भारत सरकार ने अपने भौगोलिक मापदंडों में एक ऐतिहासिक संशोधन करते हुए देश की समुद्र तट रेखा की लंबाई को 7,516.6 किमी से बढ़ाकर 11,098.8 किमी कर दिया है — यानी लगभग 50% की वृद्धि, बिना किसी नई भूमि को जोड़े। यह जानकारी गृह मंत्रालय की 2023–24 की वार्षिक रिपोर्ट में सामने आई। यह संशोधन नक्शे की उन्नत तकनीकों के माध्यम से हुआ है, जिससे अब तटीय विशेषताओं की कहीं अधिक सटीक माप संभव हो सकी है। यह भारत की भू-स्थानिक समझ में एक बड़ा बदलाव है और तटीय सुरक्षा, जलवायु योजना और आर्थिक क्षेत्र नियमन के लिए दूरगामी प्रभाव डालता है।
क्यों है यह खबरों में?
दिसंबर 2024 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारत की आधिकारिक समुद्री तटरेखा की लंबाई में संशोधन की घोषणा की। इस बदलाव के तहत भारत की तटरेखा की पुरानी लंबाई 7,516.6 किलोमीटर थी, जिसे अब बढ़ाकर 11,098.8 किलोमीटर कर दिया गया है। यह बढ़ोतरी किसी नई भूमि के जुड़ने के कारण नहीं हुई है, बल्कि उन्नत मापन तकनीकों जैसे जियोस्पेशियल मैपिंग, सैटेलाइट इमेजिंग, और ड्रोन सर्वेक्षण के प्रयोग से अधिक सटीक गणना की गई है। अब इस आंकड़े की हर 10 वर्षों में समीक्षा की जाएगी। यह संशोधन भारत की तटीय सुरक्षा, जलवायु नीति, आपदा प्रबंधन और भूगोल शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
मुख्य विशेषताएँ
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घोषणा द्वारा: गृह मंत्रालय (MoHA) ने 2023–24 की वार्षिक रिपोर्ट में की।
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मापन किया: सर्वे ऑफ इंडिया और नेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑफिस (NHO) द्वारा।
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नई मापन पद्धति: अत्याधुनिक डिजिटल तकनीकों का उपयोग किया गया, जिनमें शामिल हैं:
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जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम्स (GIS)
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सैटेलाइट अल्टीमीट्री
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LiDAR-GPS तकनीक
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ड्रोन-आधारित इमेजिंग
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बेस स्केल: नया स्केल 1:2,50,000 रखा गया, जबकि पहले 1:45,00,000 था।
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संदर्भ रेखा: हाई वॉटर लाइन (HWL), जो 2011 की इलेक्ट्रॉनिक नेविगेशन चार्ट्स पर आधारित है।
कोस्टलाइन पैराडॉक्स की समझ
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यह अवधारणा सबसे पहले लुईस फ्राय रिचर्डसन ने पहचानी थी और बाद में बेनोआ मंडेलब्रोट ने इसे विस्तार दिया।
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किसी समुद्री तट की लंबाई मापन की सटीकता पर निर्भर करती है — जितना सूक्ष्म पैमाना, उतनी अधिक लंबाई।
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समुद्री तट फ्रैक्टल जैसा व्यवहार करते हैं — हर स्तर पर अत्यधिक जटिलता और विस्तार दिखाते हैं।
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उदाहरण: ब्रिटेन की तटरेखा मापने के पैमाने के अनुसार 2,400 किमी से लेकर 3,400 किमी तक भिन्न हो सकती है।
महत्त्व क्यों है?
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समुद्री सुरक्षा (Maritime Security): अब समुद्र तट की लंबाई अधिक होने से रक्षा के लिए क्षेत्र भी बड़ा हो गया है।
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विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ): नई सीमाओं के आधार पर भारत अपने समुद्री आर्थिक क्षेत्र का विस्तार कर सकता है।
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आपदा प्रबंधन (Disaster Management): चक्रवात, बाढ़ और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी आपदाओं से निपटने की योजना अब अधिक सटीक और प्रभावी बन सकेगी।
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जलवायु मॉडलिंग (Climate Modelling): अधिक सटीक तटीय डेटा के आधार पर जलवायु प्रभावों का पूर्वानुमान बेहतर होगा।
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पाठ्यपुस्तक में बदलाव (Textbook Changes): विद्यालयों की भूगोल की पुस्तकों में भारत की नई तटीय लंबाई को शामिल करने की आवश्यकता होगी।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य
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भारत के पास 11 तटीय राज्य और 2 केंद्र शासित प्रदेश (अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह और लक्षद्वीप) हैं।
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भारत से जुड़ने वाला अंतिम तटीय राज्य: गोवा (1961)।