झारखंड भारत का पहला राज्य बनने जा रहा है जो एक माइनिंग टूरिज्म प्रोजेक्ट शुरू करेगा। इस परियोजना का उद्देश्य राज्य की समृद्ध खनिज विरासत को प्रदर्शित करना है, जिसके तहत लोगों को खदानों के अंदर ले जाकर मार्गदर्शित टूर और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान किए जाएंगे। यह पहल राज्य सरकार और सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL) के संयुक्त प्रयास से चलाई जा रही है।
इस परियोजना का उद्देश्य पर्यटन को नए रूप में विकसित करना है, जिससे न केवल आर्थिक अवसर बढ़ेंगे, बल्कि आम जनता को खनन प्रक्रियाओं और झारखंड के खनिज इतिहास के बारे में शिक्षित भी किया जाएगा। यह पहल खनन को केवल एक औद्योगिक प्रक्रिया न मानकर उसे शिक्षा और सांस्कृतिक जागरूकता का माध्यम बनाने की दिशा में एक अनूठा कदम है।
पृष्ठभूमि
झारखंड, जो भारत के लगभग 40% खनिज संसाधनों का भंडार रखता है, लंबे समय से देश का एक प्रमुख खनन केंद्र रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बार्सिलोना स्थित गावा म्यूज़ियम ऑफ माइन्स की यात्रा से प्रेरित होकर राज्य सरकार अब अपने खनन क्षेत्र के कुछ हिस्सों को पर्यटन के लिए खोलने जा रही है। इसके तहत सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL) के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) जैसे औपचारिक साझेदारी की गई है।
उद्देश्य
इस परियोजना का उद्देश्य है:
झारखंड में वैकल्पिक पर्यटन को बढ़ावा देना
विद्यार्थियों और आम लोगों को शैक्षणिक अनुभव प्रदान करना
औद्योगिक विरासत और स्थानीय संस्कृति को उजागर करना
रोज़गार के अवसर पैदा करना और आर्थिक विकास को गति देना
मुख्य विशेषताएँ
पायलट चरण की शुरुआत रामगढ़ जिले की नॉर्थ उरीमारी (बिरसा) ओपन-कास्ट माइंस से होगी
दो टूर सर्किट निर्धारित किए गए हैं:
राजरप्पा रूट: ₹2,800 + GST, इसमें छिन्नमस्तिका मंदिर और पतरातू घाटी शामिल
पतरातू रूट: ₹2,500 + GST, जिसमें पर्यटन विहार का दौरा शामिल
ये टूर सप्ताह में दो बार संचालित होंगे, प्रत्येक में 10–20 पर्यटकों का समूह
टूर में भोजन, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक स्थलों का भ्रमण शामिल
आगे चलकर तीन प्रमुख सर्किट बनाए जाएंगे:
ईको-माइनिंग सर्किट-1
ईको-माइनिंग सर्किट-2
धार्मिक सर्किट
महत्त्व और प्रभाव
यह परियोजना भारत में अपनी तरह का पहला पर्यटन मॉडल है, जो उद्योग, पर्यावरण और संस्कृति को जोड़ता है। इससे—
कम प्रसिद्ध क्षेत्रों में पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी
स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा और आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेंगी
खनन के इतिहास और पर्यावरणीय जागरूकता को बल मिलेगा
झारखंड की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती मिलेगी
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