भारत में पहली बार, ड्रोन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से सुसज्जित क्लाउड सीडिंग तकनीक का उपयोग कृत्रिम वर्षा कराने के लिए किया जा रहा है। यह पायलट प्रोजेक्ट राजस्थान के जयपुर स्थित रामगढ़ बांध क्षेत्र में चल रहा है, जिसका उद्देश्य 129 वर्ष पुराने उस जलाशय को पुनर्जीवित करना है, जो पिछले दो दशकों से सूखा पड़ा है और 1981 के बाद से अपनी पूरी क्षमता तक नहीं भर पाया है। इस पहल को भारत-अमेरिका आधारित प्रौद्योगिकी कंपनी GenX AI और राजस्थान सरकार के संयुक्त प्रयास से शुरू किया गया है।
कार्यक्रम का विवरण और सहभागिता
यह प्रयोग दोपहर 2 बजे शुरू होने वाला है, जिसकी अगुवाई कृषि एवं आपदा राहत मंत्री किरोड़ी लाल मीणा करेंगे। मौसम और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ-साथ विधायक महेंद्र पाल मीणा के नेतृत्व में बड़ी संख्या में ग्रामीण इस आयोजन को देखने के लिए उपस्थित रहेंगे।
इस परियोजना का उद्देश्य सतही जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना, जयपुर में पेयजल आपूर्ति में राहत प्रदान करना तथा बांध क्षेत्र के पर्यावरण और जैव विविधता को संरक्षित करना है।
रामगढ़ बांध क्यों चुना गया
शुरुआत में जलमहल के पास मानसागर बांध पर विचार किया गया था, लेकिन उसके छोटे आकार और आबादी वाले क्षेत्रों के निकट होने के कारण स्थान को बदलकर रामगढ़ बांध कर दिया गया। यह बांध बड़ा है, वर्तमान में सूखा पड़ा है और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
आधारशिला: 30 दिसंबर 1897 को महाराजा माधो सिंह द्वितीय द्वारा रखी गई।
निर्माण पूर्ण: 1903
1931: वायसराय लॉर्ड इरविन ने यहां से राजपुताना की पहली पेयजल आपूर्ति योजना का उद्घाटन किया।
1982: एशियाई खेलों की नौकायन प्रतियोगिता का आयोजन हुआ।
बाणगंगा नदी पर स्थित यह बांध कभी जमवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के लिए मुख्य जल स्रोत था।
ड्रोन-एआई क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है
क्लाउड सीडिंग में बादलों में सोडियम क्लोराइड जैसे रसायनों का छिड़काव किया जाता है, जो संघनन नाभिक की तरह कार्य करते हैं और जल वाष्प को बूंदों में बदल देते हैं।
इस प्रयोग में:
ताइवान निर्मित ड्रोन हजारों फीट ऊंचाई पर उड़ेंगे।
लक्षित बादलों में सोडियम क्लोराइड का छिड़काव करेंगे।
यह प्रक्रिया वर्षा उत्पन्न करने और बांध को भरने का प्रयास करेगी।
यह मौसम संशोधन तकनीक अमेरिका, रूस और कई यूरोपीय देशों में सूखे से निपटने के लिए पहले से उपयोग में है।
बहु-विभागीय समन्वय
इस परियोजना में कृषि विभाग, मौसम विभाग, जल संसाधन और सिंचाई विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शामिल हैं।
डीजीसीए ने ड्रोन उड़ानों की अनुमति दी है।
प्रोजेक्ट का डेटा एक महीने तक दर्ज किया जाएगा और आगे के विश्लेषण के लिए उपयोग होगा।
राजस्थान में पूर्व प्रयास
चित्तौड़गढ़ के घोषुंडा बांध पर एक समान प्रयास किया गया था, लेकिन वह असफल रहा। इस बार उन्नत एआई और ड्रोन तकनीक से सफलता की संभावना अधिक है।
भारत में क्लाउड सीडिंग का इतिहास (IITM के अनुसार)
1951: पश्चिमी घाटों पर ग्राउंड-बेस्ड सिल्वर आयोडाइड जनरेटर से पहला प्रयास।
1952: नमक और सिल्वर आयोडाइड का हाइड्रोजन गुब्बारों से उपयोग।
1957–1966: उत्तर भारत में ग्राउंड-बेस्ड क्लाउड सीडिंग, वर्षा में 20% वृद्धि।
1973–1977: तिरुवल्लूर (तमिलनाडु) और मुंबई में प्रयोग।
1973–1986: बारामती (महाराष्ट्र) में क्लाउड सीडिंग, वर्षा में 24% वृद्धि।
जयपुर प्रयोग का महत्व
आधुनिक ड्रोन और एआई-आधारित टारगेटिंग से सटीकता में सुधार।
रामगढ़ बांध को पुनर्जीवित कर पेयजल और कृषि को लाभ।
भारत की जलवायु लचीलापन और सूखा प्रबंधन में नवीनतम तकनीक अपनाने की क्षमता का प्रदर्शन।
सफल होने पर देश के अन्य सूखा-प्रवण क्षेत्रों में इस तरह की परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
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