हाँ, लेकिन कुछ सीमाओं के साथ। शीत युद्ध के दौरान, अधिकांश परमाणु मिसाइलें केवल जड़त्वीय नेविगेशन प्रणाली (Inertial Guidance System) पर निर्भर थीं। लेकिन उनकी कम सटीकता (Accuracy) की भरपाई के लिए उन्हें ज्यादा विस्फोटक शक्ति (High-Yield Warheads) की आवश्यकता होती थी।
GPS के बिना: कम सटीकता, अधिक कोलेटरल डैमेज, कम रणनीतिक उपयोगिता
GPS के साथ: उच्च सटीकता, कम विस्फोटक शक्ति, बेहतर प्रतिरोधक क्षमता (Deterrence)
रूस, चीन, और भारत जैसे देश GPS के वैकल्पिक सिस्टम — GLONASS, BeiDou, और NavIC (IRNSS) — का उपयोग करते हैं ताकि वे स्वतंत्रता और आपातकालीन स्थितियों में आत्मनिर्भरता बनाए रख सकें।
GPS (Global Positioning System) एक उपग्रह-आधारित नेविगेशन प्रणाली है जो धरती के किसी भी स्थान पर वास्तविक समय में स्थिति और समय की जानकारी प्रदान करती है। यह अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा विकसित की गई थी और आज यह सैन्य अभियानों में एक महत्वपूर्ण उपकरण बन चुकी है, विशेष रूप से रणनीतिक हथियारों (जैसे परमाणु मिसाइलों) के लिए।
कार्यप्रणाली:
GPS उपग्रहों का एक समूह (24+ उपग्रह) लगातार पृथ्वी को घेरे रहते हैं और मिसाइलों या वाहनों को उनकी सटीक स्थिति बताने के लिए रेडियो सिग्नल भेजते हैं। यह विशेष रूप से लंबी दूरी की मिसाइलों के लिए जरूरी होता है।
सटीक लक्ष्य भेदन: परमाणु हथियारों को मिसाइल साइलो, सैन्य अड्डे, या प्रमुख बुनियादी ढांचे जैसे लक्ष्यों को ठीक-ठीक निशाना बनाना होता है।
बेहतर लक्ष्य निर्धारण: GPS से Circular Error Probable (CEP) काफी घट जाता है — यानी लक्ष्य से कितनी दूरी पर मिसाइल गिर सकती है।
नेविगेशन में स्थिरता: अंतरमहाद्वीपीय दूरी पर INS (Inertial Navigation Systems) से त्रुटियाँ आ सकती हैं, जिन्हें GPS ठीक करता है।
रीयल टाइम अपडेट: उड़ान के दौरान मार्ग में बदलाव या मोबाइल/छिपे हुए लक्ष्यों पर वार संभव होता है।
बिना GPS:
सिर्फ INS पर निर्भरता होती है, जो गति और दिशा के आधार पर स्थिति तय करता है।
समय के साथ स्थिति में बहाव (Drift) आ जाता है और मिसाइल लक्ष्य से चूक सकती है।
GPS के साथ:
फ्लाइट के दौरान मार्ग-सुधार
मोबाइल या समय-संवेदी लक्ष्यों पर हमला संभव
उपग्रहों से सिंक्रोनाइज़ेशन के साथ रीयल-टाइम दिशा सुधार
इससे CEP सैकड़ों मीटर से घटकर कुछ मीटर रह जाता है — जो शहरी या कम विस्फोटक शक्ति वाले परमाणु हथियारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
| मिसाइल सिस्टम | देश | नेविगेशन प्रणाली |
|---|---|---|
| Trident II (D5 SLBM) | अमेरिका/UK | INS + GPS |
| Minuteman III ICBM | अमेरिका | INS + GPS अपग्रेड्स |
| DF-26 IRBM | चीन | BeiDou + INS |
| Agni-V ICBM | भारत | NavIC + INS (योजना में) |
| Iskander-M | रूस | GLONASS + INS |
हाँ, GPS इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (Electronic Warfare) में:
जैम (Jamming) किया जा सकता है — यानी GPS सिग्नल को बाधित किया जा सकता है
स्पूफिंग (Spoofing) — नकली GPS संकेत भेजकर मिसाइल को गुमराह किया जा सकता है
सैन्य GPS एन्क्रिप्टेड M-code का उपयोग करते हैं
INS + स्टार ट्रैकर जैसी प्रणाली बैकअप के रूप में होती है
आधुनिक मिसाइलें GPS न होने पर जड़त्वीय या खगोलीय नेविगेशन पर स्विच कर सकती हैं
इसलिए GPS अत्यंत उपयोगी है, लेकिन अकेली मार्गदर्शक प्रणाली नहीं होती।
| देश | उपयोग की जाने वाली प्रणाली |
|---|---|
| रूस | GLONASS |
| चीन | BeiDou |
| भारत | NavIC (IRNSS) |
| अमेरिका | GPS (सैन्य बैंड सहित) |
इन विकल्पों का उद्देश्य है:
रणनीतिक स्वायत्तता
युद्ध जैसी स्थिति में विदेशी प्रणाली पर निर्भरता से बचना
स्पेस वॉरफेयर में भी अपनी क्षमता बनाए रखना
हाँ, विशेष रूप से SLBMs (Submarine-Launched Ballistic Missiles) के लिए। पनडुब्बियाँ GPS का उपयोग करती हैं:
लॉन्च के सटीक निर्देशांक तय करने के लिए
लॉन्च से पहले लक्ष्य संबंधी डेटा अपडेट करने के लिए
जड़त्वीय नेविगेशन (INS) के साथ एकीकृत करने के लिए (जैसे Trident II या K-4 मिसाइलों में)
GPS इनपुट के बिना, SLBM की सटीकता घट सकती है, खासकर अंतरमहाद्वीपीय दूरी पर।
हथियारों के मार्गदर्शन के अलावा, GPS का उपयोग परमाणु कमांड नेटवर्क में भी होता है:
न्यूक्लियर कमांड नेटवर्क्स के लिए समय सिंक्रनाइज़ेशन
रणनीतिक इकाइयों के बीच सुरक्षित संचार और अलर्ट
प्रतिघात (retaliation) या पहले हमले (first-strike) के आदेशों के तहत समन्वित लॉन्च अनुक्रम
यदि GPS बाधित होता है, तो यह परमाणु तैयारियों और प्रतिक्रिया समय को प्रभावित कर सकता है।
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