भारत ने ITER के लिए प्रमुख मैग्नेट प्रणाली को पूरा करने में मदद की

भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण वैश्विक उपलब्धि में अहम भूमिका निभाई है — आईटीईआर (इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर) परियोजना के मुख्य चुंबक प्रणाली (Magnet System) के निर्माण को सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। यह दुनिया की सबसे बड़ी न्यूक्लियर फ्यूजन परियोजना है, जिसका उद्देश्य सूर्य की ऊर्जा प्रक्रिया को पृथ्वी पर दोहराकर स्वच्छ और कार्बन-मुक्त ऊर्जा उत्पन्न करना है। इस परियोजना में भारत ने क्रायोस्टैट चैम्बर के डिजाइन और निर्माण से लेकर, ठंडा करने और गर्म करने की अत्याधुनिक प्रणालियों को विकसित करने तक में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

क्यों है यह ख़बर में?

आईटीईआर परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने इसके सेंट्रल सोलोनॉयड (Central Solenoid) — यानी मुख्य चुंबकीय प्रणाली — को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। भारत, इस बहुपक्षीय परियोजना के संस्थापक सदस्य देशों में से एक है और इसकी अवसंरचना में भारत की भागीदारी ऊर्जा अनुसंधान में भारत की वैश्विक भूमिका को रेखांकित करती है

आईटीईआर परियोजना: एक परिचय

  • पूरा नाम: अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर

  • उद्देश्य: औद्योगिक स्तर पर फ्यूजन ऊर्जा की व्यवहार्यता को साबित करना

  • सदस्य देश: भारत, चीन, अमेरिका, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, और यूरोपीय संघ (आयोजक)

  • स्थान: कैडाराश (Cadarache), दक्षिण फ्रांस

  • ऊर्जा लक्ष्य: 50 मेगावाट इनपुट से 500 मेगावाट फ्यूजन ऊर्जा (10 गुना ऊर्जा लाभ)

भारत का योगदान

  • क्रायोस्टैट का डिजाइन और निर्माण

    • आकार: 30 मीटर ऊँचा और चौड़ा

    • कार्य: टोकामक को समाहित करता है और अल्ट्रा-कोल्ड वातावरण बनाए रखता है

  • क्रायोलाइन्स (Cryolines)

    • द्रव हीलियम को −269°C तक पहुँचाकर सुपरकंडक्टिंग चुंबकों को ठंडा करता है

  • इन-वॉल शील्डिंग व कूलिंग सिस्टम

    • विकिरण से सुरक्षा और संरचनात्मक स्थिरता बनाए रखता है

  • हीटिंग सिस्टम

    • प्लाज्मा को 15 करोड़ °C तक गर्म करने में सक्षम — सूर्य से भी अधिक तापमान

हालिया उपलब्धि – चुंबकीय प्रणाली

  • सेंट्रल सोलोनॉयड का छठा मॉड्यूल (अमेरिका में निर्मित) पूरा हुआ

  • यह “इलेक्ट्रोमैग्नेटिक दिल” है जो अत्यधिक गर्म प्लाज़्मा को नियंत्रित करता है

  • इसकी चुंबकीय ताकत इतनी है कि यह एक एयरक्राफ्ट कैरियर को उठा सकती है

वैश्विक सहयोग की विशेषताएँ

  • निर्माण लागत: यूरोपीय संघ 45% वहन करता है, बाकी सभी देश ~9% के अनुपात में

  • अनुसंधान लाभ: सभी भागीदारों को डेटा, पेटेंट, और परिणामों तक समान पहुंच

  • उपकरण निर्माण: 30+ देशों, 100+ फैक्ट्रियों, 3 महाद्वीपों से पुर्जे आए

  • 2025 की उपलब्धि: पहला वैक्यूम वेसल मॉड्यूल तय समय से पहले स्थापित

भविष्य की दिशा

  • आईटीईआर बिजली नहीं बनाएगा, यह सिर्फ परीक्षण के लिए है

  • लक्ष्य: बर्निंग प्लाज़्मा प्राप्त करना — यानी स्वयं-संचालित फ्यूजन प्रक्रिया

  • इस परियोजना से प्राप्त डेटा वाणिज्यिक फ्यूजन रिएक्टरों के विकास में मदद करेगा

  • निजी क्षेत्र की भागीदारी भी बढ़ रही है, जिससे नवाचार को बल मिलेगा

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vikash

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