भारत में प्राथमिकता वाले क्षेत्रों, जैसे कि कृषि, MSME और सामाजिक अवसंरचना, को दिए जाने वाले ऋण वितरण में पिछले छह वर्षों में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। प्राथमिकता क्षेत्र को दिया गया कुल ऋण वर्ष 2019 में ₹23.01 लाख करोड़ था, जो 2024 में बढ़कर ₹42.73 लाख करोड़ हो गया, अर्थात् 85% की वृद्धि हुई। वित्तीय स्थिरता और दक्षता बढ़ाने के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और सरकार ने विभिन्न उपाय अपनाए हैं, जिनमें ऋण अनुशासन, उत्तरदायी ऋण वितरण और बैंकिंग क्षेत्र में तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना शामिल है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSBs) और वित्तीय संस्थान, फिनटेक कंपनियों के साथ सहयोग कर रहे हैं ताकि बैंकिंग सेवाओं को अधिक प्रभावी बनाया जा सके और ऋण वितरण प्रक्रिया को सुगम किया जा सके।
प्राथमिकता क्षेत्र ऋण और वित्तीय स्थिरता उपायों के प्रमुख बिंदु
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ऋण वितरण में वृद्धि (2019-2024)
- कुल प्राथमिकता क्षेत्र ऋण:
- 2019 – ₹23.01 लाख करोड़
- 2024 – ₹42.73 लाख करोड़ (85% वृद्धि)
- कृषि क्षेत्र का ऋण:
- 2019 – ₹8.86 लाख करोड़
- 2024 – ₹18.27 लाख करोड़
- MSME क्षेत्र का ऋण:
- 2019 – ₹10.99 लाख करोड़
- 2024 – ₹21.73 लाख करोड़
- कुल प्राथमिकता क्षेत्र ऋण:
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प्रौद्योगिकी-संचालित बैंकिंग सुधार
- एआई-सक्षम ई-KYC और वी-KYC: चेहरे की पहचान एवं नाम मिलान आधारित ग्राहक सत्यापन।
- डिजिटल ऋण प्रसंस्करण: वैकल्पिक डेटा का उपयोग करके तेज़ क्रेडिट मूल्यांकन।
- API-आधारित बैंकिंग उत्पाद: ग्राहक सुविधा के लिए नवाचारपूर्ण वित्तीय उत्पाद।
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RBI की वित्तीय स्थिरता हेतु पर्यवेक्षी रूपरेखा
- नियामक दिशानिर्देशों का अनुपालन: पर्यवेक्षी आकलनों में जांच।
- जोखिम प्रबंधन: जोखिमग्रस्त क्षेत्र, उधारकर्ता और वित्तीय संस्थानों की पहचान।
- अनुपातिक विनियम: बैंकों और NBFCs की जोखिम प्रोफाइल के अनुसार विनियमन।
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बैंकिंग क्षेत्र की मजबूती हेतु सरकार एवं RBI के उपाय
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NPA प्रबंधन एवं वसूली सुदृढ़ीकरण
- PSBs में विशेष तनावग्रस्त परिसंपत्ति प्रबंधन इकाइयाँ।
- ऋण वसूली हेतु बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट और फील्ड एजेंट मॉडल।
- तनावग्रस्त परिसंपत्तियों हेतु विवेकपूर्ण ढांचा: समय पर समाधान योजनाएँ।
- मानक और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के लिए न्यूनतम प्रावधान आवश्यकताएँ।
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क्रेडिट अनुशासन और धोखाधड़ी रोकथाम में सुधार
- IBC (दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता): ऋण वसूली को सुदृढ़ बनाना।
- CRILC (बड़ी ऋण जानकारियों का केंद्रीय भंडार): उच्च-मूल्य खातों की निगरानी।
- SARFAESI अधिनियम एवं ऋण वसूली संशोधन: कानूनी उपकरणों में सुधार।
- स्वचालित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: तनावग्रस्त खातों की शीघ्र पहचान।
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बैंकिंग क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार
- EASE सुधार:
- शासन, जोखिम प्रबंधन और सतर्कतापूर्ण ऋण प्रणाली में सुधार।
- डेटा-संचालित बैंकिंग और प्रौद्योगिकी को अपनाना।
- बैंकों का विलय: दक्षता में सुधार और पैमाने की अर्थव्यवस्था का लाभ।
- EASE सुधार:
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सरकार और RBI द्वारा किए गए ये उपाय प्राथमिकता क्षेत्र को सुदृढ़ करने के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र को अधिक पारदर्शी, स्थिर और कुशल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
पहलू | विवरण |
क्यों चर्चा में? | प्राथमिकता क्षेत्र को दिए गए ऋण में 85% की वृद्धि, ₹23 लाख करोड़ (2019) से ₹42.7 लाख करोड़ (2024) तक |
ऋण वितरण वृद्धि (2019-2024) | 85% वृद्धि (₹23.01 लाख करोड़ से ₹42.73 लाख करोड़) |
कृषि क्षेत्र में ऋण वृद्धि | ₹8.86 लाख करोड़ से बढ़कर ₹18.27 लाख करोड़ |
MSME क्षेत्र में ऋण वृद्धि | ₹10.99 लाख करोड़ से बढ़कर ₹21.73 लाख करोड़ |
बैंकिंग में प्रौद्योगिकी अपनाने के उपाय | ई-KYC, डिजिटल ऋण प्रसंस्करण, एआई-संचालित स्वचालन |
RBI की पर्यवेक्षी रणनीतियाँ | जोखिम-आधारित निगरानी, अनुपालन मॉनिटरिंग, तनाव पहचान |
NPA प्रबंधन और वसूली उपाय | IBC, SARFAESI अधिनियम, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, तनावग्रस्त परिसंपत्ति प्रबंधन |
बैंकिंग क्षेत्र सुधार | EASE सुधार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय, सतर्कतापूर्ण ऋण ढांचा |
सरकार और RBI का फोकस | वित्तीय अनुशासन, उत्तरदायी ऋण वितरण, धोखाधड़ी रोकथाम |