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हरियाणा सरकार ने नीलगाय को मारने की अनुमति दी

हरियाणा सरकार ने हाल ही में नए वन्यजीव (संरक्षण) नियम लागू किए हैं, जो नीलगाय (ब्लू बुल) के नर को मारने की अनुमति देते हैं। यह निर्णय मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने और कृषि को नीलगायों द्वारा होने वाले नुकसान को रोकने के लिए लिया गया है। हालांकि, इस फैसले का पर्यावरणविदों और बिश्नोई समुदाय सहित कई संगठनों ने विरोध किया है, क्योंकि वे नीलगाय को पवित्र मानते हैं। आलोचकों का कहना है कि शिकार न तो नैतिक है और न ही स्थायी समाधान।

नीलगाय विवाद की पृष्ठभूमि

  • नीलगाय हरियाणा की जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
  • किसानों और नीति-निर्माताओं के अनुसार, इनकी बढ़ती आबादी कृषि के लिए खतरा बन गई है।
  • सरकार के इस निर्णय ने पारिस्थितिकीय और नैतिक चिंताओं को जन्म दिया है।

नीलगाय (ब्लू बुल) से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

  • वैज्ञानिक नाम: Boselaphus tragocamelus
  • प्राकृतिक वास: भारत, नेपाल और पाकिस्तान में पाया जाता है।
  • सबसे बड़ा एशियाई मृग
  • धार्मिक महत्व: नीलगाय को प्राचीन वैदिक काल (1500–500 ईसा पूर्व) से ही हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है।
  • कुछ राज्यों ने इसे “रोज़ाड” (वन मृग) कहकर इसकी हत्या के नियमों को आसान बनाने का सुझाव दिया है।

भौतिक विशेषताएँ

  • आकार: 1.7–2.1 मीटर लंबा
  • वजन:
    • नर: 109–288 किग्रा
    • मादा: 100–213 किग्रा
  • पूंछ की लंबाई: 54 सेमी
  • सींग: केवल नर में, लंबाई 15–24 सेमी
  • रंग:
    • नर: नीला-धूसर रंग
    • मादा: नारंगी/भूरा रंग
  • अन्य विशेषताएँ:
    • पीठ ढलानदार, पैर पतले और मजबूत।
    • गले के नीचे 13 सेमी लंबी बालों की लटकन होती है।

व्यवहार संबंधी विशेषताएँ

  • दिनचर: नीलगाय दिन में सक्रिय रहते हैं।
  • समूह में रहना पसंद करते हैं (3-6 के झुंड में)।
  • शांत लेकिन सतर्क: सामान्यतः विनम्र, लेकिन खतरा महसूस होने पर भाग जाते हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष

  • फसलों को नुकसान: नीलगाय खेतों को भारी क्षति पहुंचाते हैं, जिससे किसान परेशान रहते हैं।
  • ‘वर्मिन’ (हानिकारक जीव) का दर्जा: बिहार में नीलगाय को वर्मिन घोषित किया गया, जिससे उनका कानूनी शिकार संभव हो गया

संरक्षण स्थिति

  • IUCN स्टेटस: Least Concern (कम खतरे में)
  • भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972): अनुसूची-III में सूचीबद्ध (संरक्षित, लेकिन उच्च प्राथमिकता वाली नहीं)।

विरोध और असहमति

  • पर्यावरणविदों का कहना है कि शिकार से समस्या हल नहीं होगी
  • कई संगठनों का मानना है कि गैर-घातक उपाय अधिक प्रभावी और नैतिक होंगे

नीलगाय प्रबंधन के वैकल्पिक समाधान

  • स्थानांतरण (Translocation): नीलगायों को ऐसे स्थानों पर ले जाना, जहां वे खेती को नुकसान न पहुंचाएं
  • पर्यावास पुनर्स्थापन (Habitat Restoration): जंगलों के किनारे प्राकृतिक भोजन वाले क्षेत्र विकसित करना
  • आक्रामक प्रजातियों का प्रबंधन: उन प्रजातियों को नियंत्रित करना, जो नीलगायों को खेती की ओर धकेलती हैं।
  • फेंसिंग और फसल सुरक्षा: खेतों के आसपास स्थानीय समुदायों द्वारा सुरक्षित बाड़ लगाने की रणनीति अपनाना।

वन्यजीव संरक्षण में समुदाय की भूमिका

  • किसानों और स्थानीय समुदायों को संरक्षण और फसल सुरक्षा में शामिल करना
  • नीलगायों के लिए सामुदायिक अभ्यारण्य स्थापित करना।
  • पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपनाना, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष कम हो

बिश्नोई समुदाय की भूमिका

  • उत्पत्ति: यह समुदाय थार रेगिस्तान और उत्तरी भारत में पाया जाता है।
  • संस्थापक: गुरु जम्भेश्वर (1451 ईस्वी, पीपासर, राजस्थान)
  • कठोर पर्यावरण संरक्षण: बिश्नोई लोग पेड़ों और वन्यजीवों को हानि पहुंचाने की सख्त मनाही करते हैं।
  • प्रकृति के लिए बलिदान: बिश्नोई समुदाय ने सदियों से वन्यजीवों और वनों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है

निष्कर्ष

नीलगायों को मारने की अनुमति देना एक संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दा है। इस समस्या के समाधान के लिए नैतिक और दीर्घकालिक रणनीतियों को अपनाना आवश्यक है। स्थानांतरण, बाड़, पर्यावास सुधार और सामुदायिक भागीदारी जैसे समाधान अधिक प्रभावी और व्यावहारिक हो सकते हैं।

सारांश/स्थिर विवरण विवरण
क्यों चर्चा में? हरियाणा सरकार ने नीलगाय शिकार को मंजूरी दी।
नीति परिवर्तन वन्यजीव (संरक्षण) नियमों के तहत नीलगाय मारने की अनुमति।
कारण नीलगायों की बढ़ती संख्या के कारण फसलों को नुकसान।
विवाद पर्यावरणविदों और बिश्नोई समुदाय का विरोध।
नीलगाय के तथ्य एशिया का सबसे बड़ा मृग, हिंदू धर्म में पवित्र, भारत, नेपाल और पाकिस्तान में पाया जाता है।
शारीरिक विशेषताएँ नर – नीला-धूसर, मादा – भूरा, केवल नर में सींग (15–24 सेमी)।
व्यवहार दिनचर, सतर्क, छोटे समूहों में रहता है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष फसलों को भारी नुकसान, बिहार में ‘वर्मिन’ घोषित।
संरक्षण स्थिति IUCN: Least Concern, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972): अनुसूची-III।
विरोध आलोचकों का कहना है कि शिकार अनैतिक और अस्थायी समाधान है।
प्रस्तावित विकल्प स्थानांतरण, पर्यावास पुनर्स्थापन, सामुदायिक अभ्यारण्य, फसल सुरक्षा।
बिश्नोई समुदाय की भूमिका भारत के सबसे पुराने पर्यावरण संरक्षक, वन्यजीवों की सख्त रक्षा।
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