पूरे देश में खनिकों के प्रयासों को चिह्नित करने के लिए हर साल 4 मई को राष्ट्रीय कोयला खनिक दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन हजारों खनिकों की कड़ी मेहनत और समर्पण को स्वीकार करता है और जश्न मनाता है जो इस खतरनाक क्षेत्र में काम करते हैं ताकि हम सुख-सुविधाओं से भरा जीवन जी सकें। इस दिन औद्योगिक क्रांति के महान नायकों को याद किया जाता है साथ ही उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों सुरंग से लेकर खदानों को खोजने और निकालने तक के कामों की भी सराहना की जाती है।
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कोयला खनन सबसे मुश्किल कामों में से एक है। कोयला खनिकों के लिए इसी संघर्ष को लोगों को बताने, उनकी प्रशंसा करने और उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए यह दिन मनाया जाता है। कोयला भारत में सबसे महत्वपूर्ण और प्रचुर जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा जरूरत का 55% हिस्सा है। देश की औद्योगिक विरासत स्वदेशी कोयले पर बनी थी।
कोयला एक प्राकृतिक संसाधन है, लेकिन इसे बनाना आसान नहीं बल्कि इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। भारत में कोयला खनन की शुरुआत 1774 में हुई जब ईस्ट इंडिया कंपनी के जॉन समर और सुएटोनियस ग्रांट हीटली ने दामोदर नदी के पश्चिम किनारे के साथ रानीगंज कोल फील्ड में वाणिज्यिक की खोज की। इसी दौरान देश में 1760 और 1840 के बीच औद्योगिक क्रांति भी चली थी। जिसमें कोयले का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर ईंधन और लोकोमोटिव इंजन और गर्मी इमारतों में किया गया। इसके बाद 1853 में रेलवे लोकोमोटिव की शुरुआत के बाद कोयले की मांग बढ़ती गई।
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