भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने 1 जनवरी, 2024 को अपना 66वां स्थापना दिवस मनाया, जो देश के रक्षा क्षेत्र में नवाचार और आत्मनिर्भरता की एक महत्वपूर्ण यात्रा को दर्शाता है। यह दिन बड़े उत्साह और भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने की नई प्रतिबद्धता के साथ मनाया गया।
डीआरडीओ का गठन 1958 में भारतीय सेना के पहले से चल रहे तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDEs) और रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) के साथ तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (DTDP) को मिला कर किया गया था। मौजूदा समय में DRDO के पास पांच हजार वैज्ञानिक हैं। इसके साथ ही इसके पास करीब 30 हजार कर्मी भी हैं।
इसकी स्थापना विश्व स्तरीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी स्थापित करके भारत को समृद्ध और हमारी रक्षा सेवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी प्रणालियों और समाधानों से लैस करके निर्णायक बढ़त प्रदान करने के लिए की गई थी। रक्षा क्षेत्र में इसके योगदान के मद्देनजर कहा जा सकता है कि ये अपने स्थापना के उद्देश्य को चरितार्थ करता है।
डीआरडीओ का काम हमारी रक्षा सेवाओं के लिए अत्याधुनिक सेंसर, हथियार, उपकरणों का डिजाइन, विकास और उत्पादन करना व इसके लिए शोध करना है।
यह वैमानिकी, आयुध, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग सिस्टम, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइल, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, विशेष सामग्री, नौसेना प्रणाली, जीवन विज्ञान, प्रशिक्षण, सूचना प्रणाली मिसाइलों, आयुध, प्रकाश का मुकाबला करने वाले विमान, रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली जैसे अहम विषयों पर काम करती है।
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