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भारत में सेवा क्षेत्र की गतिविधियां नवंबर में एक साल के निचले स्तर पर: पीएमआई

भारत में सेवा क्षेत्र की गतिविधियां नवंबर में एक साल के निचले स्तर पर: पीएमआई |_3.1

भारत के सेवा क्षेत्र की गतिविधियां नवंबर में एक साल के निचले स्तर पर पहुंच गईं। नए आर्डर मिलने और काम पूरा करने की धीमी रफ्तार के कारण यह गिरावट आई है। एक मासिक सर्वेक्षण में यह जानकारी दी गई है। मौसमी रूप से समायोजित एसएंडपी ग्लोबल भारत सेवा पीएमआई कारोबारी गतिविधि सूचकांक नवंबर में एक साल के निचले स्तर 56.9 पर पहुंच गया। यह अक्टूबर में 58.4 था। मासिक आधार पर गिरावट के बावजूद, विस्तार की दर इसके दीर्घकालिक औसत से अधिक मजबूत है।

खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) की भाषा में 50 से ऊपर अंक का मतलब गतिविधियों में विस्तार से और 50 से कम अंक का आशय संकुचन से होता है। सर्वेक्षण सेवा क्षेत्र की करीब 400 कंपनियों को भेजे गए प्रश्नावली के जवाबों पर आधारित है। एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में अर्थशास्त्र की एसोसिएट निदेशक पॉलियाना डी लीमा ने कहा, ‘‘ भारत के सेवा क्षेत्र ने तीसरी वित्त तिमाही के मध्य में ही वृद्धि की गति खो दी, हालांकि हम सेवाओं की मजबूत मांग देख रहे हैं जिससे नए आर्डर मिलने और काम पूरा करने की गति बढ़ेगी। ’’

कीमतों की बात करें तो कच्चे माल और काम पूरा करने की दरें आठ महीने के निचले स्तर पर फिसल गईं। रोजगार के मोर्चे पर सेवा कंपनियों ने कारोबार के मुख्य तौर पर स्थिर स्तर पर रहने से नई भर्तियां रोकी हैं। मासिक आधार पर गिरावट के बावजूद, विस्तार की दर इसके दीर्घकालिक औसत से अधिक मजबूत है।

 

इकोनॉमिस्ट का क्या है कहना

एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में एसोसिएट डायरेक्टर पॉलियाना डी लीमा ने कहा कि भारत के सर्विस सेक्टर ने वित्त वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही के बीच में ही विकास की रफ्तार खो दी है। वैसे तो हम सर्विसेज की मजबूत मांग देख रहे हैं जिससे नए आर्डर मिलने और काम पूरा करने की गति बढ़ेगी लेकिन इससे ग्रोथ की स्पीड में तेजी का सपोर्ट नहीं मिला।

 

आर्थिक दृष्टिकोण

बढ़ती मुद्रास्फीति की उम्मीदों के कारण आशावाद कम होने के बावजूद, सेवा और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों में विस्तार की वर्तमान दर को स्वस्थ माना जाता है। सेवाओं की मजबूत मांग से समर्थित, व्यावसायिक गतिविधि का दृष्टिकोण उज्ज्वल बना हुआ है।

 

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FAQs

मुद्रास्फीति से आप क्या समझते हैं?

जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं।