संयुक्त राष्ट्र की एक नई जनसांख्यिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की जनसंख्या 2025 में 1.46 अरब पहुंचने का अनुमान है, जोकि दुनिया में सर्वाधिक होगी। देश की 68 प्रतिशत आबादी कामकाजी है। इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि भारत की प्रजनन दर घटकर प्रति महिला 1.9 जन्म रह गई है, जोकि प्रतिस्थापन दर 2.1 से कम है। ‘वास्तविक प्रजनन संकट’ शीर्षक वाली यूएनएफपीए की ‘विश्व जनसंख्या स्थिति (एसओडब्लूपी) रिपोर्ट 2025’ घटती प्रजनन क्षमता से घबराने के बजाय अपूर्ण प्रजनन लक्ष्यों पर ध्यान देने का आह्वान करती है। इसमें कहा गया है कि लाखों लोग अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम नहीं हैं।
2025 में भारत की जनसंख्या लगभग 1.4639 अरब तक पहुँच गई है, जिससे यह दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2060 के दशक की शुरुआत में लगभग 1.7 अरब पर पहुंचकर शिखर पर होगी, और इसके बाद धीरे-धीरे गिरावट शुरू होगी।
भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) अब 1.9 जन्म प्रति महिला पर आ गई है, जो स्थायी जनसंख्या के लिए आवश्यक 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है। इसका अर्थ है कि अगली पीढ़ी में जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए पर्याप्त बच्चे नहीं हो रहे हैं।
रिपोर्ट “The Real Fertility Crisis” यह कहती है कि घटती प्रजनन दर पर घबराने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय, देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग अपनी पसंद और परिस्थितियों के अनुसार परिवार नियोजन के निर्णय ले सकें।
भारत की जनसंख्या में व्यापक बदलाव हो रहे हैं:
0-14 वर्ष आयु वर्ग: 24%
10-19 वर्ष: 17%
10-24 वर्ष: 26%
कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष): 68%
यह जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) का बड़ा अवसर है, बशर्ते युवाओं को बेहतर शिक्षा, रोजगार और नीति समर्थन मिले।
65 वर्ष से अधिक आयु के लोग: वर्तमान में 7%
जीवन प्रत्याशा (2025):
पुरुष: 71 वर्ष
महिला: 74 वर्ष
आयु बढ़ने के साथ वरिष्ठ नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ेगी।
1960 में:
जनसंख्या: ~43.6 करोड़
प्रति महिला औसतन 6 बच्चे
बहुत कम महिलाओं को शिक्षा या गर्भनिरोधक साधनों तक पहुंच थी।
2025 में:
प्रति महिला औसतन 2 बच्चे से भी कम
शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और महिला अधिकारों में सुधार के कारण यह गिरावट आई है।
हालाँकि आज की महिलाएं पहले से अधिक अधिकार और विकल्प रखती हैं, लेकिन:
गरीब और अमीर,
राज्यों और समुदायों के बीच,
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में
विकल्पों और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में भारी असमानताएं बनी हुई हैं।
“भारत ने प्रजनन दर में गिरावट और मातृ मृत्यु दर को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
लेकिन असली सफलता तभी मानी जाएगी जब हर व्यक्ति, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, अपने प्रजनन से जुड़े निर्णय खुद ले सके।”
भारत के पास विश्व को यह दिखाने का अवसर है कि प्रजनन अधिकार और आर्थिक विकास कैसे एक साथ आगे बढ़ सकते हैं।
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