमरी पेलोड विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ है। इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरु द्वारा डिजाइन और निर्मित गया है। आपको बता दे, सैटेलाइट में लगे पेलोड का मतलब होता है, सैटेलाइट द्वारा ले जाए जाने वाले साइंटिफिक उपकरण, जिनका इस्तेमाल इस मिशन में इसरो द्वारा किया जाएगा।

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FAQs

सूर्य का जन्म कैसे हुआ?

सूर्य एक विशाल आणविक बादल के हिस्से के ढहने से करीब 4.57 अरब वर्ष पूर्व गठित हुआ है जो अधिकांशतः हाइड्रोजन और हीलियम का बना है और शायद इन्ही ने कई अन्य तारों को बनाया है।

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