वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) भारत के इतिहास के सबसे बड़े कर सुधारों में से एक है। इसने कई अप्रत्यक्ष करों को हटाकर एक एकीकृत कर प्रणाली लागू की, जिससे व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए कर व्यवस्था सरल हो गई। जीएसटी को लागू करने के लिए संविधान में कई बदलाव किए गए, जिनके परिणामस्वरूप संविधान (एक सौ पहला संशोधन) अधिनियम, 2016 पारित हुआ। इस अधिनियम ने केंद्र और राज्यों दोनों को जीएसटी से संबंधित कानून बनाने का अधिकार दिया और इसके संचालन की देखरेख के लिए जीएसटी परिषद (GST Council) का गठन किया गया।
जीएसटी की शुरुआत एक सरल और एकीकृत कर प्रणाली की आवश्यकता से हुई। इसे संभव बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया गया और जीएसटी को एक बड़े कर सुधार के रूप में लागू किया गया।
जीएसटी लागू करने के लिए 122वां संशोधन विधेयक 2014 में संसद में प्रस्तुत किया गया।
यह विधेयक लोकसभा में मई 2015 में पारित हुआ।
राज्यसभा ने इसमें संशोधन कर इसे 3 अगस्त 2016 को पारित किया और लोकसभा ने 8 अगस्त 2016 को इन संशोधनों को स्वीकार किया।
15 से अधिक राज्यों ने इस विधेयक को मंज़ूरी दी।
अंततः इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति 8 सितंबर 2016 को प्राप्त हुई।
इसके परिणामस्वरूप संविधान (एक सौ पहला संशोधन) अधिनियम, 2016 लागू हुआ।
संविधान के अनुच्छेद 279A के अनुसार, संशोधन लागू होने के 60 दिनों के भीतर जीएसटी परिषद का गठन होना आवश्यक था।
इसका अधिसूचना 10 सितंबर 2016 को जारी हुआ और अनुच्छेद 279A 12 सितंबर 2016 से प्रभावी हो गया।
केंद्र सरकार ने जीएसटी परिषद और उसके सचिवालय के गठन को मंज़ूरी दी, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
संघ वित्त मंत्री – अध्यक्ष (Chairperson)।
वित्त/राजस्व राज्य मंत्री।
प्रत्येक राज्य के वित्त/कर मंत्री।
अनुच्छेद 356 के तहत आपातकाल की स्थिति में राज्यपाल द्वारा नामित व्यक्ति।
जीएसटी परिषद निम्नलिखित सिफारिशें करती है:
किन वस्तुओं और सेवाओं पर कर लगेगा या छूट दी जाएगी।
मॉडल जीएसटी कानून और कर संग्रहण के सिद्धांत।
आपूर्ति का स्थान निर्धारित करने के नियम।
जीएसटी दरें और सीमा-स्तर (thresholds)।
प्राकृतिक आपदाओं के लिए विशेष दरें।
विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए प्रावधान।
सामान्यत: निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।
यदि मतदान की आवश्यकता हो:
केंद्र का मत = 1/3 भार।
सभी राज्यों के मत = 2/3 भार।
कोई भी प्रस्ताव तभी पारित होगा जब उसे 75% या उससे अधिक भारित मतों का समर्थन प्राप्त हो।
22–23 सितंबर 2016 को हुई अपनी पहली बैठक से लेकर अब तक जीएसटी परिषद ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं:
ई-वे बिल प्रणाली: माल की आवाजाही के लिए स्वयं-रिपोर्टिंग प्रणाली लागू की गई।
रियल एस्टेट क्षेत्र: किफायती आवास पर जीएसटी 1% और गैर-किफायती आवास पर 5% कर निर्धारित किया गया।
ई-इनवॉइसिंग प्रणाली: ₹5 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए 1 अगस्त 2023 से अनिवार्य।
हरित ऊर्जा: इलेक्ट्रिक वाहनों पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% किया गया; 12 से अधिक क्षमता वाली इलेक्ट्रिक बसों को कर से छूट।
QRMP योजना: छोटे व्यवसायों के लिए तिमाही रिटर्न और मासिक भुगतान की सुविधा।
कोविड-19 राहत: कोविड से संबंधित वस्तुओं पर जीएसटी दरों में कटौती।
दर तर्कसंगतीकरण (Rate Rationalization): 28% कर श्रेणी में आने वाली वस्तुओं की संख्या 227 से घटाकर केवल 35 की गई।
व्यापार सुविधा: रिफंड के नियम सरल किए गए, लेट फीस कम की गई और नए भुगतान मोड्स शुरू किए गए।
जीएसटी ट्रिब्यूनल (GSTAT): कर विवादों के निपटारे के लिए स्वीकृत।
क्षमा योजना (Amnesty Schemes): धोखाधड़ी के मामलों को छोड़कर विलंबित अपीलों और मांग नोटिसों पर राहत।
डिजिटल कराधान: बायोमेट्रिक आधार सत्यापन और बी2सी ई-इनवॉइसिंग के लिए पायलट प्रोजेक्ट।
नवीनतम (55वीं बैठक): वाउचर लेन-देन पर कोई जीएसटी नहीं और जीन थेरेपी पर जीएसटी से छूट।
जीएसटी ने विभिन्न राज्य स्तरीय करों को हटाकर एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाया।
व्यवसायों के लिए डिजिटल इनवॉइसिंग और ऑनलाइन रिटर्न से अनुपालन सरल हुआ।
परिषद ने लगातार फीडबैक और आर्थिक आवश्यकताओं के आधार पर बदलाव कर लचीलापन दिखाया।
यह सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) को दर्शाता है, क्योंकि इसमें केंद्र और राज्य दोनों मिलकर निर्णय लेते हैं।
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