फिच ने वित्त वर्ष 26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 6.3% किया

वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने 1 अगस्त 2025 को जारी अपनी नवीनतम “इंडिया कॉर्पोरेट क्रेडिट ट्रेंड्स रिपोर्ट” में वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 6.3% कर दिया है, जो पहले 6.4% अनुमानित था। एजेंसी ने बताया कि जहां उच्च स्तर का बुनियादी ढांचा निवेश प्रमुख क्षेत्रों में मांग को बढ़ावा देता रहेगा, वहीं वैश्विक व्यापार से जुड़ी चुनौतियाँ और शुल्क (टैरिफ) संबंधी जोखिम भारत की विकास गति पर दबाव डाल सकते हैं।

मांग को बढ़ावा देगा अवसंरचना पर खर्च

फिच रेटिंग्स के अनुसार, भारत का मजबूत अवसंरचना निवेश विकास का एक प्रमुख इंजन बना रहेगा। यह निवेश निम्नलिखित प्रमुख उद्योगों में मांग को समर्थन देगा:

  • सीमेंट

  • ऊर्जा (पावर)

  • पेट्रोलियम उत्पाद

  • निर्माण (कंस्ट्रक्शन)

  • भवन निर्माण सामग्री

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारी पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) के बावजूद भारतीय कंपनियों की क्रेडिट प्रोफाइल में सुधार की संभावना है, क्योंकि EBITDA मार्जिन (आय पूर्व ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन) बेहतर बने हुए हैं।

भारतीय कंपनियों पर अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव

फिच ने अमेरिका द्वारा घोषित 25% शुल्क (टैरिफ) पर चिंता जताई, जो 7 अगस्त 2025 से लागू होंगे। इसके अतिरिक्त, भारत-रूस व्यापार से जुड़ी अतिरिक्त दंडात्मक कार्रवाइयों का भी उल्लेख किया गया है।

  • सीमित प्रत्यक्ष प्रभाव: अधिकांश रेटेड भारतीय कंपनियों की अमेरिका में निर्यात हिस्सेदारी कम से मध्यम स्तर की है, जिससे उन्हें तत्काल बड़ा नुकसान नहीं होगा।

  • द्वितीयक जोखिम: हालांकि, फिच ने चेताया कि वैश्विक आपूर्ति अधिशेष, विशेषकर इस्पात और रसायन क्षेत्रों में, भारत की ओर मोड़ दी जा सकती है, जिससे कीमतों में गिरावट और मेटल व माइनिंग कंपनियों के लिए अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।

क्षेत्रीय परिदृश्य

आईटी, ऑटो और फार्मा

  • आईटी सेवाएं, ऑटो कंपोनेंट्स और फार्मास्युटिकल जैसे निर्यात-आधारित क्षेत्र चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। अमेरिका और यूरोप में टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितता से मांग में गिरावट आ सकती है।
  • अमेरिकी नीतिगत बदलाव विशेष रूप से भारतीय दवा उद्योग को प्रभावित कर सकते हैं, जो विदेशी बाजारों पर काफी निर्भर है।

सापेक्ष रूप से सुरक्षित क्षेत्र

कुछ क्षेत्र अपेक्षाकृत स्थिर और सुरक्षित बने रहने की संभावना रखते हैं, जैसे:

  • दूरसंचार (टेलीकॉम)

  • तेल और गैस

  • यूटिलिटीज

  • निर्माण

ये क्षेत्र मुख्य रूप से घरेलू मांग-आधारित हैं और नियामकीय स्थिरता का लाभ उठाते हैं, जिससे बाहरी जोखिम कम हो जाते हैं।

व्यापार वार्ताओं में भारत का सख्त रुख

  • रिपोर्ट में बताया गया कि भारत ने कृषि और डेयरी क्षेत्रों में अमेरिकी शुल्क रियायतों की मांग का कड़ा विरोध किया है। ये क्षेत्र भारत के किसी भी मौजूदा मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में शामिल नहीं हैं।
  • वर्तमान व्यापार वार्ताओं का परिणाम भारतीय कंपनियों की निर्यात विविधता और नए व्यापारिक परिदृश्यों के अनुकूलन की रणनीति को प्रभावित कर सकता है।
  • फिच ने ज़ोर दिया कि इन वार्ताओं का परिणाम भारत के बाह्य क्षेत्र की मजबूती तय करने में आने वाले समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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vikash

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