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भारत में कॉफी बागान: वैश्विक रैंक, क्षेत्र, इतिहास, आवश्यकताएँ और महत्व

भारत में कॉफी बागान एक वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जो जैव-विविधता संरक्षण, जनजातीय आजीविका, निर्यात आय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार से गहराई से जुड़ी हुई है। कच्चे तेल के बाद कॉफी दुनिया की दूसरी सबसे अधिक कारोबार की जाने वाली वस्तु है और प्रतिदिन विश्वभर में लगभग 2.25 अरब कप कॉफी का उपभोग होता है। भारत विश्व में कॉफी उत्पादन में 7वें स्थान पर है और अपनी उच्च गुणवत्ता, छाया में उगाई गई (shade-grown) तथा सतत (sustainable) कॉफी के लिए जाना जाता है।

कॉफी उत्पादन में भारत की वैश्विक स्थिति

भारत कॉफी उत्पादन और खेती के क्षेत्रफल के आधार पर विश्व में 7वें स्थान पर है। देश में लगभग 4.45 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कॉफी बागान फैले हुए हैं, जो—

  • कृषि निर्यात
  • ग्रामीण रोजगार
  • विदेशी मुद्रा अर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

भारत के कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 70% निर्यात किया जाता है, जिससे यह एक प्रमुख निर्यातोन्मुख बागानी फसल बन जाती है।

भारत में कॉफी बागान की प्रमुख विशेषताएँ

भारतीय कॉफी को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रीमियम पहचान मिलती है, क्योंकि यह—

  • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में छाया में उगाई जाती है
  • मृदु अम्लता (mild acidity) और समृद्ध सुगंध वाली होती है
  • जनजातीय एवं लघु कृषकों द्वारा सतत खेती पद्धतियों से उत्पादित होती है
  • रसायनों का न्यूनतम उपयोग कर जैव-विविधता संरक्षण को बढ़ावा देती है

भारत में दो प्रमुख किस्में उगाई जाती हैं—

  • अरेबिका (Arabica): बेहतर गुणवत्ता और सुगंध के लिए प्रसिद्ध
  • रोबस्टा (Robusta): अधिक उपज और तीव्र स्वाद के लिए जानी जाती है

दोनों किस्में लगभग समान अनुपात में उत्पादित होती हैं।

भारत में कॉफी बागान का ऐतिहासिक विकास

उत्पत्ति और परिचय

  • कॉफी की उत्पत्ति इथियोपिया के काफ़ा प्रांत में मानी जाती है
  • अरबों ने यमन में इसका व्यवस्थित उत्पादन कर व्यापार मार्ग विकसित किए

बाबा बूदन का योगदान (लगभग 1600 ई.)

भारत में कॉफी की शुरुआत तब हुई जब सूफी संत बाबा बूदन यमन से सात कॉफी बीज लाकर कर्नाटक के बाबा बूदन गिरि में बोए।

औपनिवेशिक विस्तार

  • 18वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों ने दक्षिण भारत में वाणिज्यिक कॉफी बागान विकसित किए
  • सड़कों, बंदरगाहों और निर्यात प्रणालियों का विकास हुआ
  • भारतीय कॉफी को छाया में उगाई गई उच्च गुणवत्ता वाली कॉफी के रूप में वैश्विक पहचान मिली

कॉफी बागान के लिए जलवायु और मृदा आवश्यकताएँ

  • मृदा (Soil)
  • गहरी, उपजाऊ, जैविक तत्वों से भरपूर और अच्छी जल-निकास वाली
  • हल्की अम्लीय मृदा सर्वाधिक उपयुक्त
  • जलवायु (Climate)
  • वर्षा: 1000–2500 मिमी

तापमान:

  • अरेबिका: 15–25°C
  • रोबस्टा: 20–30°C
  • आर्द्रता: 70–90%

ऊँचाई और छाया

  • अरेबिका: 1000–1500 मीटर
  • रोबस्टा: 500–1000 मीटर

प्राकृतिक छाया वृक्ष आवश्यक, जो पौधों की रक्षा और गुणवत्ता बढ़ाते हैं

भारत के प्रमुख कॉफी उत्पादक क्षेत्र

  • पारंपरिक क्षेत्र (पश्चिमी घाट) – कुल उत्पादन का लगभग 96%
  • कर्नाटक: 70% से अधिक उत्पादन (कोडागु/कूर्ग, चिक्कमगलूरु, हसन)
  • केरल: प्रमुख रोबस्टा उत्पादक (वायनाड, इडुक्की)
  • तमिलनाडु: उच्च गुणवत्ता अरेबिका (नीलगिरि, डिंडीगुल, थेनी)

गैर-पारंपरिक क्षेत्र (पूर्वी घाट)

आंध्र प्रदेश: अराकू घाटी

ओडिशा: कोरापुट, रायगढ़

(जनजातीय व जैविक खेती पर आधारित)

उत्तर-पूर्वी भारत

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा

कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया की भूमिका

  • स्थापना: कॉफी अधिनियम, 1942
  • मंत्रालय: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
  • मुख्यालय: बेंगलुरु

प्रमुख कार्य

एकीकृत कॉफी विकास परियोजना

गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में विस्तार

जनजातीय सशक्तिकरण

निर्यात संवर्धन और ब्रांडिंग

आर्थिक और पारिस्थितिक महत्व

वार्षिक उत्पादन: लगभग 3.6 लाख टन

निर्यात: 128 से अधिक देशों को

घरेलू खपत: 2012 (84,000 टन) → 2023 (91,000 टन)

छाया-आधारित एग्रो-फॉरेस्ट्री से जैव-विविधता संरक्षण

विशेष कॉफी किस्में

मॉनसूनड मालाबार

मैसूर नगेट्स एक्स्ट्रा बोल्ड

कापी रॉयल

हालिया विकास

5वां विश्व कॉफी सम्मेलन 2023 – बेंगलुरु

GI टैग: कूर्ग अरेबिका, वायनाड रोबस्टा, अराकू वैली अरेबिका आदि

निर्यात वृद्धि:

  • 2020–21: USD 719 मिलियन
  • 2023–24: USD 1.29 बिलियन
  • 2024–25: USD 1.8 बिलियन
  • GST में कमी (5%), और मुक्त व्यापार समझौतों से लाभ
  • जनजातीय मॉडल: कोरापुट कॉफी (TDCCOL)
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