भूमि युद्ध अध्ययन केंद्र (सीएलएडब्ल्यूएस) के सहयोग से भारतीय सेना द्वारा संचालित दो दिवसीय अभूतपूर्व कार्यक्रम, चाणक्य डिफेंस डायलॉग 2023, दक्षिण एशिया और हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियों पर व्याख्यान के साथ 4 नवंबर को संपन्न हो गया। नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में 3 और 4 नवंबर को छह अलग-अलग सत्रों में आयोजित कार्यक्रम, ‘भारत और हिन्दी-प्रशांत क्षेत्र की सेवा- व्यापक सुरक्षा के लिए सहयोग’ विषय पर केंद्रित था।
प्राचीन रणनीतिकार चाणक्य की दूरदर्शिता से प्रेरित इस संवाद में दक्षिण एशियाई और हिन्द-प्रशांत सुरक्षा गतिशीलता, क्षेत्र में सहयोगात्मक सुरक्षा के लिए एक रूपरेखा, उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन पर विशेष बल देने के साथ वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों, रक्षा और सुरक्षा, भारतीय रक्षा उद्योग की सहयोगात्मक क्षमता बढ़ाने के स्वरूप और भारत के लिए व्यापक प्रतिरोध हासिल करने के विकल्पों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस समारोह की शोभा बढ़ाई और 3 नवंबर 2023 को एक विशेष भाषण दिया।
सत्र I- पड़ोस प्रथम; दक्षिण एशिया पूर्वानुमान: पहले सत्र की अध्यक्षता राजदूत अशोक के. कंथा ने की। लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा (सेवानिवृत्त), राजदूत शमशेर एम. चौधरी (बांग्लादेश), श्री असंगा अबेयागूनासेकेरा (श्रीलंका) और श्री चिरान जंग थापा (नेपाल) ने विचार व्यक्त किए और सत्र के दौरान चर्चा में भाग लिया। चर्चा दक्षिण एशिया में संभावित भविष्य की चुनौतियों और उनसे निपटने के लिए क्षेत्र के भविष्य के तरीकों पर केंद्रित थी। सत्र में भारत-चीन प्रतिस्पर्धा के निहितार्थ और दक्षिण एशिया में भू-आर्थिक विकास संचालक के रूप में भारत की संभावना का विश्लेषण किया गया। इसके अलावा, सत्र में दक्षिण एशिया के शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य को सक्षम करने के लिए मानव प्रवास, जातीय विभाजन, संसाधन साझाकरण, राजनीतिक उथल-पुथल और जलवायु परिवर्तन जैसे गैर-पारंपरिक और समकालीन सुरक्षा मुद्दों पर भी विचार विमर्श किया गया।
सत्र II-हिन्द-प्रशांत; निर्णायक सीमा: दूसरे सत्र की अध्यक्षता पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा (सेवानिवृत्त) ने की। डॉ. ट्रॉय ली ब्राउन (ऑस्ट्रेलिया), वाइस एडमिरल अमरुल्ला ऑक्टेवियन (इंडोनेशिया), सुश्री लिसा कर्टिस (अमेरिका) और श्री सौरभ कुमार (भारत) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए चर्चा में भाग लिया, जिसमें हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बदलती शक्ति की गतिशीलता पर गहराई से चर्चा की गई। एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की भूमिका, क्षेत्र में चीन के प्रभाव और क्षेत्र के भाग्य को आकार देने में आसियान देशों की महत्वपूर्ण भागीदारी पर बल दिया गया।
सत्र III- सुरक्षा के लिए सहयोगात्मक साझेदारी: तीसरे सत्र की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन (सेवानिवृत्त) ने की। इसमें डॉ. सटोरू नागाओ (जापान), सुश्री वाणी साराजू राव (भारत) के अलावा डॉ. आर डी कास्त्रो (फिलीपींस) और डॉ. पाको मिलहेट (फ्रांस) ने भाग लिया। सत्र ने ऐतिहासिक संबंधों से प्रेरणा लेते हुए और वैश्विक स्पेक्ट्रम के भीतर भविष्य के गठबंधनों को पेश करते हुए, विशेष रूप से क्षेत्र के छोटे देशों की सुरक्षा के लिए, साझा हितों के आधार पर बहुपक्षीय सहयोग के महत्व पर बल देते हुए, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में संभावित सुरक्षा गठबंधनों पर प्रकाश डाला।
