गुरु तेग बहादुर जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे, जिनका जीवन साहस और त्याग का प्रतीक है। उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। उनका शहीदी दिवस हमें न्याय, समानता और मानवाधिकारों के लिए खड़े होने की प्रेरणा देता है। गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी दिवस इस वर्ष मनाया जा रहा है, और यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है। गुरु तेग बहादुर जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे और उन्हें ‘हिंद की चादर’ के रूप में भी जाना जाता है। उनका बलिदान भारतीय धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
सिख धर्म के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह जी का 350वां शहीदी दिवस 24 नवंबर 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा। उन्हें “भारत का कवच” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अत्याचारों के खिलाफ डटकर संघर्ष किया।
गुरु तेग बहादुर जी ने 1675 में दिल्ली में शहादत प्राप्त की। उन्होंने मुग़ल सम्राट और औरंगजेब के धार्मिक उत्पीड़न का विरोध किया था। औरंगजेब ने जब हिंदू धर्म, विशेषकर कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार करने शुरू किए, तब गुरु तेग बहादुर ने उनकी रक्षा के लिए अपनी शहादत दी।
गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान हमें सिखाता है कि सही के लिए खड़े होना कितना जरूरी है, चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों। उनका जीवन साहस, करुणा और न्याय का प्रतीक है।
इस दिन सिख समुदाय और अन्य लोग गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन, अरदास और सभाएं आयोजित करते हैं। लोग गुरु जी की शिक्षाओं को याद करते हैं और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं। उनकी शहादत हमें समानता, स्वतंत्रता और दूसरों की रक्षा करने के महत्व को भी समझाती है।
सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी, का जन्म 1 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में हुआ था। वह छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी, और माता नानकी जी के सबसे छोटे पुत्र थे। उनका बचपन का नाम त्याग मल था।
एक बालक के रूप में, तेग बहादुर जी ने अपने पिता, गुरु हरगोबिंद साहिब, से न केवल आध्यात्मिक शिक्षा, बल्कि सैन्य प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। 1634 में करतारपुर के युद्ध में उन्होंने अपनी असाधारण तलवारबाजी और बहादुरी का प्रदर्शन किया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर ही उनके पिता ने उनका नाम ‘त्याग मल’ से बदलकर ‘तेग बहादुर’ रखा, जिसका अर्थ है ‘तलवार का धनी’ या ‘तलवार का बहादुर’।
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