भारत की स्वच्छ ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं को एक बड़ा प्रोत्साहन मिला है, क्योंकि देश ने आधिकारिक रूप से 100 गीगावाट (GW) सोलर फोटोवोल्टिक (PV) मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता हासिल कर ली है। यह उपलब्धि स्वीकृत मॉडल और निर्माता सूची (Approved List of Models and Manufacturers – ALMM) के अंतर्गत दर्ज की गई है। 2014 में यह क्षमता सिर्फ 2.3 GW थी, जो अब एक दशक में कई गुना बढ़ी है। यह भारत की सौर ऊर्जा में आत्मनिर्भरता और 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता हासिल करने के लक्ष्य की दिशा में एक अहम कदम है।
इस उपलब्धि की घोषणा करते हुए केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और उच्च दक्षता वाले सौर मॉड्यूल के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI Scheme) जैसी नीतियों को इसका श्रेय दिया।
सरकार का उद्देश्य केवल ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना ही नहीं, बल्कि वैश्विक सौर वैल्यू चेन में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका स्थापित करना भी है।
यह तेज़ी से बढ़ी क्षमता सहायक योजनाओं, उद्योग की सक्रिय भागीदारी, और ALMM जैसे नियामकीय उपायों के प्रभावी क्रियान्वयन का परिणाम है, जो घरेलू सौर विनिर्माण में गुणवत्ता और मानकीकरण को बढ़ावा देते हैं।
2 जनवरी 2019 को MNRE (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय) द्वारा ALMM आदेश जारी किया गया।
पहली स्वीकृत सूची मार्च 2021 में प्रकाशित हुई, जिसमें केवल 8.2 GW क्षमता दर्ज थी।
मात्र चार वर्षों में यह क्षमता 12 गुना से अधिक बढ़कर 100 GW हो गई।
स्वीकृत निर्माताओं की संख्या 2021 में 21 से बढ़कर 2025 में 100 हो गई, जो देशभर में 123 इकाइयों का संचालन कर रहे हैं।
100 GW का यह मील का पत्थर सिर्फ पैमाने में ही नहीं, बल्कि तकनीकी परिपक्वता में भी वृद्धि का प्रतीक है। कई नए निर्माताओं ने उच्च दक्षता मॉड्यूल तकनीक अपनाई है और वर्टिकली इंटीग्रेटेड संचालन विकसित किए हैं, जिससे एक प्रतिस्पर्धी और विविधतापूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र तैयार हुआ है। यह विकास घरेलू मांग पूरी करने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए भी अवसर पैदा कर रहा है, जिससे भारत का स्वच्छ ऊर्जा निर्यात बढ़ने की संभावना है।
यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है और 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता (सौर, पवन, जलविद्युत, और परमाणु) के लक्ष्य को साकार करने में सहायक है। आयात पर निर्भरता घटाकर भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में होने वाले उतार-चढ़ाव से बच सकेगा और सतत, लचीला और स्वदेशी ऊर्जा विकास सुनिश्चित करेगा।
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