पूर्व भारतीय हॉकी गोलकीपर मैनुअल फ्रेडरिक (Manuel Frederick), जो केरल से भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता थे, का 78 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम के अहम सदस्य रहे फ्रेडरिक अपने निर्भीक गोलकीपिंग और भारतीय हॉकी में अमूल्य योगदान के लिए याद किए जाते हैं।
1947 में केरल के कन्नूर जिले के बर्नास्सेरी में जन्मे मैनुअल फ्रेडरिक ने इतिहास रचा, जब वे ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले केरलवासी बने। उनकी हॉकी यात्रा बेंगलुरु में भारतीय सेना के स्कूल टीम से शुरू हुई, जहाँ उन्होंने अपने स्वाभाविक प्रतिभा और तेज़ रिफ्लेक्स के दम पर गोलकीपर के रूप में पहचान बनाई।
उन्होंने अपने करियर में कई प्रमुख घरेलू टीमों के लिए खेला —
ASC, HAL (कर्नाटक), सर्विसेस, उत्तर प्रदेश और कोलकाता का मशहूर मोहन बागान क्लब।
एक साधारण पृष्ठभूमि से अंतरराष्ट्रीय ख्याति तक पहुँचना उन्हें केरल के युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बना गया — विशेष रूप से उस राज्य के लिए, जहाँ हॉकी परंपरागत खेल नहीं रहा है।
फ्रेडरिक ने 1971 में भारतीय राष्ट्रीय टीम से अपना अंतरराष्ट्रीय करियर शुरू किया और अगले सात वर्षों तक देश का प्रतिनिधित्व किया।
उनका सबसे यादगार पल 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में आया, जब उनकी शानदार गोलकीपिंग की बदौलत भारत ने कांस्य पदक जीता।
उन्होंने दो हॉकी विश्व कप में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया —
1973 (नीदरलैंड्स) — जहाँ भारत ने रजत पदक जीता।
1978 (अर्जेंटीना) — जहाँ उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
उनकी लगातार स्थिरता, अनुशासन और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें 1970 के दशक के सबसे सम्मानित भारतीय खिलाड़ियों में शामिल किया।
मैनुअल फ्रेडरिक को उनके साथी खिलाड़ियों और प्रशंसकों ने “टाइगर” नाम दिया — उनके निर्भीक स्वभाव और तेज़तर्रार रिफ्लेक्स के कारण।
वे पेनल्टी स्ट्रोक्स रोकने में माहिर थे और अक्सर निर्णायक मैचों का रुख अपने बचावों से पलट देते थे।
उनके साथी खिलाड़ी उनके अनुशासन और शांत स्वभाव की प्रशंसा करते थे, जबकि विरोधी उनके साहस और तेज़ निर्णय क्षमता का सम्मान करते थे।
सेवानिवृत्ति के बाद भी वे केरल सहित देशभर के युवाओं के लिए प्रेरणा के प्रतीक बने रहे, विशेषकर उन क्षेत्रों के लिए जहाँ हॉकी प्रमुख खेल नहीं था।
भारतीय हॉकी में उनके दीर्घकालिक योगदान को देखते हुए, भारत सरकार के युवा कार्य एवं खेल मंत्रालय ने उन्हें 2019 में “ध्यानचंद आजीवन उपलब्धि पुरस्कार” (Dhyan Chand Award for Lifetime Achievement) से सम्मानित किया।
यह सम्मान उनके दशकों लंबे समर्पण और खेल के प्रति निष्ठा का प्रतीक था।
हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलिप तिर्की और महासचिव भोला नाथ सिंह ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा —
“वे भारत के सबसे बेहतरीन गोलकीपरों में से एक थे और आने वाली पीढ़ियों के लिए सच्ची प्रेरणा हैं।”
मैनुअल फ्रेडरिक का निधन भारतीय हॉकी के एक स्वर्ण युग के अंत का प्रतीक है।
ओलंपिक मैदान पर गोल बचाने से लेकर अनगिनत खिलाड़ियों को प्रेरित करने तक — उनका जीवन साहस, धैर्य और राष्ट्रीय गौरव की कहानी है।
उनकी विरासत सदैव केरल और पूरे भारत के लिए गर्व का विषय बनी रहेगी।
[wp-faq-schema title="FAQs" accordion=1]भारत में कॉफी बागान एक वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जो जैव-विविधता संरक्षण,…
सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट ने एक बार फिर वैश्विक विमानन क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता साबित…
द्वितीय WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन 2025 का औपचारिक शुभारंभ 17 दिसंबर 2025 को…
हाल ही में वैज्ञानिकों और संरक्षण विशेषज्ञों ने नरपुह (Narpuh) वन्यजीव अभयारण्य को लेकर गंभीर…
फीफा बेस्ट फ़ुटबॉल अवॉर्ड्स 2025 का आयोजन दोहा, क़तर में किया गया, जहाँ पिछले वर्ष…
भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस 2025, जो 18 दिसंबर को मनाया जाता है, सभी नागरिकों…