भारत ने जिनेवा में नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (आईसीसीपीआर) के अंतर्गत मानवाधिकार समिति द्वारा अपनी चौथी आवधिक समीक्षा सफलतापूर्वक पूरी कर ली है, जिससे मानवाधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल
भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अटॉर्नी जनरल श्री आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता ने किया और इसमें सचिव (पश्चिम) श्री पवन कपूर भी शामिल थे। महिला एवं बाल विकास, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी, अल्पसंख्यक मामले, विदेश मामले, जनजातीय मामले और गृह मामले सहित कई मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे।
समीक्षा विवरण
15-16 जुलाई, 2024 को आयोजित समीक्षा में मानवाधिकार समिति के साथ विभिन्न नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के मुद्दों पर रचनात्मक बातचीत शामिल थी। चर्चा किए गए विषयों में भ्रष्टाचार विरोधी उपाय, गैर-भेदभाव, महिलाओं और अल्पसंख्यकों की स्थिति, आतंकवाद विरोधी और राष्ट्रीय सुरक्षा, न्यायिक ढांचा, गोपनीयता और डेटा सुरक्षा कानून और नए आपराधिक कानून शामिल थे।
भारत की उपलब्धियाँ
भारत ने कमज़ोर समूहों की सुरक्षा में अपने प्रयासों और वैश्विक मानवाधिकार ढांचे में अपने योगदान पर प्रकाश डाला। समिति ने भारत की बहुलवाद, अहिंसा और विविधता की परंपराओं की सराहना की और एक जीवंत संसदीय लोकतंत्र के रूप में इसकी स्थिति पर ध्यान दिया।
समिति की भूमिका
18 स्वतंत्र विशेषज्ञों से बनी मानवाधिकार समिति समय-समय पर समीक्षा करके तथा टिप्पणियां और सिफारिशें करके ICCPR के कार्यान्वयन की निगरानी करती है।
ऐतिहासिक संदर्भ
ICCPR एक बहुपक्षीय संधि है, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1966 में अपनाई गई थी। यह संधि व्यक्तियों के नागरिक और राजनीतिक अधिकारों का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध करती है। हालांकि 1966 में अपनाने के बाद इसे 1976 में लागू किया गया था। भारत इसके पहले भी ICCPR की तीन समीक्षाओं से गुजर चुका है, जो कि 1997 में हुई थी।