भारत ने ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के 30वें कॉन्फ्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़ (COP30) में एक सशक्त और स्पष्ट संदेश दिया, जिसने जलवायु न्याय, वित्तीय समानता और राष्ट्र-स्वायत्तता पर आधारित वैश्विक सहयोग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। 10 से 21 नवंबर 2025 तक चले इस सम्मेलन को वैश्विक जलवायु एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया, विशेषकर जलवायु वित्त, अनुकूलन (एडेप्टेशन) और व्यापार-संबंधी पर्यावरणीय नीतियों के संदर्भ में। भारत के वक्तव्य ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु उपाय निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और विकासशील देशों की प्राथमिकताओं के अनुरूप होने चाहिए, ताकि वैश्विक जलवायु कार्रवाई वास्तव में समावेशी और संतुलित बन सके।
भारत का COP30 में मजबूत संदेश
ब्राज़ील के बेलेम में 10 से 21 नवंबर 2025 तक आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (UNFCCC) के 30वें पक्षकार सम्मेलन (COP30) में भारत ने जलवायु न्याय, वित्तीय समानता और संप्रभुता-आधारित वैश्विक सहयोग के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता को स्पष्ट और प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया। यह सम्मेलन विशेष रूप से वित्त, अनुकूलन और पर्यावरण-संबंधी व्यापार नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।
जलवायु वित्त पर नया जोर
भारत ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि 1992 के रियो पृथ्वी सम्मलेन से 33 वर्ष बीत जाने के बावजूद विकसित देशों ने अभी भी कई मूलभूत प्रतिज्ञाएँ पूरी नहीं की हैं, खासकर विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता के मामले में।
COP30 में भारत ने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 पर दिए गए नए ध्यान का स्वागत किया, जो विकसित देशों पर यह कानूनी दायित्व लगाता है कि वे विकासशील देशों की शमन (mitigation) और अनुकूलन (adaptation) ज़रूरतों के लिए पर्याप्त और विश्वसनीय वित्त उपलब्ध कराएं।
भारत ने ज़ोर दिया कि यह दान नहीं, बल्कि ऐतिहासिक उत्सर्जन और स्वीकृत वैश्विक सिद्धांतों के आधार पर बना न्यायोचित दायित्व है। भारत ने अपील की कि अब वैश्विक समुदाय इन अधूरे वादों को पूरा करने के लिए ठोस कदम उठाए।
न्यायपूर्ण संक्रमण तंत्र
भारत ने नए गठित जस्ट ट्रांज़िशन मैकेनिज़्म का स्वागत किया और इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया। इसका उद्देश्य उन देशों और समुदायों का समर्थन करना है जो कम-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं, ताकि यह परिवर्तन:
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न्यायपूर्ण और समावेशी हो,
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कमजोर समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करे,
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और आवश्यक सामाजिक-वित्तीय सहायता प्रदान करे।
भारत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का संक्रमण असमानता को न बढ़ाए, बल्कि हरित विकास और साझा समृद्धि का अवसर बने।
एकतरफा जलवायु-संबंधी व्यापार अवरोधों का विरोध
भारत ने एक उभरती हुई चिंता को जोरदार तरीके से उठाया—एकतरफा जलवायु-आधारित व्यापार अवरोध, जैसे कार्बन सीमा कर (carbon border taxes) या जलवायु टैरिफ़। भारत ने कहा कि ऐसे कदम:
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CBDR-RC सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं,
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विकासशील देशों पर अनुचित बोझ डालते हैं,
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वैश्विक व्यापार को बाधित करते हैं, और
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बहुपक्षीय जलवायु कूटनीति को कमजोर करते हैं।
भारत ने COP30 की अध्यक्षता को धन्यवाद दिया कि इस मुद्दे को खुले तौर पर उठाने का अवसर दिया गया। भारत ने कहा कि जलवायु सहयोग जोर-जबर्दस्ती पर नहीं, बल्कि साझेदारी पर आधारित होना चाहिए।
सबसे कमजोर देशों की सुरक्षा को प्राथमिकता
भारत ने दोहराया कि जो देश जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान देते हैं, उन्हें सबसे अधिक बोझ नहीं उठाना चाहिए। भारत ने कहा कि:
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सबसे अधिक संवेदनशील आबादी विकासशील देशों में रहती है,
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अनुकूलन की ज़रूरतें लगातार बढ़ रही हैं,
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और विश्व को अधिक वित्तीय और तकनीकी सहायता उपलब्ध करानी चाहिए।
भारत का स्पष्ट संदेश है — जलवायु न्याय की शुरुआत कमजोरों की रक्षा से होती है।
नियम-आधारित और न्यायपूर्ण वैश्विक व्यवस्था के प्रति भारत की प्रतिबद्धता
भारत ने कहा कि वैश्विक जलवायु शासन:
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विज्ञान आधारित,
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राष्ट्रों की परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील,
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और समानता पर आधारित होना चाहिए।
भारत ने सभी पक्षों के साथ मिलकर ऐसा वैश्विक ढांचा मजबूत करने की इच्छा व्यक्त की जो विकासशील देशों को हाशिये पर न रखकर उन्हें सशक्त बनाए।
स्थिर तथ्य (Static Facts)
UNFCCC और COP के बारे में
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UNFCCC: 1992 में अपनाया गया, 1994 में लागू हुआ।
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198 पक्षकार — लगभग सार्वभौमिक सदस्यता।
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COP: UNFCCC का सर्वोच्च निर्णय-निर्धारण मंच।
रियो अर्थ सम्मलेन 1992
जिसे UNCED 1992 भी कहा जाता है, इसने तीन प्रमुख वैश्विक समझौते दिए:
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UNFCCC
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जैव विविधता कन्वेंशन (CBD)
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मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (UNCCD)
इसीने CBDR-RC सिद्धांत की अवधारणा प्रस्तुत की।
जलवायु वित्त (Climate Finance)
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विकसित देशों ने COP15 (कोपेनहेगन, 2009) में प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने का वादा किया था।
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यह लक्ष्य अब भी अधूरा है और प्रमुख विवाद का विषय है।


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