हर साल 1 मई को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस, जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस भी कहा जाता है, मनाया जाता है। यह दिन सभी क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के योगदान को सम्मानित करने और उनके अधिकारों को मान्यता देने का अवसर होता है। यह केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि श्रमिक अधिकारों, निष्पक्ष श्रम नीतियों और सुरक्षित तथा समान कार्यस्थलों की आवश्यकता को रेखांकित करने का दिन भी है। वर्ष 2025 में यह दिवस विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह ऐसे समय में मनाया जा रहा है जब वैश्विक स्तर पर श्रमिक सुरक्षा को मजबूत करने के प्रयास तेज़ हो रहे हैं — विशेष रूप से स्वचालन (ऑटोमेशन) और अनौपचारिक रोज़गार जैसी आधुनिक कार्यस्थल चुनौतियों के बीच।
समाचार में क्यों है?
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस 2025 गुरुवार, 1 मई को विश्वभर में मनाया जाएगा। यह दिन वैश्विक श्रम शक्ति के प्रयासों, बलिदानों और उपलब्धियों को मान्यता देने के लिए समर्पित है और यह उन ऐतिहासिक संघर्षों की याद दिलाता है जिनके कारण आज श्रमिकों को कई अधिकार और सुरक्षा प्राप्त हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस की जड़ें 19वीं सदी के अंत में अमेरिका के श्रमिक आंदोलन में हैं। 1 मई 1886 को हज़ारों अमेरिकी श्रमिकों ने आठ घंटे कार्यदिवस की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी हड़ताल शुरू की थी।
यह आंदोलन शिकागो के हेमार्केट कांड के दौरान हिंसक हो गया, जिसमें बम विस्फोट के कारण सात पुलिसकर्मी और कम से कम चार नागरिक मारे गए। 1889 में, सेकंड इंटरनेशनल ने इस ऐतिहासिक संघर्ष की स्मृति में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस घोषित किया।
भारत में मज़दूर दिवस
भारत में पहली बार मज़दूर दिवस 1923 में चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान द्वारा कॉमरेड सिंगारवेलु चेट्टियार के नेतृत्व में मनाया गया था। इसी अवसर पर पहली बार मज़दूर अधिकारों के प्रतीक के रूप में लाल झंडा फहराया गया था।
यह दिन महाराष्ट्र दिवस और गुजरात दिवस के साथ भी संयोग रखता है, जो 1960 में इन राज्यों के गठन की स्मृति में मनाए जाते हैं।
मज़दूर दिवस से जुड़े रोचक तथ्य
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मज़दूर दिवस की शुरुआत अमेरिका से हुई, फिर भी अमेरिका और कनाडा में यह 1 मई को नहीं बल्कि सितंबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है।
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80 से अधिक देश आधिकारिक रूप से 1 मई को मज़दूर दिवस मनाते हैं।
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कनाडा में पहला मज़दूर दिवस 1872 में मनाया गया था, जो अमेरिका से भी पहले है।
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श्रमिक आंदोलनों के साथ लाल रंग को वैश्विक रूप से जोड़ा जाता है और रैलियों व कार्यक्रमों में इसका उपयोग आम है।
भारत में श्रम कानून – संरचना और सुधार
हाल के वर्षों में भारत के श्रम कानून ढांचे में बड़ा समेकन हुआ है।
चार श्रम संहिता (Labour Codes):
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वेतन संहिता, 2019 – न्यूनतम वेतन, समय पर वेतन भुगतान, बोनस और समान वेतन का प्रावधान।
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औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 – ट्रेड यूनियन, हड़ताल और श्रमिक-नियोक्ता विवाद निवारण।
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सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 – पीएफ, ईएसआई, मातृत्व लाभ, ग्रेच्युटी और गिग वर्कर्स के लिए सुरक्षा।
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व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता, 2020 – कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य मानक और कार्य के घंटे।
भारतीय संविधान और श्रमिक अधिकार
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अनुच्छेद 23 और 24: बंधुआ मज़दूरी और बाल मज़दूरी पर रोक।
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अनुच्छेद 39: समान कार्य के लिए समान वेतन।
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अनुच्छेद 41 और 43: काम का अधिकार, सुरक्षित रोजगार और जीवनयापन योग्य वेतन।
भारत ने प्रमुख ILO (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन) संधियों की भी पुष्टि की है:
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संधि 138: न्यूनतम आयु
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संधि 182: बाल श्रम के सबसे ख़राब रूपों पर रोक
भारत में प्रमुख श्रम अधिकार
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उचित और समय पर वेतन पाने का अधिकार
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सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार
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ट्रेड यूनियन बनाने और उसमें शामिल होने का अधिकार
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सामाजिक सुरक्षा लाभों का अधिकार
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कार्यस्थल पर भेदभाव से सुरक्षा
सरकार की प्रमुख पहलें
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ई-श्रम पोर्टल: असंगठित श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस।
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पीएम श्रम योगी मानधन योजना: असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए पेंशन योजना।
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मनरेगा: ग्रामीण परिवारों को साल में 100 दिन का वेतनयुक्त रोजगार।
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नेशनल करियर सर्विस (NCS): नौकरी चाहने वालों और नियोक्ताओं के लिए प्लेटफॉर्म।
मज़दूर दिवस 2025 का महत्व
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श्रमिक अधिकारों को सुदृढ़ करता है: मानवतापूर्ण कार्यघंटे, सम्मान और नौकरी की सुरक्षा की मांग करता है।
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पिछली उपलब्धियों का उत्सव: सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल सुरक्षा में प्रगति।
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वैश्विक एकता का प्रतीक: दुनिया भर के श्रमिकों की एकजुटता का दिन।
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नई चुनौतियों को उजागर करता है: ऑटोमेशन, गिग इकॉनमी, जलवायु परिवर्तन और दूरस्थ कार्य।
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सुधारों को प्रोत्साहित करता है: नए श्रम कोड्स के प्रभावी कार्यान्वयन और समावेशी श्रम विकास की ओर प्रेरणा देता है।