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स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने EC से क्‍वारंटीन लोगों की पहचान के लिए न मिटने वाली स्‍याही के इस्तेमाल की ली मंजूरी

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने EC से क्‍वारंटीन लोगों की पहचान के लिए न मिटने वाली स्‍याही के इस्तेमाल की ली मंजूरी |_3.1
ECI के महत्वपूर्ण निर्देश:
  • इससे संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया जा रहा है कि किसी भी व्यक्ति की बाईं ओर उंगली पर इस स्याही का उपयोग न किया जाए.
  • चुनावों के दौरान उपयोग की जाने वाली स्याही, जो कि केवल EC के लिए मैसूर स्थित कंपनी द्वारा बनाई गई थी, अब सभी राज्यों को उपलब्ध कराई जाएगी.
  • इस स्याही का निशान एक महीने तक लगा रहता है.
  • राज्यों की मांग को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक रूप से दिलचस्पी ली गई है, जिसमे क्‍वारंटीन व्यक्तियों के पहचान के लिए न मिटने वाली स्याही के इस्तेमाल करने के लिए कहा गया था.
  • चुनाव प्रक्रिया की स्वच्छ बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग ने सुरक्षा उपाय सुझाए हैं.
  • चुनाव आयोग की अनुमति के बिना इस स्याही का उपयोग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह “स्वामित्व वाली वस्तु” है.
  • महाराष्ट्र ने मामलों की संख्या बढ़ने के बाद पहले से ही राज्य के अन्दर आने वाले 100% क्‍वारंटीन पर निशान लगाना शुरू कर दिया है.
  • आइसोलेशन की तारीख के साथ स्याही से बाईं हथेली पर निशान लगाया जा रहा जो 14 दिनों तक चल लगा रहेगा.


क्या होती है न मिटने वाली स्‍याही (Indelible Ink)?


न मिटने वाली (इण्डेलेबल इंक), इलेक्टोरल इंक, इलेक्टोरल स्टेन या फॉस्फोरिक इंक देरी से मिटने वाली एक स्याही है जो चुनाव के दौरान मतदाताओं की उंगली पर लगाई जाती है ताकि दोबारा वोटिंग न कि जा सके और चुनाव में फ्रॉड को रोका जा सके। यह उन देशों में एक प्रभावी तरीका है जहां नागरिकों के लिए पहचान दस्तावेजों को हमेशा मानकीकृत या संस्थागत नहीं किया जाता है। चुनाव स्याही को सिल्वर नाइट्रेट का उपयोग करके तौयार की जाती है। इस स्याही पहली बार इस्तेमाल 1962 के आम चुनाव के दौरान किया गया था, जो अब कर्नाटक के आधुनिक शहर मैसूर में तैयार की जाती है।

उपरोक्त समाचारों से आने-वाली परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य-

  • भारत के निर्वाचन आयुक्त: सुनील अरोड़ा.

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