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बजट ने भारत की अर्थव्यवस्था को कैसे आकार दिया है: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत के केंद्रीय बजट (Union Budget) ने देश की आर्थिक प्रगति को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक, प्रत्येक बजट ने भारत की बदलती प्राथमिकताओं, चुनौतियों और आकांक्षाओं को दर्शाया है। यह बजट न केवल विकास और सुधारों का खाका प्रस्तुत करता है, बल्कि राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन में भी अहम योगदान देता है।

1. स्वतंत्रता के बाद का युग (1947-1970 का दशक): आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की नींव

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत के सामने आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल करने की चुनौती थी। शुरुआती बजट का ध्यान औद्योगिकीकरण, बुनियादी ढांचे के विकास और सामाजिक कल्याण पर था।

  • पहला बजट (1947): भारत के पहले वित्त मंत्री आर. के. शनमुखम चेट्टी ने प्रस्तुत किया। इसमें ₹92.74 करोड़ रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित किए गए, जो विभाजन के बाद की सुरक्षा चिंताओं को दर्शाता था।
  • औद्योगीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र: 1950 और 1960 के दशक के बजट में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और भारी उद्योगों की स्थापना पर जोर दिया गया। इस दौरान पाँच वर्षीय योजनाओं के तहत इस्पात, कोयला और विद्युत क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई।
  • हरित क्रांति (Green Revolution): 1960 के दशक में, बजट के माध्यम से कृषि, सिंचाई और उर्वरकों में निवेश को बढ़ावा दिया गया। इससे भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना

इस दौर में राज्य के नेतृत्व वाले विकास और निजी क्षेत्र के संयोजन से मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) की नींव रखी गई।

2. उदारीकरण का युग (1980-1990 का दशक): मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ता भारत

1980 और 1990 के दशक में भारत ने नियंत्रित अर्थव्यवस्था से एक खुली और बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तन किया

  • 1991 का आर्थिक संकट: भारत को गंभीर भुगतान संतुलन संकट (Balance of Payments Crisis) का सामना करना पड़ा, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार खतरनाक स्तर तक गिर गया।
  • ऐतिहासिक 1991 का बजट: तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत इस बजट में ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई, जिनमें शामिल थे:
    • उदारीकरण (Liberalization): सरकार के नियंत्रण को कम करना और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना।
    • व्यापार सुधार (Trade Reforms): आयात शुल्क में कटौती और निर्यात को प्रोत्साहन।
    • निजीकरण (Privatization): निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की निर्भरता को कम करना।

इन सुधारों ने भारत को संकट से उबारने के साथ-साथ तेज़ आर्थिक वृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त किया

3. समावेशी विकास (2000-2010 का दशक): सामाजिक कल्याण को प्राथमिकता

2000 के दशक में, बजट ने ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) – 2005: यह योजना ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का गारंटीकृत रोजगार प्रदान करने के लिए शुरू की गई, जिससे गरीबी और बेरोजगारी को कम किया गया।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य: सर्व शिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan) और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Rural Health Mission) जैसे कार्यक्रमों को बजट के माध्यम से समर्थन मिला।
  • बुनियादी ढांचे का विकास: सड़क, बंदरगाह और दूरसंचार में निवेश को प्राथमिकता दी गई ताकि देश की आर्थिक विकास दर को गति दी जा सके

इस दशक में, सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि आर्थिक विकास के लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुँचे, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित समुदायों तक।

4. डिजिटल और हरित क्रांति (2019-2024): प्रौद्योगिकी और सतत विकास पर जोर

हाल के वर्षों में, बजट ने प्रौद्योगिकी के उपयोग और सतत विकास (Sustainable Development) को अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया है।

  • डिजिटल इंडिया कार्यक्रम (Digital India Program) – 2015: इस पहल के तहत इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल भुगतान और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दिया गया।
  • गतिशक्ति मास्टर प्लान (Gati Shakti Master Plan) – 2021: यह योजना देश के लॉजिस्टिक्स और कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए बनाई गई, जिससे आर्थिक दक्षता (Economic Efficiency) में वृद्धि हो।
  • हरित ऊर्जा (Green Energy):
    • सौर ऊर्जा परियोजनाओं (Solar Energy Projects) में निवेश।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को बढ़ावा
    • ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (Green Hydrogen Mission) के तहत स्वच्छ ऊर्जा को प्राथमिकता।
  • कोविड-19 प्रतिक्रिया: महामारी के दौरान बजट ने स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने, वैक्सीन विकास और आर्थिक राहत उपायों पर ध्यान केंद्रित किया।

इन पहलों से यह स्पष्ट होता है कि भारत प्रौद्योगिकी और सतत विकास को अपनी भविष्य की आर्थिक रणनीति का अभिन्न हिस्सा बना रहा है।

5. दशकों से प्रमुख बजटीय विषय

  • आर्थिक सुधार: 1991 के उदारीकरण से लेकर 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू करने तक, बजट संरचनात्मक सुधारों (Structural Reforms) का माध्यम रहा है।
  • सामाजिक कल्याण: MGNREGA, आयुष्मान भारत, पीएम-किसान जैसी योजनाओं ने समावेशी विकास को बढ़ावा दिया
  • बुनियादी ढांचे का विकास: सड़क, रेलवे, हवाई अड्डे और डिजिटल अवसंरचना (Digital Infrastructure) में निवेश लगातार प्राथमिकता बना रहा।
  • वैश्विक एकीकरण: व्यापार सुधारों, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीतियों और निर्यात प्रोत्साहन ने भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ने में मदद की

निष्कर्ष

भारत का केंद्रीय बजट केवल एक वार्षिक वित्तीय दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह देश की आर्थिक दिशा, नीतियों और सामाजिक कल्याण पहलों को आकार देने का एक शक्तिशाली साधन है। स्वतंत्रता के बाद से अब तक, प्रत्येक बजट ने नई आर्थिक नीतियों, सुधारों और विकास रणनीतियों को परिभाषित किया है। आज, भारत प्रौद्योगिकी, हरित ऊर्जा और समावेशी विकास को अपनाते हुए वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है।

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