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इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) विधेयक, 2025: भारत के बिजली क्षेत्र में सुधार

इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) विधेयक, 2025 भारत के बिजली क्षेत्र को आधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सुधार पहल है। इसका उद्देश्य बिजली की आपूर्ति, मूल्य निर्धारण और विनियमन से जुड़ी पुरानी प्रणालियों को बदलकर एक अधिक प्रतिस्पर्धी, कुशल और उपभोक्ता-अनुकूल ढांचा स्थापित करना है।

विधेयक क्या करना चाहता है?

मुख्य लक्ष्य

  • बिजली की लागत का तर्कसंगतीकरण ताकि टैरिफ वास्तविक आपूर्ति लागत को दर्शा सकें।

  • छिपी हुई क्रॉस-सब्सिडी को कम करना, जहां उद्योग और वाणिज्यिक उपभोक्ता अन्य श्रेणियों को सब्सिडी देते हैं।

  • किसानों और निम्न-आय वर्गों के लिए सब्सिडी वाली बिजली को पूरी तरह सुरक्षित रखना।

  • नियामक जवाबदेही को मजबूत करना, जिससे निर्णय समय पर हों और वितरण कंपनियों पर वित्तीय दबाव कम हो।

  • साझा नेटवर्क उपयोग को बढ़ावा देना, ताकि समानांतर बुनियादी ढांचे की आवश्यकता कम हो और लागत में कमी आए।

  • बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में सुधार, साथ ही केंद्र-राज्य समन्वय बढ़ाना।

मुख्य संरचनात्मक सुधार

1. वितरण में प्रतिस्पर्धा

  • एक ही क्षेत्र में एक से अधिक वितरण लाइसेंसधारकों को काम करने की अनुमति दी जाएगी।

  • इससे पारंपरिक एकाधिकार मॉडल टूटेगा और उपभोक्ताओं को विकल्प तथा बेहतर सेवा मिलेगी।

  • सभी लाइसेंसधारकों पर सार्वभौमिक सेवा दायित्व (USO) लागू होगा, जिससे किसी भी उपभोक्ता के साथ भेदभाव नहीं होगा।

2. टैरिफ और क्रॉस-सब्सिडी का तर्कसंगतीकरण

  • टैरिफ को लागत-संगत (cost-reflective) बनाना अनिवार्य होगा।

  • उद्योग, रेलवे और मेट्रो जैसे उपभोक्ताओं के लिए क्रॉस-सब्सिडी को पाँच वर्षों में समाप्त करने का लक्ष्य।

  • कमजोर वर्गों को मिलने वाली सब्सिडी बरकरार रहेगी।

3. अवसंरचना और नेटवर्क दक्षता

  • नियामक आयोग को व्हीलिंग चार्ज तय करने की शक्ति दी गई है।

  • साझा नेटवर्क मॉडल को बढ़ावा देकर अनावश्यक समानांतर ढाँचे को रोका जाएगा।

  • ऊर्जा भंडारण प्रणाली (ESS) को बिजली प्रणाली के आधिकारिक हिस्से के रूप में मान्यता।

4. प्रशासन एवं नियामक सुधार

  • इलेक्ट्रिसिटी काउंसिल की स्थापना, जो केंद्र और राज्यों के बीच नीति समन्वय बढ़ाएगी।

  • राज्य विद्युत नियामक आयोगों (SERCs) को अधिक शक्तियाँ दी जाएँगी, जैसे—

    • अनुपालन न होने पर दंड लगाना

    • देर होने पर स्वतः टैरिफ आदेश जारी करना (suo motu)

5. बाज़ार एवं स्थिरता-केंद्रित सुधार

  • गैर-जीवाश्म स्रोतों से बिजली खरीदने के दायित्व को मजबूत किया गया है।

  • बिजली बाज़ारों, ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म और उन्नत डिस्पैच तंत्र को बढ़ावा।

  • स्वच्छ ऊर्जा और नेट-ज़ीरो लक्ष्यों के अनुरूप नीतियाँ।

संदर्भ और आवश्यकता

इन चुनौतियों के कारण सुधार आवश्यक हुए:

  • वितरण कंपनियों (DISCOMs) की लगातार वित्तीय समस्याएँ, उच्च AT&C नुकसान और बिलिंग अक्षमताएँ।

  • एकल-आपूर्तिकर्ता मॉडल के कारण उपभोक्ता विकल्पों की कमी और सेवा गुणवत्ता में सीमित सुधार।

  • उद्योगों पर उच्च बिजली दरों का बोझ, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है।

  • ISTS (अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम) मॉडल ने दर्शाया कि साझा नेटवर्क और प्रतिस्पर्धा से बेहतर परिणाम मिलते हैं।

यह विधेयक बिजली क्षेत्र को भविष्य-तैयार बनाने का प्रयास है ताकि वह भारत की आर्थिक वृद्धि, उद्योगों, घरेलू उपभोक्ताओं और जलवायु लक्ष्यों में मजबूत योगदान दे सके।

स्थैतिक तथ्य (Static Facts)

  • विधेयक का नाम: इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) विधेयक, 2025

  • मुख्य नीति: लागत-प्रतिबिंबित टैरिफ, कमजोर वर्गों की सुरक्षा के साथ

  • क्रॉस-सब्सिडी समाप्ति लक्ष्य: उद्योग, रेलवे, मेट्रो – 5 वर्षों में

  • मुख्य संरचनात्मक सुधार:

    • एक क्षेत्र में कई वितरण लाइसेंस

    • साझा नेटवर्क

    • ESS को मान्यता

  • शासन सुधार:

    • इलेक्ट्रिसिटी काउंसिल

    • SERC की शक्तियों में वृद्धि

  • उद्देश्य: एकाधिकार से हटकर चयन-आधारित प्रतिस्पर्धी मॉडल की ओर संक्रमण

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