सत्र IV- उभरती प्रौद्योगिकी रक्षा और सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है: चौथे सत्र की अध्यक्षता भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय कुमार सूद ने की। सत्र में अंतरिक्ष, साइबर स्पेस, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा सहित उभरती प्रौद्योगिकियों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर बातचीत और चर्चा हुई, जिसमें प्रख्यात वक्ताओं ने डॉ. उमामहेश्वरन आर (मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र, बैंगलोर के पूर्व निदेशक), प्रोफेसर वी. कामकोटि (आईआईटी मद्रास) और प्रोफेसर मयंक वत्स (आईआईटी जोधपुर) भी सम्मिलित हुए। इसमें रक्षा रणनीतियों के साथ नवाचारों को एकीकृत करने के लिए, वैश्विक तकनीकी प्रगति के सामने भारत की रक्षा क्षमताओं और बहु-क्षेत्रीय संघर्षों के लिए तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों की चुनौतियों और संभावनाओं को शामिल किया गया है।
सत्र V- सहयोगात्मक क्षमता निर्माण के लिए सहायक के रूप में भारतीय रक्षा उद्योग: पांचवें सत्र की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा (सेवानिवृत्त) ने की, जिसमें ‘नीतिगत पहल’ विषयों पर कमोडोर एपी गोलाया, श्री आरएस भाटिया और श्री आर. शिव कुमार ने ‘उद्योग सहयोग’ और ‘स्टार्ट अप’ के बारे में विचार विमर्श किया। सत्र V का मुख्य निष्कर्ष यह था कि भारत को भारतीय समाधानों के साथ भविष्य के युद्ध जीतने के लिए तैयार रहना चाहिए। चर्चा भारतीय रक्षा उद्योग की क्षमताओं, शक्ति और भविष्य के प्रक्षेप पथ और सहयोगात्मक और व्यक्तिगत क्षमता निर्माण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर केंद्रित थी। इसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के माध्यम से भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने में नीतिगत ढांचे, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ), निजी रक्षा क्षेत्रों और सूक्ष्म, लघु और माध्यम उद्यम (एमएसएमई) की भूमिका का विश्लेषण किया गया।
सत्र VI- व्यापक निवारण- भारत का तरीका: छठे और अंतिम सत्र की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा (सेवानिवृत्त) ने की। राजदूत डीबी वेंकटेश वर्मा और कर्नल केपीएम दास (सेवानिवृत्त) ने कूटनीति और प्रौद्योगिकी विषयों पर बातचीत की। सत्र का मुख्य ध्यान व्यापक निवारण के लिए भारत के अनूठे दृष्टिकोण का पता लगाना, इसके दर्शन, व्यावहारिकता और चीन की दृढ़ता और विभिन्न संकटों से प्रभावित क्षेत्रीय आर्थिक मंदी सहित भविष्य के विकास को उजागर करने पर केन्द्रित था।
चाणक्य रक्षा संवाद 2023 ने एक ऐसे भविष्य की रूपरेखा तैयार की, जहां चर्चा, विचार और रणनीतियाँ एक सुरक्षित, स्थिर और समृद्ध वैश्विक और क्षेत्रीय वातावरण में विकसित होती हैं। भारत, अपनी समृद्ध विरासत और भविष्यवादी दृष्टि के साथ, क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा और समृद्धि की दिशा में निकट और दूर के देशों के समुदाय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।