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भारत-चीन संबंध 2025: एससीओ शिखर सम्मेलन में संभावित नई दिशा

आगामी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद पहली बार चीन का दौरा करेंगे। इस उच्च-स्तरीय यात्रा को भारत-चीन संबंधों में संभावित पुनर्स्थापना के रूप में देखा जा रहा है, जो वर्षों के तनाव के बाद एक सतर्क बदलाव का संकेत है।

सरकारी नौकरी के अभ्यर्थियों और नीतिगत पर्यवेक्षकों के लिए इस संबंध के ऐतिहासिक विकास, वर्तमान परिदृश्य और रणनीतिक चुनौतियों को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है—यह न केवल परीक्षाओं के दृष्टिकोण से, बल्कि 2025 में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को समझने के लिए भी आवश्यक है।

भारत-चीन संबंधों का विकास

प्रारंभिक वर्ष: मित्रता की भावना (1950 का दशक)

  • 1950: भारत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला ग़ैर-समाजवादी ब्लॉक देश बना।

  • “हिंदी-चीनी भाई-भाई” दौर 1954 के पंचशील समझौते (शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धांत) के साथ अपने चरम पर पहुँचा।

विछोह: सीमा युद्ध और तनाव (1960–1980 का दशक)

  • 1962: अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर हुए युद्ध ने द्विपक्षीय संबंधों को गहरा आघात पहुँचाया।

  • 1988: प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा से संबंधों में पिघलाव शुरू हुआ, जिसके तहत सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्यकारी तंत्र (WMCC) जैसी व्यवस्थाएं बनीं।

आर्थिक जुड़ाव और सीमा विवाद (1990–2000 का दशक)

  • 2008 तक चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।

  • 1993 के “शांति और स्थिरता समझौते” जैसी संधियों के बावजूद अक्साई चिन जैसे क्षेत्रों में गतिरोध जारी रहे।

  • 2003: भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना; चीन ने सिक्किम के भारत में विलय को स्वीकार किया।

हालिया अशांति (2010 से वर्तमान)

  • 2017 डोकलाम गतिरोध: विवादित क्षेत्र में सड़क निर्माण को लेकर 73 दिन का आमना-सामना।

  • 2020 गलवान संघर्ष: घातक सीमा हिंसा से अविश्वास और गहरा हुआ।

  • 2024: डेपसांग और डेमचोक में सीमित गश्त समझौते के जरिए सतर्क प्रगति, जिसे कज़ान शिखर सम्मेलन में मोदी–शी बैठक ने और मजबूती दी।

भारत के लिए चीन का महत्व

आर्थिक परस्पर निर्भरता

  • व्यापार का पैमाना: वित्त वर्ष 2025 में द्विपक्षीय व्यापार $127.7 अरब तक पहुँचा; आयात 11.52% बढ़कर $113.45 अरब हुआ, जबकि निर्यात 14.5% घटकर $14.25 अरब रह गया, जिससे $99.2 अरब का व्यापार घाटा हुआ।

  • महत्वपूर्ण आपूर्ति: इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार उपकरण, लिथियम-आयन बैटरी, एपीआई (औषधि निर्माण कच्चा माल), उर्वरक और ऑटो पार्ट्स के लिए भारत का चीन पर भारी निर्भरता है।

  • निवेश संबंध: 2015 से अब तक भारत में चीनी निवेश $3.2 अरब तक पहुँचा, खासकर टेक स्टार्टअप्स में।

भूराजनीतिक महत्व

  • सीमा सुरक्षा: 3,488 किमी लंबी सीमा सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करती है।

  • क्षेत्रीय प्रभाव: चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और पाकिस्तान में सीपीईसी परियोजना भारत के प्रभाव को चुनौती देती हैं।

  • वैश्विक मंचों में सहयोग: ब्रिक्स, एससीओ, एआईआईबी और जी20 में जलवायु कूटनीति व बहुध्रुवीयता जैसे मुद्दों पर सहयोग जारी है।

भारत-चीन संबंधों की चुनौतियाँ

  1. सीमा विवाद और सैन्यीकरण

    • चीन 38,000 वर्ग किमी अक्साई चिन पर कब्जा किए हुए है और 90,000 वर्ग किमी अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है।

    • सीमा पर बुनियादी ढाँचे और द्वैत्य उपयोग वाले गाँवों का निर्माण भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाता है।

  2. रणनीतिक विश्वास की कमी

    • गलवान संघर्ष एक निर्णायक मोड़ रहा, जिससे आंशिक सैन्य पीछे हटने के बावजूद गहरी अविश्वास की स्थिति बनी हुई है।

  3. आर्थिक असंतुलन

    • भारी आयात निर्भरता और चीन के महत्वपूर्ण खनिज निर्यात नियंत्रण भारत के हरित ऊर्जा संक्रमण को प्रभावित करते हैं।

  4. पाकिस्तान से गठजोड़

    • सीपीईसी का मार्ग पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है।

    • मई 2025 के भारत-पाक संघर्ष में चीन ने पाकिस्तान को सैन्य और कूटनीतिक समर्थन दिया।

  5. समुद्री और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता

    • हिंद महासागर में चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति भारत की समुद्री प्रभुत्व को चुनौती देती है।

    • भारत “नेकलेस ऑफ डायमंड्स” रणनीति के तहत बंदरगाह विकास और नौसैनिक साझेदारी को आगे बढ़ा रहा है।

  6. प्रौद्योगिकीय निर्भरता और साइबर खतरे

    • भारत के स्मार्टफोन बाज़ार में चीनी कंपनियों का लगभग 75% हिस्सा है।

    • 5G ट्रायल से हुवावे को बाहर रखना सुरक्षा चिंताओं का संकेत है।

  7. जल सुरक्षा के जोखिम

    • चीन के ब्रह्मपुत्र और सतलुज पर बांध परियोजनाएँ भारत के लिए पर्यावरणीय और जल प्रवाह से जुड़ी चुनौतियाँ खड़ी करती हैं।

आगे की राह

  • निरंतर रणनीतिक संवाद: एलएसी पर पूर्ण रूप से विसैन्यीकरण सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रतिनिधि (SR) स्तर और WMCC वार्ताओं को सक्रिय बनाए रखना।

  • आर्थिक संतुलन: “चीन+1” रणनीति को आगे बढ़ाना, मेक इन इंडिया को मज़बूत करना और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना।

  • सीमावर्ती अवसंरचना का सुदृढ़ीकरण: जीवंत गाँव कार्यक्रम (Vibrant Villages Programme) के तहत एलएसी पर सड़कों, हवाई पट्टियों और निगरानी सुविधाओं का तेजी से विकास।

  • समुद्री प्रतिरोधक क्षमता: सागरमाला और क्वाड सहयोग के माध्यम से हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति को मज़बूत करना।

  • क्षेत्रीय विकल्पों का नेतृत्व: बीआरआई (Belt and Road Initiative) का मुकाबला करने के लिए दक्षिण एशिया में कनेक्टिविटी परियोजनाओं का विस्तार।

  • प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता: पीएलआई योजनाओं के तहत सेमीकंडक्टर, एपीआई और नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों में निवेश।

  • सांस्कृतिक कूटनीति: कैलाश मानसरोवर यात्रा जैसे तीर्थों को पुनः प्रारंभ कर जनता-से-जनता विश्वास को बढ़ाना।

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