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पटना में खुला भारत का पहला डॉल्फिन रिसर्च सेंटर

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में भारत के पहले डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र का उद्घाटन किया। 30 करोड़ रुपये की लागत से बना ये राष्ट्रीय डॉल्फिन रिसर्च सेंटर (NDRC) पटना यूनिवर्सिटी कैंपस में गंगा किनारे बनाया गया है जो स्टूडेंट्स और रिसर्चर को मीठे पानी की डॉल्फिन, विशेष रूप से गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन के व्यवहार को समझने में मदद करेगा।

दरअसल, NDRC का उद्घाटन बीते साल दिसंबर में ही होने वाला था, लेकिन काम पूरा होने की वजह से इसे आगे बढ़ा दिया गया था। इस संस्थान का शिलान्यास भी साल 2020 में नीतीश कुमार ने ही किया था। शुरुआत में इसे बनाने का लक्ष्य 2022 तक रखा गया था, लेकिन इसे बनने में काफी विलंब हुआ।

 

गंगा डॉल्फिन की खोज

गंगा डॉल्फिन की आधिकारिक तौर पर खोज 1801 में की गई थी। वे नेपाल, भारत और बांग्लादेश की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु नदी प्रणालियों में रहती हैं। वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत गंगा डॉल्फिन का शिकार प्रतिबंधित है। बिहार सरकार द्वारा की गई गणना के अनुसार, 2018 में गंगा में 1,048 डॉल्फिन थीं।

 

पटना में राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र

पटना में राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र की स्थापना को बिहार के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन पीके गुप्ता ने पर्यावरण और वन्य जीव के शोध के प्रति मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा, “माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयासों के चलते राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध संस्थान पटना में खुला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयास का ही परिणाम है कि डॉल्फिन को 2009 में राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया गया था। यह खुशी की बात है कि देश का एकलौता राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध संस्थान बिहार राज्य को मिला है।

 

एनडीआर प्रोजेक्ट को अप्रूवल

एनडीआर प्रोजेक्ट को अप्रूवल साल 2013 में योजना आयोग के तत्कालीन डिप्टी चेयरमैन मोंटेक सिंह द्वारा प्रो आर के सिन्हा, जिन्हें भारत के डॉल्फिन मैन के रूप में भी जाना जाता है — जो उस वक्त पटना यूनिवर्सिटी के जंतु विज्ञान के प्रोफेसर थे, के अनुरोध पर दी गई थी। प्रो सिन्हा अभी श्री माता वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं।

 

संरक्षण में एक कदम आगे

एनडीआरसी का उद्घाटन हमारी समझ को आगे बढ़ाने और गंगा डॉल्फिन की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस महत्वपूर्ण अनुसंधान केंद्र में न केवल इस लुप्तप्राय प्रजाति की रक्षा करने की क्षमता है, बल्कि समग्र रूप से गंगा नदी पारिस्थितिकी तंत्र की गहरी समझ में योगदान करने की भी क्षमता है।

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