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ऐतिहासिक कदम: कर्नाटक भारत का पहला राज्य बना जिसमें मासिक धर्म के लिए सवेतन अवकाश मिलेगा

कर्नाटक सरकार ने लैंगिक समानता और कार्यस्थल समावेशन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए महिलाओं को प्रति वर्ष 12 दिन का सवेतन मासिक धर्म अवकाश (Paid Menstrual Leave) देने की मंज़ूरी दी है। यह नीति सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों पर लागू होगी, जिससे राज्य भारत का पहला प्रदेश बन गया है जिसने इस तरह का व्यापक कदम उठाया है।

नीति की प्रमुख बातें

  • लाभार्थी: कर्नाटक की सभी महिला कर्मचारी (सरकारी एवं निजी क्षेत्र)

  • अवकाश अवधि: प्रति माह 1 दिन — कुल 12 दिन प्रतिवर्ष

  • उद्देश्य: महिलाओं के स्वास्थ्य, गरिमा और कार्यक्षमता को समर्थन देना

  • लागू क्षेत्र: सभी सार्वजनिक, निजी और औद्योगिक प्रतिष्ठान

महत्व और प्रभाव

  1. जैविक वास्तविकता की स्वीकृति: मासिक धर्म के दौरान होने वाली थकान, दर्द और असुविधा को औपचारिक रूप से मान्यता देना एक संवेदनशील और यथार्थवादी नीति दृष्टिकोण है।

  2. उत्पादकता में सुधार: आराम और पुनर्प्राप्ति का अवसर मिलने से कार्यकुशलता और मनोबल दोनों में वृद्धि होगी।

  3. वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप: जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, ताइवान और स्पेन जैसे देशों में पहले से ही ऐसी नीतियाँ लागू हैं; कर्नाटक का कदम भारत को इसी प्रगतिशील श्रेणी में लाता है।

  4. शारीरिक श्रम वाले क्षेत्रों में राहत: विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए सहायक जो अधिक शारीरिक मेहनत वाले कार्य करती हैं।

समावेशी और संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता

  • लचीले कार्य घंटे या वर्क-फ्रॉम-होम विकल्प

  • कार्यस्थलों पर स्वच्छता सुविधाओं में सुधार

  • मासिक धर्म से जुड़ी जागरूकता और संवेदनशीलता अभियान

  • अवकाश को वैकल्पिक और गोपनीय रखना, ताकि कोई भेदभाव न हो

संक्षिप्त तथ्य 

विषय विवरण
राज्य कर्नाटक
नीति का प्रकार वार्षिक सवेतन मासिक धर्म अवकाश
लाभार्थी सभी महिला कर्मचारी (सरकारी और निजी क्षेत्र)
अवकाश की मात्रा प्रति वर्ष 12 दिन (प्रति माह 1 दिन)
महत्व भारत का पहला राज्य जिसने यह नीति लागू की
उद्देश्य महिलाओं के स्वास्थ्य, समानता और कार्यस्थल समावेशन को बढ़ावा देना
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